पशुओं में पेट के कीड़ों की दवा का महत्व

Pashu Sandesh, 13 July 2022

डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर)

एनाटोमी विभाग,

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,

राजुवास बीकानेरराजस्थान

डीवर्मिंग जानवर को एक कृमिनाशक दवा (डीवर्मर) देना है, ताकि उन्हें परजीवियों से छुटकारा मिल सके । उतार- चढा़व भरे वातावरण और जलवायु के कारण मवेशी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरते हैं । आमतौर पर पशुओं में अंतःकृर्मियों या पेट के कीड़ों का प्रकोप बहुतायत में पाया जाता है लेकिन जानकारी के अभाव एवं सामान्य बीमारियों की तरह लक्षण दिखायी न देने के कारण इनका पता नहीं लता है जिससे पशुपालकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भारी नुकसान उठाना पड़ता है। 

आर्थिक नुकसान -

पशुपालन व्यवसाय में अंतःपरजीवियों के परिणामस्वरूप पीड़ित पशुओं में, कम शारीरिक भार, पाचन संबंधी रोग, कम उत्पादन, एनीमिया, प्रजनन दर में कमी, घातक दस्त, संक्रामक रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ने और उपचार में खर्च के साथ-साथ मृत्यु होने की स्थिति में पशुपालकों को भारी नुकसान सहन करना पड़ता है । शोध के अनुसार परजीवियों के कारण दूधारू पशुओं में 1.16 लीटर प्रति दूधारू पशु प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन में कमी पायी जाती है व लगभग 2980 रूपये की हानि प्रति ब्यांत का आंकलन किया गया है । 

पशुओं में उपयोग किए जाने वाले सामान्य कृमिनाशक (डीवर्मर्स) 

फेनबेंडाजोल, ऑक्सफेलबेंडाजोल, एल्बेंडाजोल, आइवरमेलक्टिन, पाइपरजीन । 

बछड़े-बछडड़यों के लिए कृमिनाशक 

पशुओं में उनके जन्म के पहले सप्ताह से ही उनको पेट के कीड़ों की दवाई दे दी जानी चाहिए । पशुओं के बच्चों में विशेष रूप से भैंस के बच्चों में एस्केरियासिस को नियंत्रित करने के लिए जीवन के पहले सप्ताहांत पर 10 ग्राम पिपेरजिन की खुराक दी जाती है। इसके बाद उन्हें छः माह की आयु तक हर माह कृमिरोधक दवा देनी चाहिए, उसके बाद तीन महीने में एक बार । 

व्यस्क पशुओं के लिए कृमिनाशक  -

वर्ष में तीन माह के अंतराल पर एक बार और वर्षा ऋतु के मध्य या अंत में कृर्मिरोधक दवा पशु को अवश्य देनी चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर वर्षा ऋतु के बाद दोबारा कृमिनाशक दी जा सकती है । गर्भित पशुओं को दो बार कृर्मरोधक दवा अर्थात 7 से 14 दिन प्रसवपूर्व और प्रसव के 6 सप्ताह बाद देनी चाहिए । कृमिनाशक दवा देने के बाद पशुओं को खनिज तत्व देने चाहिए । 

कृमिनाशक दवाओं के विरुद्ध पशुधन परजीवियों में कृमि प्रतिरोधकता ना हो इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे की पशुओं को कभी भी कृमिनाशक दवाई की मात्रा कम नहीं देनी चाहिए । उनको उनके शारीरिक भार के अनुसार ही उचित मात्रा की गणना करके ही दी जानी चाहिए एवं पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए । किसी एक ही कृर्मिनाशक दवा को बार-बार न देकर हर बार नयी दवाई देनी चाहिए । पुरानी पड़ी दवाई काम में नहीं लेनी चाहिए ।  गलत कृमिनाशक दवा के उपयोग से बचना चाहिए ।