पशुओं के गर्भाशय में संक्रमण कारण और रोकथाम

Pashu Sandesh, 08 April 2020

जीतेंद्र अग्रवाल, विकास सचान, अतुल सक्सेना, अनुज कुमार

पशुओं का देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान है. पशु किसानो की आय का मुख्य श्रोत भी है। लेकिन इसके लिए पशु का उत्पादन एवं प्रजनन दोनों का उत्तम होना आवश्यक है। दुग्ध उत्पादन भी तभी श्रेष्ठ होगा जब पशु का प्रजनन चक्र सही समय से चलेगा। प्रजनन चक्र सही चलने के लिए गर्भाशय का स्वस्थ्य होना जरूरी है। इसके लिए पशुपालको को पशुओं के गर्भाशय में होने वाले संक्रमण के कारण एवं उनके रोकथाम के उपाय पता होने चाहिए ।

पशु के गर्भाशय में संक्रमण का कारण पशु का सही प्रबंधन ना होना है। पशु को गन्दगी वाले स्थान में रखने से या पशु की प्रतिदिन साफ़ सफाई ना करने के कारण संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है, तथा पशु के गर्भाशय में कई तरह की बीमारियाँ होने लगती है। पशु में शुरुआती संक्रमण बच्चेदानी (योनी) के रास्ते में होता है जिसकी पहचान योनी से आने वाली मवाद द्रव्य के रूप में की जाती है। बच्चेदानी से पीले या सफ़ेद रंग की जेरी आती है इस बीमारी से बचने के लिए पशु की पूछ के नीचे के हिस्से को साफ़ संक्रमण रहित पानी से धोना चाहिए। बच्चेदानी के रास्ते एंटीबायोटिक का जीली के साथ लेप किया जा सकता है। इसके लिए पशुचिलित्सक की सलाह लेना आवश्यक है। ये संक्रमण धीरे धीरे योनी से बच्चेदानी तक पहुँच जाता है। शुरुआती अवस्था में बच्चेदानी की सबसे अन्दर वाली परत का संक्रमण होता है जिससे उसमे सूजन आ जाती है इसे एंडोमेटराइटिस कहते है।

संक्रमण दो प्रकार होता है:

पहला जिसमे जेरी तो साफ़ दिखाई देती है लेकिन फिर भी बच्चेदानी में हल्का संक्रमण रहता है, जिसके कारण भ्रूण स्थापित नहीं हो पाता है तथा पशु गर्भ धारण नहीं कर पाता है।

दूसरे तरह के संक्रमण में जेरी गंदली (पीली या सफ़ेद) दिखाई देती है।

एंडोमेटराइटिस में पशु की भूंख सामान्य रह सकती है तथा शुरुआती दिनों में दुग्ध उत्पादन पर कोई फर्क नही पड़ता है. इस प्रकार की बीमारी से बचने के लिए भी पशु की प्रतिदिन साफ़ सफाई का ध्यान रखना चाहिए । तुरंत पशुचिकित्सक की सलाह लें तथा आवश्यकतानुसार निदान करें, पशु को बिलकुल साफ़ जेरी दिखाई देने पर ही गर्भित कराएं। बच्चेदानी की दूसरी बीमारी में मवाद प्रचुर मात्र में भरा रहता है एवं समय समय पर बाहर बहता रहता है। मवाद की मात्र कम या ज्यादा हो सकती है। इस बीमारी में कभी कभी बच्चेदानी का आकार मवाद भरे होने के कारण 2-3 माह के गर्भित पशु जितना बड़ा हो जाता है। इस बीमारी की पहचान मवाद द्रव्य का योनी के रास्ते निकलना है। इस बीमारी में पशु की भूंख सामान्य रह सकती है तथा शुरुआती दिनों में दुग्ध उत्पादन पर ख़ास फर्क नही जान पड़ता है। इसके इलाज के लिए पशु के मवाद को बच्चेदानी की संकुचन से बाहर निकलवाने एवं सफाई के लिए उपयुक्त दवा का प्रयोग किसी पशुचिकित्सक के द्वारा करवाना चाहिए एवं उचित परामर्श लेना चाहिए।

पशु में बच्चे दानी की एक और बीमारी होती है जिसे मैट्राइटीस कहते है। सामान्यतः यह बीमारी पशु के ब्याने के बाद होती है। यदि पशु के ब्याने के बाद पशु की साफ़ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है तो पशु की बच्चेदानी के रास्ते संक्रमण अन्दर चला जाता है। इस बीमारी में योनी से बदबूदार गंदा पीले सफ़ेद रंग का द्रव्य भी बाहर आता रहता है। पशु की भूख कम होते होते लगभग ख़त्म हो जाती है। पशु को बुखार भी रहता है एवं धीरे पशु का दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है तथा पशु कमजोर होने लगता है। यदि इस प्रकार के लक्षण ब्याने के कुछ दिनों के बाद दिखाई देने लगें तो तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए ।

पशु के ब्याने के बाद इस बीमारी का एक कारण पशु की जेर का पूर्णतयः बहार ना निकलना भी होता है। अर्थात जेर का कुछ हिस्सा पशु की बच्चेदानी में रह जाता है जो धीरे धीरे सड़ने लगता है और संक्रमण होने के कारण बदबूदार द्रव्य बहार आने लगता है। इस बीमारी के बचाव के लिए जरूरी है की ब्याने के बाद यदि 12 घंटे के अन्दर जेर पूर्णतः बाहर ना निकले तो तुरंत पशुचिकित्सक से इलाज करवाना चाहिए एवं निर्देशानुसार दवाएं देनी चाहिए। कभी कभी बच्चेदानी में पतला पानी जैसा द्रव्यहै या श्लेष्म जैसा थोडा गाढा एवं चिकना पदार्थ भर जाता है जिसे क्रमशः हाइड्रोमेट्रा एवं म्युकोमेट्रा कहते है। इस अवस्था में पशु के गर्भित होने का भ्रम पैदा होता है क्योंकि गर्भाशय का अकार बड़ा होता है और साथ ही पशु लम्बे समय तक गर्मी या मद नहीं दिखाता है। इस बीमारी में भी बच्चेदानी की सफाई एवं अन्य निराकरण हेतु पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए ।

उपर्युक्त जानकारी एवं सलाह को ध्यान में रख कर पशु प्रबंधन करने से निश्चित रूप से पशुपालक अपने पशु की बच्चेदानी से सम्बंधित रोंगों के कारण होने वाले नुकसान से बच जा सकते हैं।

जीतेंद्र अग्रवाल, विकास सचान, अतुल सक्सेना, अनुज कुमार
मादा पशु रोग विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा

 

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