भेडों के प्रसूति रोग एवं उपचार

पशु संदेश, 18 March 2019

डॉ. नितिन मोहन गुप्ता एवं डॉ. मुकेश भार्गव

प्राचीन काल से ही मानव का सम्बन्ध भेड़ो के साथ है। ऐसा माना जाता है कि कांस्य युग के समय मे एशिया में भेड़ को सबसे पहले पालतू पशु बनाया गया था। भेड़ एक ऐसा पालतू जानवर है जो बहुत ही तेजी से विकास करता है तथा इनकी देखभाल करने में भी बहुत अधिक मेहनत करने की जरूरत नही होती है।यह एक ऐसा जानवर है जिसका पालन किसी भी प्रकार की जलवायु में किया जा सकता है। परन्तु भेड़ सामान्यतः कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रो में पाई जाती है। भेड़ पालन के लिए बहुत कम पूँजी और न ही बहुत ज्यादा देखरेख की ही आवश्यकता होती है इसीलिए प्राचीन काल से ही भेड़ों का पालन करना मानव का एक प्रमुख व्यवसाय रहा है।

प्रसूति काल से जुडी विभिन्न समस्यायें पशु उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। भेड पालकों को भेडों की प्रसूति जन्य रोगों की समुचित जानकारी के अभाव में काफी आर्थिक क्षति का सामना करना पडता है। इन रोगों के होने से जनन क्षमता में कमी के साथ-साथ दूध, मांस एवं ऊन के उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है। भेडों में होने वाले प्रमुख प्रसूति जन्य रोगों की जानकारी इस लेख में भेड पालकों को दी जा रही है-

1-योनी या बच्चे दानी का बाहर निकलनाः
सामान्यतः ब्याने के कुछ दिन पूर्व, ब्याते समय या ब्याने के कुछ घंटे बाद योनी, बच्चेदानी या दोनों शरीर से बाहर निकल आती है। ये रोग मुख्यतः अधिक उम्र वाली, कमजोर और कई बार ब्यायी हुई भेडों में अधिक होता हैं। भेडों को गर्भावस्था में अच्छी खुराक की कमी से भी यह रोग हो जाता हैं। भेड बार-बार उठने बैठने के साथ पेट में दर्द महसूस करती हैंे और ब्याने के समय होने वाला जोर लगाती है। फलस्वरूप बच्चे दानी योनिद्वार से बाहर निकल आती हैं अधिकांश भेडें खाना-पीना छोड़ देती हैं और लेट जाती हैं। बैचेनी और बुखार भी हो जाता हैं 

उपचार-

जिन भेडों की योनि या बच्चे दानी प्रमुख के समय बाहर आ गई हो, उनके बाहर निकले हिस्से को लाल दवा (1:1000) के घोल के गुनगुने पानी से भली भांति साफ करके, बाहर आये जेर को बच्चे दानी से धीरे-धीरे अलग करना चाहिये। बच्चे दानी के बाहर निकले भाग पर बर्फ का ठंड़ा पानी ड़ालने से योनी या बच्चे दानी का आकार कम हो जाता हैं और बाहर निकले भाग को पुनः उसके स्वाभाविक स्थान पर पहुॅचाने में आसानी होती हैं। एन्टीसैप्टिक क्रीम लगाने के पश्चात बाहर निकल भाग को धीरे-धीरे अंदर नहीं जाये तो इस पार चीनी ड़ालकर कुछ समय बाद पुनः अन्दर करने की कोशिश करनी चाहिये। इस बात का ध्यान रखें कि बाहर निकले हिस्से पर मच्छर मक्खियां आदि न बैठें तथा पक्षी इत्यादि भी न नोचें। बच्चे दानी के पूरी तरह से अपनी स्वाभाविक स्थिति में आने पर पशु की योनि के ऊपर से नीचे तक रस्सी पुनः बाहर न आने पाये। पशु को एकांत स्थान पर इस प्रकार रखें जिससे उसके शरीर का पिछला हिस्सा ऊपर तथा आगे का हिस्सा नीचे की तरफ रहे। भेड को ऐसा आहार कदापि न दें जिससे कब्ज, बदहजमी या दस्त होने की सम्भावना हो।

रोग के प्रमुख कारण हैं-

बच्चे दानी का मुॅह छोटा होना, बच्चे का सामान्य आकार से बड़ा होना, बच्चे की विकृति, सामान्य अवस्था में बच्चे का बाहर न आना तथा बच्चेदानी के भीतरी विकार से ब्याने के समय सामान्य प्रसव पीड़ा का न होना इत्यादि। कई बार ब्यायी हुई अधिक उम्र व कमजोर भेडें ब्याने के समय सामान्य प्रसव पीड़ा न करके बच्चा निकालने में असमर्थ होती हैं। इसके फलस्वरूप बच्चा बच्चेदानी में मरने के बाद जेर सहित सड़ने लगता हैं। यह स्थिति कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती हैं। भेड पालको को चाहियें कि अगर पशु गर्भावस्था की अवधि में पूरा होने पर प्रसव का इंतजार न करके शीघ्र पशु चिकित्सक से सम्पर्क करेें। प्रसव पीड़ा सामान्य परन्तु अधिक समय लगने पर भेड की यथा सम्भव मदद करें। सामान्य प्रसव में बच्चे के दोनों अगले पैर बिना मुड़े तथा पूंछ या केवल सिर या अगला तथा पिछला पैर या उल्टा बच्चा आ रहा हो तो ब्याने का इंतजार तथा अनावश्यक हस्तक्षेप न करके शीघ्र पशु चिकित्सक के पास ले जायें, अन्यथा यह भेड एवं बच्चे दोनों के लिये जानलेवा हो सकता हैं।

2- जेर न गिरनाः

सामान्य प्रसव के उपरान्त भेडों में जेर प्रायः 3 से 6 घ्ंाटे में निकल जाता हैं समय से जेर न ड़ालने के कारण में गर्भावस्था के अंतिम दो महीनों में गर्भपात, असामान्य प्रसव, ड़िस्टोकिया या बच्चे का न निकलना, ब्याने की विभिन्न अवस्थाओं में हारमोन्स का असंतुलन इत्यादि। इन कारणों से या तो पूरा जेर नहीं निकलता या वह यानिद्वार से बाहर लटकता दिखाई देता हैं जिससे भेड अनमनी हो जाती हैं तथा बुखार के कारण खाना पीना छ़ोड़ देती हैं। जेर के कई दिन तक न निकलने पर उसका बच्चा बच्चेदानी में सड़ना शुरू होकर वह संक्रमण के कारण रोग ग्रस्त हो जाती है। फलस्वरूप बच्चेदानी में मवाद पड़ जाती हैं और पशु के मरने की सम्भावना तक बन जाती हैं।

उपचार

प्रसव के उपरान्त 3 से 6 घ्ंटे में जेर निकल आता हैं। कभी-कभी लापरवाही में ध्यान न देने से भेड अपने जेर को खा भी लेती हैं। भेड पालक यह समझते हैं कि भेड ने जेर नहीं गिराया हैं। इसको खाने से पेट में जहर फैलने की सम्भावना रहती हैं। तथा दूध उत्पादन पर बुरा असर पड़ता हैं। भेड के सामान्य अवधि में जेर न गिरने पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें। अगर जेर का अधिकांश भाग योनि द्वार से बाहर लटकता दिखाई दे तो उसे किसी चिमटी से पकड़कर अलग किया जा सकता हैं। निकले जेर को कहीं दूर जमीन के नीचे बिना बुझे चूने के साथ गाड़ दें। बच्चे दानी में एक फयूरिया बोलस तथा एन्टीबायोटिक के तीन इंजेक्शन एक दिन के अंतर से पशु चिकित्सक की देखरेख में लगवायें।

3- अन्य रोग

ऊपर बताये गये प्रसूतिजनक रोगों के अलावा कुछ और जनन से सम्बन्धित रोग ब्याने के समय या बाद में जननांगों में आये विकार से भी उत्पन्न हो जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं अण्ड़नाल, बच्चे दानी, योनि, तथा ग्रीवा नाल का सूजना इत्यादि। कभी-कभी प्रसव के समय बच्चा न निकलने पर उसको खीचकर निकालने से जननांगों में घाव या बच्चेदानी तथा योनि फट जाती हैं। जनन अंगों में आई सूजन और बाद में मवाद पड़ना मुख्यतया संक्रमण के कारण होता हैं।

उपचार व बचावः

इन रोगों से ग्रसित भेडों को स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर पशु चिकित्सक के अनुसार उपचार करायें। पशुओं के स्वस्थ होकर पुनः गर्मी के लक्षण नियमित रूप से प्रकट करने पर पशु चिकित्सक के परामर्श से जनन करायें। उपचार की अवधि में रोग पीड़ित भेडों का दूध प्रयोग में न लायें। प्रसूतिजनक रोगों में पशु चिकित्सक की सलाह का पूरी तरह से पालन करें।

डॉ. नितिन मोहन गुप्ता1 एवं डॉ. मुकेश भार्गव2
1.पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ, भेड प्रजनन प्रक्षेत्र, पडोरा जिला शिवपुरी म.प्र.
2.कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला शिवपुरी म.प्र

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