चार दशकों से गांव, गाय और गवई मिट्टी से लकीर खींचते एक आईएएस ऑफिसर की नई पहल – गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्राम्य जागरूकता अभियान

Pashu Sandesh, 27 दिसंबर 2020

डॉ. आर. बी.  चौधरी

रूरल बिज़नेस हब और समग्र चेतना की संयुक्त रूप से आयोजित वेबिनार श्रृंखला – “वर्तमान में चुनौतियाँ, उनका समाधान और विकल्प, कौन क्या और कैसे करे?” पर नीदरलैंड से प्रोफेसर डॉ. पुष्पिता अवस्थी और भारत सरकार के पूर्व सचिव , गौ आधारित प्राकृतिक खेती के चिंतक-कृषक मित्र एवं गाँव की उपलब्ध व्यवस्था या संसाधनों के जरिए गाँव को विकास की मुख्यधारा में जोड़ने की क्षमता पर विश्वास रखने वाले बहुचर्चित आईएएस ऑफिसर, डॉ. कमल टावरी ने बेहद रोचक व्याख्यान दिए। दोनों वक्ताओं नेअपने विचार रख कर वेबिनार श्रृंखला में शरीक सभी प्रतिभागियों का मन मोह लिया। यह बता दें कि गांव के संसाधनों से गांव के विकास के अवधारणा को मूर्त रूप देने वाले  विनोबा भावे और महात्मा गांधी के अनुयाई डॉ.टावरी पिछले चार दशकों से संलग्न है । सरल -सहज सादगी प्रिय , डॉ. टावरी का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति में गांव का पर्यावरण रक्षक उत्पादन – गांव का बाजार और गांव मार्केटिंग नेटवर्क के जरिए युवा पीढ़ी के अगुवाई में ग्राम विकास के अद्भुत परिणाम प्राप्त किए जा सकता  हैं।सफल कार्यक्रम जारी है।

इस वेबिनार शुरुआत की प्रवासी भारतीय – तमाम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मान प्राप्त प्रख्यात लेखिका, प्रोफेसर डॉ. पुष्पिता अवस्थी ने । अन्तराष्ट्रिय पटल पर जानी-पहचानी -सामाजिक सरोकार के साथ-साथ भाषा विज्ञान एवं दर्शन शास्त्र की गहरी पैठ रखने वाली प्रोफेसर डॉ. पुष्पिता वर्तमान  परिदृश्य का विश्लेषण करते हुए अपने व्याख्यान में बताया कि आज ऐतिहासिक दिवस है, कोरोना महामारी की भयावह के कारण धार्मिक त्यौहार पर पूरे विश्व में चर्च बन्द है। मनुष्यता को चौकाते हुए सचेत करने वाला दिवस है। पूरे वर्ष पूरे देश में जितने भी धर्म है उन पर आधारित संस्थाएँ है, सबके कपाट बंद है, हम अपनी समस्याओं के लिए इन्ही संस्थाओं के आगे गुहार लगाते है कि हमारी समस्याओं का समाधान किसी चमत्कार से हो जाये, हम को मानसिक रूप से शान्ति मिल जाये, हमारा मनोबल बढ़ जाये किन्तु कोरोना जैसी महामारी का समाधान इन संस्थाओं के पास नही है।

डॉ. पुष्पिता अवस्थी ने करुणा महामारी की उत्पत्ति से उत्पन्न त्रासदी की चिंता करते हुए कहां कि कोई भी देश, धर्म सब मानव के द्वारा रचा गया है, उसका रचियता मनुष्य है। मनुष्य वह सब रच सकते है जिससे हम और आप जुड़े हुए है। जिस चिकित्सा पद्धति से हम मानव समाज को बचाने की कोशिश कर रहे थे, उस वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति को कोरोना ने परास्त कर दिया।मनुष्य, प्राणी जिन पंचतत्वों से बना है, उन्ही के असंतुलन से बीमारियां और विकृतियां जन्म लेती है। उन का सन्तुलन कर सभी बीमारियां और विकृतियों का इलाज हमारे ग्रंथों में दिए उपायों से संभव है, कोरोना ने मनुष्य को धकेलकर उसी रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है।वह रास्ता है अपनी भारतीय संस्कृति और परम्परा को आत्मसात कर उसका लाभ लेने के साथ उसका प्रचार करने का तथा दूसरों को उसका लाभ दिलाने का है। हम भारतीय वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से पूरे विश्व का कल्याण कर सकते है। हमे आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होना चाहिये और सरहदों की सीमाओं के पार होना चाहिये।

डॉ. टावरी ने अपने संवाद के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का महत्त्व बताते हुए कहा कि कोरोना के कारण यूरोपियन देशों ने अपनी अपनी सीमाओं को सील कर दिया। अपना देश हम लोगों का घर है, जो लोग हमारे घर के आसपास है वही हमारे अपने है, उन्ही पड़ोसियों के साथ की शक्ति हमे साथ दे सकती है और हम अपनी संगठित शक्ति का उपयोग माटी और मानवता को बचाने में कर सकते है । हमारी माटी की उर्वरता केवल फसलों के लिए नही बल्कि मानवता के लिए भी है, माटी से किसान अनाज उगाता है और उसी अनाज को गृहण कर मनुष्य अपनी जीविका चलाता है। जनसंख्या के आधार पर हम भारतीय चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं। भारत की संपन्नता, निष्ठा और अनुशासन हम अपनों के साथ प्रदर्शित करें तो हमारी ताकत बढ़ेगी। हर व्यक्ति स्वार्थी होता है, स्वार्थी होना खराब नही बशर्ते उस स्वार्थ से किसी दूसरे को नुकसान ना हो। स्वार्थ अपने, धरती और मनुष्यता के पक्ष में होना चाहिए।

डॉ. टावरी ने यह भी बताया कि विश्व में बहुत से प्रवासी भारतीय नागरिक भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और वहां की व्यवस्था से यहां के लोगों को कैसे लाभ हो, इसके लिए प्रयासरत है। स्वच्छता, प्रबंधन, स्वाभिमान और स्वावलंबन से ही आत्मनिर्भरता आती है, हम स्वाभिमान भूलते जा रहे है। यहाँ के लोग परावलंबन की ओर जा रहे, वह एक भिखारी मॉडल है, अगर स्वाभिमान हो तो भिखारी मॉडल अपने पैर पसार ना पाये। एक कुत्ते का भी स्वाभिमान होता है जबकि हम मनुष्य है, संस्कृतिक विरासत को धारण करने वाले हम मनुष्य है, स्वाभिमान और दृढ़ता हम लोगों के भीतर होनी चाहिए।अगर हममें कोई शक्ति नही तब भी भारतीयता की शक्ति तो है, वह ऐसी शक्ति है जो हमको हमारी जड़ों से जोड़े रखने और विश्व में श्रेष्ठता के लिए पर्याप्त है। यहां के लोगों को ऑर्गेनिक खेती के साथ साथ ऑर्गेनिक स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भी खेती करनी चहिए। जिस प्रकार घर का संचालन किया जाता है उसी प्रकार गांव का विकास किए जाने की जरूरत है।

इस परिचर्चा में डॉ. टावरी ने इन सभी सुझावों के क्रियान्वयन की बात करते हुये कहा कि भारत को अगर विश्व गुरु बनना है, अपना कल्याण करते हुए समाज, देश और विश्व का कल्याण करना है तो अपवादियों से सीखना होगा स्वाभिमानी और स्वावलंबी कार्य करने होंगे, सरकार को बरसात का पानी समझना होगा क्योंकि किसान बरसात ना होने पर भी खेती करता है, तभी सभी का विकास और कल्याण संभव है। किसानों और विद्यार्थियों को लर्न एंड अर्न पर कार्य करना चाहिए और इसके लिए रूरल बिज़नेस हब फाउंडेशन इण्डिया अ-सरकारी असरकारी स्वरोजगारी सलाहकार सेवा देने को तैयार है। आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ साथ मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से भी आत्मनिर्भर होना होगा, क्षमताओं को विकसित किया जाए, ज्ञान भंडार का आदान प्रदान किया जाये ताकि एक्शन प्लान बनाया जा सके। रूरल बिज़नेस हब उन सभी का अभिनन्दन करता है जो स्वाभिमानी सलाहकार सेवा शुभ लाभ के साथ देने के लिए तैयार है।

इस वेबिनार में रॉ के पूर्व अधिकारी रामऔतार , नोएडा के ब्रज गोपाल सिंह साथ-साथ यश आर्या , रश्मि शर्मा , अंकुर श्रीवास्तव , श्याम सिंह , अखिलेश त्रिपाठी छत्तीसगढ़, प्रिंस जैन झांसी, संध्या सिंह , डॉ. केपी सिंह और सौरभ सिंह सहित अन्य कई गणमान्य व्यक्तियों ने सुझाव दिये है। इस वेबिनार का संचालन रूरल बिज़नेस हब के संयोजक गौरव कुमार गुप्ता ने किया।

 

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