समन्वित एवं पशुधन आधारित कृषि प्रणाली

पशु संदेश, 08 October 2018

डॉ मनीषा सिंगोदिया, डॉ संजय कुमार रेवानी, डॉ सुनील राजोरिया 

प्रस्तावना:

वर्तमान प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में सीमित एवं मंहगे संसाधनों का कुशल उपयोग कर, फसल उत्पादन के साथ अन्य घटकों का समावेश करना आज की व्यवहारिक प्रासंगिकता है। बढ़ते हुए शहरीकरण, एवं जनसंख्या के दबाव के कारण प्रति व्यक्ति भूमि जोत का आकार निरंतर कम होता जा रहा है, इन परिस्थितियों में कोई भी अकेला कृषि व्यवसाय इस श्रेणी के कृषकों की खाद्य एवं घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। किसान अपने खेत पर उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए समन्वित प्रणाली के अंतर्गत मुख्य फसलों के साथ–साथ कृषि आधारित अन्य घटकों जैसे पशुपालन, कुक्कुट पालन, बत्तख पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन एंव मशरूम पालन उत्पादन इत्यादि के अपनाकर जोखिम को कम कर देता है।

यह न केवल नियमित आमदनी एवं रोजगार का जरिया है बल्कि फसल के अवशेष एवं फसल उत्पादन प्रणाली में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जैवभार का उचित प्रबंधन करके इसके लाभों का पूरा दोहन किया जा सकता है। भविष्य में कृषि में उज्जवल संभावनाएं तलाशने एवं खेती की अर्थवव्यवस्था को सुदृढ करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का प्रबंधन एवं उनका समुचित उपयोग अत्यन्त आवश्यक है, जो सिर्फ समन्वित कृषि प्रणाली के अनुसार किया जा सकता है।

समन्वित कृषि प्रणाली के उद्देश्य-

आजीविका सुरक्षा :-

एकीकृतकृषि प्रणाली का मुख्य उद्देश्य परिवार की सभी जरुरतें उस कृषि को द्वारा ही पूरा करना है, जिससे बाजार पर किसान की निर्भरता को कम किया जा सके। किसान परिवार की अनाज, दाल, तेल, दूध, फल, सब्जी, मांस एवं अण्डा आदि की वर्ष भर कितनी जमीन की आवश्यकता है इन सभी चीजों का विशेष ध्यान इस क्रम में रखा जाता है।

पोषाहार सुरक्षा :-

इस कृषि मॉडल में यह भी उद्देश्य होता है कि किसान एवं उसके परिवार को खनिज तत्व एवं विटामिन से भरपूर भोज्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों, जिससे सबका स्वास्थ्य ठीक रहे।

आय में वृद्धि :-

एकीकृत कृषि प्रणाली का यह भी लक्ष्य है कि उपलब्ध कृषि जोत के विभिन्न घटकों को शामिल करके अधिकतम लाभ लिया जा सके।

गरीबी उन्मूलन :-

हमारे किसानों की आर्थिक दशा काफी खराब है। किसान पर कर्ज का भार बढ़ता जा रहा है। एक एकीकृत कृषि प्रणाली के द्वारा किसानों के पास जो भी साधन हैं उनका भरपूर उपयोग करके आर्थिक दशा को सुधारा जा सकता है।

रोजगार सृजन :-

भारत की सबसे प्रमुख समस्या बेरोजगारी की है। एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर किसान रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं और अपने परिवार के सदस्यों के अलावा दूसरे किसान भाई को भी रोजगार दे सकते हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार की काफी कमी महसूस की जा रही है। समन्वित कृषि प्रणाली के विविधिकरण एवं सघनीकरण के कारण प्रति इकाई समय प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक कृषि क्रियाओं के जुड़ने से अधिक कृषि मजदूरों की आवश्यकता पड़ने से ग्रामीण युवाओं की बेरोजगारी को काफी कम किया जा सकता है और रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

भूमि एवं जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग :-

एकीकृत कृषि प्रणाली का यह भी उद्देश्य है कि उपलब्ध जोत का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। इसका मतलब यह है कि किसान भाई किस कृषि व्यवसाय में कितनी भूमि का उपयोग करें कि उससे अधिकतम उत्पादन लिया जा सके। उसी प्रकार जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना आवश्यक है। उपलब्ध जल का बहुउपयोग सुनिश्चित करना है, ताकि एक एक बूंद जल का समुचित उपयोग करके अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके।

सतत कृषि विकास एवं पर्यावरण सुधार :-

कृषि का विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें समय-समय पर सुधार की आवश्यकता पड़ती रहती है और सुधार का क्रम जारी रहता है। एकीकृत कृषि प्रणाली द्वारा जो भी नए अनुसंधान है इस संदर्भ में होते रहेंगे उन को समय-समय पर इसमें शामिल करते रहना और नई समस्याओं का समाधान करना भी एक उद्देश्य है। एकीकृत कृषि प्रणाली के द्वारा पर्यावरण को काफी हद तक सुधारा जा सकता है। इससे पर्यावरण को साफ-सुथरा रखा जा सकता है।

समन्वित कृषि प्रणाली का औचित्य -

भारत जैसे विकासशील देश में इस तरह की कृषि प्रणाली को अपनाया जाना विभिन्न कारणों से उचित है:

  • बढ़ती जनसंख्या व सिमटती भूमि 
  • शहरीकरण व लोगों की बढ़ती आमदनी
  • बदलते आहार स्वरूप के कारण खाद्य पदार्थों की बढती हुई मांग
  • घटते चारागाह के कारण फसल उत्पादन में पशुपालन में बढ़ती प्रतिस्पर्धा 
  • पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को कम करने के लिए एवं 
  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने हेतु

समन्वित कृषि प्रणाली के लाभ -

कूड़े का उचित प्रबंधन एवं ऊर्जा की उपलब्ध्ता :- इस कृषि प्रणाली में एक घटक से उत्पन्न अवशेषों दूसरे घटक के लिए कच्चे माल का स्त्रोत बन जाता है, जैसे फसलों के उत्पाद या अवशेष पशुओं के चारे में तथा पशुओं का मल-मूत्र फसलों के लिए खाद में प्रयुक्त हो जाता है पशुओं का विभिन्न कृषि क्रियाओं यथा जुताई, पिसाई, भार-वहन आदि के निष्पादन में भी उपयोग किया जा सकता है।

अतिरिक्त आमदनी एवं प्राकृतिक संसाधनों का प्रभावी उपयोग :- दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद (दही, घी आदि)के अलावा गायों से प्राप्त मूत्र एवं गोबर का आयुर्वेदिक औषधियों व कीटनाशक के रूप में भी उपयोग कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। खेती में समाकलित विधियों का प्रयोग करके हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को अति दोहन से बचाकर भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित कर सकते हैं।

पोषक तत्वों का चक्र :- फसलो और पशुओं के बीच परस्पर निर्भरता स्थापित होने के एक के उत्पादन दूसरे के लिए उपयोगी हो जाते हैं। परंतु या चक्र विभिन्न घटकों की आवश्यकता की आंशिक पूर्ति ही कर सकता है। समाकलित फसल पशु प्रणाली आंशिक रूप से परस्पर निर्भर रहते हुए एक दूसरे के पूरक है।

ऊर्जा उत्पादन के लिए पशु गोबर का प्रभावी उपयोग :- गोबर के उपले बनाकर केवल ईंधन की तरह प्रयोग करने की बजाए उसका बायोगैस उत्पादन में उपयोग किया जाना चाहिए जिससे कि गांव में घरेलू (खाना पकाना, रोशनी करना) एवं विभिन्न उद्यमों (चक्की व पंप चलाना) के कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा आसानी से उपलब्ध होने के साथ उत्तम खाद भी मिल जाती है। गोबर गैस में 55-60 प्रतिशत मीथेन, 30-35 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड व शेष हाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि अन्य गैसें होती है। इसमें से मीथेन को अलग कर संपीड़ित करके परिवहन जैसे कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। पशुओं के मल-मूत्र को खुला सड़ने देने की बजाय एकदम से गोबर गैस बनाकर प्रयोग करने से ग्रीनहाउस प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।

Dr. Manisha Singodia, Dr. Sanjay Kumar Rewani, Dr. Sunil Rajoria

Dr. Manisha Singodia, Assistant Professor, Mahatma Jyotiba Fule Veterinary College, Jaipur (Rajasthan)

Dr. Sanjay Kumar Rewani, Assistant Professor, Post Graduate Institute of Veterinary Education and Research, Jaipur (Rajasthan)

Dr. Sunil Rajoria, Teaching Associate, Veterinary University Training & Research Center, Dungarpur (Rajasthan)

Corresponding Auther: Dr. Manisha Singodia

manishasingodia27@gmail.com