पशु संदेश, 04 सितम्बर 2017
चन्दन कुमार राय, आरती एवं अबुल कलाम आजाद
बधियाकरण: उत्तम कुल का साण्ड जिसकी मां, दादी, नानी उत्तम वंश की बहुत अच्छा दूध देने वाली व बहुत अच्छे खेती योग्य बछड़े देने वाली रही हों, साण्ड के पिता, दादा व नाना भी अच्छे साण्ड रहे हों जिनसे अच्छा दूध देने वाली गायें व अच्छे खेती योग्य बछड़े पैदा हुए हों, ऐसे साण्ड से गायें ग्याभन होती थीं तो नस्ल सुधार होता था और अधिक मात्रा में दूध उत्पादन होता था। अगर किसी साण्ड के बारे में इतनी लम्बी जानकारी न हो सके तो कम से कम जिसे हम साण्ड बनाने जा रहे हैं उसके मां और बाप के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए। आज का पशु-पालक इन सब बातों को भूल गया है। किसी भी बछड़े से अपनी गाय को हरी करा लेता है। घर के बछड़े से, बछड़े की मां बहिन को ग्याभन करा लेता है, गर्मी में आई गाय गली मौहल्ले में आवारा घूम रहे नाकारा निकृष्ट साण्डों से ग्याभन हो जाती है। इस तरह जो बछडिय़ां पैदा हो रही हैं उनमें दूध देने की क्षमता नहीं है। कम दूध देने वाली गाय को पशु-पालक बोझ समझने लग गया है। जरा सोचो? गाय को बोझ तो हम ही बना रहे हैं, हर किसी आवारा बछड़े व साण्ड से गायों को हरी करा कर। पशुपालन विभाग ऐसे नाकारा बछड़ों व साण्डों का मशीन से बधियाकरण करता है। आपके घर में अगर ऐसा बछड़ा है तो उससे गाय मत फैलाईयें, ऐसे साण्ड या बछड़े आपके गांव में आवारा घूम रहे हैं तो इसकी सूचना आपके क्षेत्र के पशु-चिकित्सालय में दीजिये व इन्हें तुरन्त मशीन से बधिया करा दीजिये। दो साल या दो साल से अधिक उम्र का आवारा बछड़ा या साण्ड चाहे जहाँ भी घूम रहा हो उसे बधिया करवा दीजिये। आपके घर में ऐसा बछड़ा है तो उसे भी बधिया करवा लीजिये। गांव की गायों को हरी कराने के लिए अच्छी नस्ल के सर्वगुण सम्पन्न साण्ड की व्यवस्था कीजिये। अच्छी नस्ल के साण्ड प्राप्त करने के लिए पशु पालन विभाग का सहयोग लीजिये। पशु पालन विभाग ने प्रत्येक पशु-चिकित्सालय, औषधालय, उपकेंद्र पर गर्भाधान की सुविधा उपलब्ध करवा रखी है। अपनी गायों को उत्तम नस्ल के साण्डों के वीर्य से ग्याभन कराना चाहिए। नस्ल सुधार कार्यक्रम में अपना सहयोग देकर आपके पास जो उन्नत नस्ल के पशु हैं उनसे और अधिक उन्नत नस्ल के पशु पैदा कीजिये। जो पशु नाकारा, निकृष्ट हैं उनसे उन्नत पशु प्राप्त कर दुग्ध उत्पादन में वृद्धि कीजिये। हमारे बुजुर्गों के पास नर पशु को बधिया करने के लिए इस तरह की मशीन नहीं थी। उस समय बधिया करने के तरीके से बछड़े की बहुत पीड़ा होती थी, कभी-कभी तो बहुत ज्यादा परेशानी हो जाती थी, कभी-कभी मृत्यु तक हो जाती थी। इसके बावजूद भी हमारे बुजुर्ग गायों की नस्ल को बिगाडऩे वाले बछड़ों को हर हालत में बधिया करा लेते थे। प्रत्येक बछड़े को बैल बनाने के लिए बधिया करना ही पड़ता था।आज बछड़ों को बधिया कराने के लिए आसान तरीका उपलब्ध है। किसानो को अपने बछड़े को दो साल की उम्र तक अवश्य बधिया करा लेना चाहिये। किसान भाई बेकार बछड़ों का बधियाकारण, श्रेष्ठ साण्ड से प्राकृतिक गर्भाधान व श्रेष्ठ वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान अपना कर, अपना व अपने पशुधन का भविष्य उज्जवल कर सकते है।
बधियाकरण के लाभ: नर पशु के दोनों अण् कोशों अथवा मादा के दोनों अंडाशयों को निकालकर उसे नपुंसक बनाने की क्रिया को बधियाकरण कहते हैं| उन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए अवांक्षित नर पशुओं का बधियाकरण बहुत ही आवश्यक कार्य जिसके बिना डेयरी पशुओं की नस्ल में सुधार करना असम्भव हैं| बछड़ों में बधियाकरण की उचित आयु 2 से 8 माह के बीच होती हैं|
बधियाकरण की विधियाँ: पालतू पशुओं में बधियाकरण सबसे पुरानी शल्य क्रिया समझी जाती है|बधियाकरण निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है|
(क) शल्य क्रिया द्वारा बधियाकरण: इस विधि में शल्य क्रिया द्वारा अंडकोषों के ऊपर चढ़ी चमड़ी (स्क्रोटम) को काटकर दोनों अंडकोषों को निकाल दिया जाता है| इस क्रिया में में पशु के एक छोटा सा घाव हो जाता है जोकि एंटीसेप्टिक दवाईयों के प्रयोग करके कुछ समय के पश्चात ठीक हो जाता है|
(ख) बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरणल: यह विधि आज-कल नर गोपशुओं व भेंसों में बधियाकरण के लिये सर्वाधिक प्रचलित है| इसमें एक विशेष प्रकार का यंत्र जिसे बर्डिजो कास्ट्रेटर कहते हैं प्रयोग किया जाता है| इस विधि में रक्त बिल्कुल भी नहीं निकलता क्योंकि इसमें चमड़ी को कटा नहीं जाता| इसमें पशु के अंड कोशों से ऊपर की और जुडी स्पर्मेटिक कोर्ड जिकी चमड़ी के नीचे स्थित होती है, को इस यन्त्र के द्वारा बाहर से दबा कर कुचल दिया जाता है जिससे अंडकोषों में खून का दौरा बन्द हो जाता है|फलस्वरूप अंडकोष स्वत:ही सुख जाते हैं|
बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरण करते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतना आवश्यक है:-
(ग) रबड़ के छल्ले द्वारा बधियाकरण: पश्चिमी देशों में प्रचलित यह विधि बहुत छोटी उम्र के बछड़ों में प्रयोग की जाती है| इसमें रबड़ का एक मजबूत व लचीला छल्ला अंड कोषों के ऊपरी भाग स्थित स्परमेतिक कोर्ड के ऊपर चढा दिया जाता है जिसके दबाव से अंडकोषों में खून का दौरा बन्द हो जाता है| इससे अंडकोष सूख जाते हैं तथा रबड़ का छल्ला अंडकोषों से निकल कर नीचे गिर जाता है|
चन्दन कुमार राय1, आरती2 एवं अबुल कलाम आजाद1
1पीएच. डी. छात्र कृषि विस्तार विभाग और 2पीएच. डी. छात्रा, कृषि अर्थशास्त्र विभाग
भा. कृ. अनु. प.-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा