बकरियों को पेट विकारों से कैसे बचाये 

पशु संदेश, 28 June 2021

डा. नितिन मोहन गुप्ता1, डा. एस एस तोमर2 , डा. अमित झा3

1. पी.एच.डी. स्कालर , 2. प्राध्यापक एवं विभाग प्रमुख (प्रभारी अधिष्ठाता), 3.सहायक प्राध्यापक

पशु प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग

पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय रीवा म.प्र.

संक्रामक रोगों के अतिरिक्त बकरियों के स्वास्थ्य को कई अन्य प्रकार के भी रोग प्रभावित करते हैं। यह रोग मुख्यतः पाचन एवं चयापचय प्रक्रिया संबंधी होते है जो की बकरीयों के खाने के प्रकार एवं समय में परिवर्तन के कारण होते हैं। कुछ प्रमुख रोग निम्नानुसार हैं-

1 सामान्य अपचन (इनडाईजेशन)-

यह स्थिति आहार/चारे में बदलाव लाने व ज्यादा मात्रा में खा लेने से होती हैं। प्रभावित बकरी खाना पीन छोड देती है एवं सुस्त पड़ जाती हैं जिससे दूध उत्पादन में भी काफी कमी आ जाती है। मल कम और कड़ा हो जाता है। सामान्यतः यह रोग 1-2 दिन मे स्वयं ठीक हो जाता हैं, इससे ज्यादा समय होने पर पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिये अन्यथा अधिक समय व्यतीत होने पर प्रभावित पशु की मृत्यु भी हो सकती है।

उपचार- रूमन की गति को बढ़ाते हेतु रूमेनटान/एनोरेक्सान/बोवीरम/फलोराटोन आदि दवाओं की आधी से एक गोली सुबह व शाम तीन दिन तक दें। जिसमें रूमन के जीवाणु अपना कार्य पूर्ववत प्रारम्भ कर सकें।

  • भूख न लगने व मेंगनी कम आने पर मैगसल्फ (10-20 ग्राम) तथा 15-20 ग्राम नमक को मिलाकर दीया जा सकता हैं। साथ में भूखवर्धक पाउड़र जैसें हिमालय बतीसा इत्यादि 10-15 ग्राम प्रत्येक खुराक में मिलाकर दे सकते हैं।
  • उक्त चिकित्सा के साथ साथ बिटामिन बी-कम्प्लेक्स व अन्य विटामिन इन्जेक्शन द्वारा देने से पशु को लाभ होगा। इसके लिये बेलामाइल/बिविनाल फोर्ट के इन्जेक्शन 2-3 मि.ली. की मात्रा में लगा सकते हैं।
  • अपच का कोई विशेष कारण न हो तब उक्त चिकित्सा से 80-90 प्रतिशत रोग ग्रस्त बकरिया स्वस्थ हो जाती हैं।

2 अफरा-

पशु आहार अधिक मात्रा में व हरा चारा या गैस तैयार करने वाले अन्य खाद्य पदार्थ (आलू, चावल व अन्य अनाज) खाने से पेट के प्रमुख भाग रूमन में अधिक मात्रा में गैस बनने लगती हैं। कभी-कभी अन्न नलिका पर आयी सूजन या रूकावट जिसके कारण पेट में तैयार गैस बाहर ना निकल पाने की स्थिति में यह बीमारी होने की संभावना रहती हैं। इस बीमारी में बकरियों में वायी तरफ का हिस्सा जिसे रूमन कहा जाता है, एकदम अलग से फूला हुआ दिखता हैं। वहा पर हाथ से दबाने पर पेट के अन्दर गैस का दबाव मालूम होता हैं एवं रूमन पर हाथ से ठोंकने पर आवाज आती हैं। पेट के ज्यादा फूल जाने पर पशु को सांस लेने में तकलीफ होती हैं क्योकि गैस के कारण फूले हुये पेट का दबाव फेफड़ों पर पड़ता हैं। सांस तीव्र गति से चलती हैं, रोग के तीव्र अवस्था में अचानक मृत्यु भी हो सकती है।

उपचार- रोग की तीव्र अवस्था में तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क करना चहिये जिसमें सर्जरी द्वारा तुरन्त गैस को बाहर निकाला जा सकें।

  • तारपीन का तेल और खाने वाले तेल को 50 मि.ली. मिलाकर सुबह-श्याम पिलाना चाहियें। इसमें 2-5 ग्राम हींग देने से लाभ होता है।
  • ब्लाटोसिल 15-20 मि.ली. या टिंपाल 15-20 मि.ली. पानी में घेालकर पिलायें।
  • पीड़ित बकरी के सामने वाले पैर जमीन के ऊॅचे भाग पर रखकर खड़ा करें ताकि सीने पर आया दबाव कम हो व सांस की तकलीफ कम हो सकें।
  • पेट के वायें हिस्से में फूले हुये भाग में मोटी लम्बी सूई या ट्रोकार एवं कैन्यूला से छेद करके गैस को तत्काल बाहर निकाला जा सकता हैं।

अन्य प्रकार के अफरा रोग, जिसमें रोग ग्रस्त बकरी को पेट फूलने की शिकायत बार बार होती हैं, पशु की अच्छी तरह से जांच पशु चिकित्सक द्वारा करानी चाहिये क्योकि बकरी द्वारा चारे के साथ खाये जाने वाली बाहरी वस्तुयें जैसे तार या कील पेट की दीवारों में चुभने के कारण अफरा बना रहता हैं। तथा अपच की शिकायत रहती हैं। इस दशा में रोग ग्रस्त पशु पीठ व कमर के हिस्सों को झुकाकर खड़ा होता हैं। इस दशा में शल्य क्रिया के द्वारा तार या कील इत्यादि को बाहर निकालनें पर ही रोग से छुटकारा मिल पाता हैं।

बचाव

  • नियमित खिलाये जाने वाले चारे में अचानक ज्यादा बदलाव नहीं करना चाहियें। हरा चारा ज्यादा मात्रा में नहीं खिलाना चाहियें।
  • घर में रखा दाना आटा व गेहू को सुरक्षित रखना चाहियें जिससे बकरियां अचानक ज्यादा न खा सके।
  • रोग का शीघ्र उपचार कराना चाहियें।
  • पशुओं को दिये जाने वाले चारें में कोई बाहरी वस्तु जैसे कील, सुई, तार, बोल्ट इत्यादि न ही हो, इसको सुनिश्चित करना चाहिये।

3 रूमन अम्लता (एसिड़ोसिस)-

जब बकरी अचानक आवश्यकता से अधिक गेहॅू, जौ, दलिया, आटा या दाना खा जाती हैं तो रूमन (पेट का बड़ा भाग) मे मौजूद द्रव ज्यादा अम्लीय हो जाता हैं। जिससे बकरी मे अपच भूख का न लगना, अलग एवं सुस्त खड़े हो जाना, पेट, फूल जाना, दस्त एवं शरीर का निर्जली करण हो जाता हैं। रोग तीव्र अवस्था में पशु लेट जाता हैं तथा अचानक मृत्यु भी हो जाती हैं। प्रायः यह देखने में आता हैं कि गेहॅू की खड़ी फसल एवं गेहॅू निकालते समय चराई के दौरान बकरियों को ज्यादा मात्रा में गेहॅू खाने को मिल जाता हैं। बकरियों को सघन पद्वति से पाले जाने की दशा में कुछ बकरियों द्वारा अक्सर ज्यादा दाना खा लेने से इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती हैं।

उपचार 

  • रोग को तीव्र अवस्था में पशु चिकित्सक से तत्काल सम्पर्क कर उपचार कराना चाहियें।
  • इसके अन्तर्गत 2-5 प्रतिशत सोड़ा बाईकार्बोनेट का इन्जेक्शन शिरा में दिया जाता हैं।
  • रूमन की शल्य क्रिया करके अतिरिक्त अनाज की मात्रा को निकाला जा सकता हैं।
  • रोग की मध्य अवस्था में बकरी को खाने वाला सोड़ा 50 ग्राम सुबह व शाम देना चाहियें। 5 रोग से बचाव के लिये इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहियें कि पशु को एक साथ ज्यादा मात्रा में कार्बोहाईडेट वाला चारा या दाना न दिया जाए।

4 यूरिया विषाक्तता-

यूरिया नाईट्रोजन युक्त एक प्रमुख रासायनिक खाद हैं जिस के ज्यादा खाने से विषबाधा होती हैं। प्रायः देखने में आता हैं कि जब किसान गेहॅू की खेती में यूरिया का छिड़काव करते हैं। कभी-कभी बकरी या अन्य जानवर द्वारा इसे अचानक खा लिया जाता हैं। फलस्वरूप पेट क्षारिय हो जाता हैं। इसकी विषक्तता में तेज पेट दर्द, कंपकपाहट, पैरो से लड़खड़ाना, लम्बी-लम्बी स्वांस लेना, जुगुलर नाडी़ की गति का बढ़ जाना, पशु का चिल्लाना व मरने से पहले काफी तड़पना व भंयकर दस्त मुख्य लक्षण हैं।

उपचार

एसिटिक एसिड्र को 50-100 मि.लि. पानी या तेल में मिलाकर पिलाना चाहियें। सीधे रूमन इंजेक्शन द्वारा देना ज्यादा सुरक्षित एवं लाभकारी होता हैं।

बकरी को बीमारियों से दूर रखने के कुछ उपाय

  • बकरी के मल मूत्र इत्यादि को नियमित तौर पर बकरीयों के स्थान से दूर फेकें।
  • पशुधन को हमेशा पौष्टिक आहार दें एवं सडा गला देने से बचें।
  • बकरीयों को उनकी अवस्था एवं उम्र के अनुसार अलग अलग रहने की व्यवस्था करें।
  • नई खरीदी हुई बकरीयों को कभी भी पहले से रहने वाली बकरीयों के साथ ना रखें।
  • बकरी फार्म पर बीमार बकरीयों के रहने की व्यवस्था अलग से करें, उनको स्वस्थ पशुओं के साथ ना मिलायें।
  • अन्यत्र से बकरी खरीदते समय अच्छी तरह से जांच लें कि पशुधन पहले से कीसी बीमारी से ग्रसित तो नही है।
  • यदि बकरी की कारणवश किसी बीमारी से मृत्यु हो जाती है तो ध्यान रखें कि उस बकरी की मृत शरीर को जला दें या मिटटी के अंदर बहुत गहराई में दबा दें।
  • ठंड और बरसात के मौसम में विशेष ध्यान दें क्योंकि इन मौसम में मृत्यु दर अधिक रहती है।
  • बीमारियों से बचने के लिये अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय में जायें और पशु चिकित्सक की सलाह पर समय समय पर होने वाले टीकाकरण कराकर अपने पशुधन को स्वस्थ रखें।