भगवान महावीर ने 'अहिंसा परमो धर्मः' के संदेश से जीवन जीने की कला सिखाई

Pashu Sandesh, 06 March 2020

लेखक : गिरीश शाह

आज समूचा विश्व कोरोना वायरस की जानलेवा भय से जूझ रहा है। चाइना जैसे वन्य जंतुओं को विनाश की कगार पर ले जाने वाला देश को समूची दुनिया कोस रही है। ऐसे परिपेक्ष में भारतीय संस्कृति, रीति-रिवाजों एवं जीवन शैली "अहिंसा परमो धर्म:" का संदेश बताने वाले भगवान महावीर की वाणी से दुनिया भर में सीख ली जाती है। इस महान संदेश को याद कर इस साल तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती 6 अप्रैल को मनाई जाती है । दरअसल, जन्म-जयंती जेसे शब्द हमारी परंपरामें प्रयोग नहीं किए जाते है। भगवान का जन्म पूरे विश्व के कल्याण के लिए हुआ था।  पहला  कल्याणक माता की कोख में अवतरण हुआ इसलिए च्यवन कल्याणक कहते है।  भगवान के जनम को दूसरा कल्याणक अथवा जनम कल्याणक कहते है जब भगवान दीक्षा लेते है सब कुछ त्याग करके इसे तीसरा कल्याणक कहते है।  चौथा है जब उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान होता है उसे केवलज्ञान कल्याणक कहते है और पांचवा है जब भगवान का निर्वाण होता है इसे निर्वाण या मोक्ष कल्याणक कहते है।  इस प्रकार भगवान के जीवन में एसे पांच कल्याणक होते है।

जैन धर्म परंपरा यह अनादि से चली आ रही है।  उस परंपरा में परमात्मा आदेश्वर भगवान जो हमारे चोवीस तीर्थंकर में से प्रथम थे, इन्होने क्षेत्रकाल के प्रथम धर्म की स्थापना की।  हम उसे शासन स्थापना कहते है, जैसे महाराष्ट्र शासन , गुजरात शासन, केन्द्र शासन वैसे ही शासन का मतलब व्यवस्था। व्यवस्था का स्थापन भगवान महावीर ने किया।  अक्षय तृतीया के सात दिन के बाद वैशाख शुक्ल ग्यारस को इस समय के 21 हजार साल की शासन की स्थापना महावीर भगवान ने की। कोई चीज उत्पन्न होती है, स्थिर होती है ओर फिर नाश होती है।  यह सनातन सत्य है।  सनातन सत्य के आधार पर परमात्मा फिर जो केवल ज्ञान है, प्रकाश होता है, इसके माध्यम से प्रवचन करते है  और प्रवचन के माध्यम से वह पूरे विश्व को, प्रजा को, समाज को जीवन जीने की कला सिखाते है।  मतलब कम से कम पाप करके जीवन कैसे जिया जाये उसकी सारी कलाए भगवान सिखाते है।  मै यह मानता हु कि जैन धर्म जीवन जीने की पद्धति है।

आजकल लोग मजाक मजाक में कहते है कि क्या है ये, ये नहीं खाना, वह नहीं खाना, रात को नहीं खाना,कंदमूल नहीं खाना, ये नहीं करना,वो नहीं करना  लेकिन अब कोरोना वायरस से सब संकट में आ गए है तब उन्हें समझ में आ रहा है कि  नियमों का पालन एवं परहेज करना कितना जरुरी है | अब लोग हमारी सनातन परंपरा को स्वीकार कर रहे है और हाथ मिलाने के बजाये नमस्ते कह कर अभिनंदन कर रहे है। हमारे यहाँ तो बहुत पहले से ही यह परंपरा अस्तित्व में है हमें सर्व प्रथम प्रणाम सिखाया गया था।  आज डर कर मास्क लगा रहे है। हम तो पहले से ही मास्क लगाते आ रहे है।  हम मंदिर में भी भगवान की पूजा के लिए जाते है तो मास्क अष्टपड़ - रुमाल लगा कर जाते है।  भगवान तो प्रतिमा रूप में है बावजूद इसके मुँह और नाक ढंके बिना भगवान की पूजा की मनाही है। इतना ही नहीं किसी से बात भी करोगे तो उस समय अष्टकोण रुमाल (मुह्प्त्ती) मुह पर रखकर ही बात करोगे।  हमारी परंपरा में स्थानकवासी जो परंपरा है वह तो मुह पर कपडे बांधकर ही रखते है।  कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में मास्क का बिजनेस बढ़ गया है।  लेकिन हमारे यहाँ तो पहले से ही है।

हमारे यहाँ मुह या खाँसी – छींक से निकलने वाला वायरस किसी अन्य तक न पहुंचे, किसी को कोई नुकसान न पहुंचाए, उसका भी ख्याल रखने की बात भगवान महावीर ने बताई थी। महावीर ने यही संदेश दिया था की दुसरो को तकलीफ न दो, ऐसा जीवन जियो।  और “जियो  और जीने दो” . भगवान महावीर से बड़ा कोई पर्यावरणप्रेमी कोई हो ही नहीं सकता।  इन्होंने सभी जीवमात्र के कल्याण की बात कही। आहार शास्त्र से लेकर जीवनशैली कैसी होनी चाहिए, इस बारे में भगवान महावीर ने संपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। आहार मीमांसा नामक ग्रंथ में बहुत ही विस्तारपूर्वक इसका वर्णन किया गया है।  इसके अलावा हमारा व्यवहार माता पिता के साथ,भाई बहन, मित्र, पड़ोसी आदि के साथ कैसा होना चाहिए इस सबंध में भी बताया गया है।

भगवान महावीर ने बहुत ही सुंदर तरीके से सामाजिक बंधुत्व के लिए अपनी भावना एवं विचार प्रस्तुत किया है। कहा कि  विश्व के संपूर्ण जीव हमारा कुटुंब है हमें  हमें मैत्रीभाव रखना चाहिए।  केवल अपने परिवार के साथ ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को अपना मानने की बात भगवान महावीर ने हमें सिखाई है।  भगवान ने कहा है की किसी भी जीव के प्रति मन में किसी प्रकार की दुर्भावना न रखे।  किसी भी प्राणी के प्रति अपना मन मुटाव हुआ हो तो “मिच्छामी दुक्कड़म”कह कर हमें उनसे क्षमा मांगनी चाहिए।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी लोक सभा सदन में “मिच्छामी दुक्कड़म” कह कर क्षमा याचना कर अपनी भावनाए सभी के बीच जाहिर की है।  यदि रात के समय भी हम से कोई गलती हो जाये या किसीके प्रति मन मे ख्याल भी आ जाए तो सुबह उठकर “मिच्छामी दुक्कड़म” कह कर हम मांफी मागते है और पश्चाताप करते है।  जीवन मात्र के प्रति करुणा का भाव रखने का विश्व संदेश सामाजिक बंधुत्व के तहत भगवान महावीर ने दिया है।

समस्त महाजन संस्था भगवान महावीर भगवान के किन आदेशो पर चलते हुए ग्रामविकास के सपने को साकार करने के लिए कार्यरत है ? भगवान महावीर ने ग्रामविकास के लिए क्या उपदेश दिया है ? मैंने पहले ही कहा था की भगवान महावीर सबसे बड़े पर्यावरण प्रेमी थे, वह पेड़ के पत्ते तक नहीं तोड़ते थे, वह पेड़ के पत्ते में भी जीव है ऐसा सोचते थे।  क्योंकि उन्हें परमात्मा को जो संपूर्ण सत्य प्रकाश ज्ञान हुआ वह वृक्ष के निचे हुआ और वह भी नदी किनारे हुआ।  नदी और वृक्ष सबसे समीप भगवान रहते है, यूँ  कह सकते है की उनसे जुड़ गए है।  यदि ऐसा नहीं होता तो बड़े बड़े राजभवन में भी परमात्मा का सत्य ज्ञान प्रकाशित होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।  इसका अर्थ है परमात्मा नदी-वृक्ष प्रकृति से गहरे जुड़ गए है।  अभी यह कह सकते है की परमात्मा से संपर्क स्थापित करने का एन्टीना तो यही है।  भारत एक समय सोने की चिड़िया कहा जाता था, भारत सोने की चिड़िया तभी रहेगी जब हम पशु कल्याण,वृक्ष कल्याण,जल कल्याण इन तीनो को संरक्षित एवं संवर्धित कर पायेगे।  ग्रामविकास के संदर्भ में भगवान महावीर ने यह सारी बातो का उपदेश दिया है और समस्त महाजन संस्था भगवान के विचारों की पूर्ती के लिए ही ग्रामविकास के लिए पूरी तन्मयता से जूडी हुई है।

भगवान महावीर के विचार कालजयी है, वे सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे मै मानता हु की आज भी वह 100  प्रतिशत प्रासंगिक है।  जीवन जीनेका जो संदेश भगवान महावीर ने संसार को दिया है यही इस तरह से अखिल विश्व जीवन जीना शुरू करदे तो शांति, सदाचार, सौहार्द, संपन्नता और चारो ओर आनंद ही आनंद हो जायेगा।  कोई किसी का दुश्मन नहीं रहेंगा।  विश्व में कही भी युध्ध नहीं होगा।  सभी मिलजुल कर रहेंगे।  दुनिया आज पैसो के पीछे भाग रही है।  संवेदनहीन हो चले है, तनावभर जीवन लोग जी रहे है। भगवान महावीर ने इस समय ही कह दिया था की परिग्रही बनो अर्थात एक मर्यादा में रह कर ही पूण्य एवं पुरुषार्थ के बल पर प्राप्त मात्रा में जो धन आपको मिले, उससे ही ख़ुशी ख़ुशी अपने जीवन का निर्वाह करो।  इससे आप सदा आनंदित भी रहोगे और तनाव भी नहीं होगा। भगवान महावीर ने विषयुक्त आहार का सेवन करने की मनाही  की है।  ऑर्गेनिक खेती का ही अन्न सेवन करने के योग्य है। सर्व प्रथम अहिंसा का संदेश इन्होंने ही दिया।  किसी जीव के साथ हिंसा मत करो।  एसी अनेकाअनेक सुंदर व्यवस्थाए इन्होंने बताई।  इसीलिए भगवान महावीर जन्मकल्याणक के शुभ अवसर पर मेरा यही संदेश है की स्वस्थ, निरोगी, सहस्तित्व के साथ प्रेमपूर्वक जीना चाहते हो तो भगवान महावीर के बताए रास्तो पर चलो। उससे सभी का भला होगा।  भगवान महावीर के विचारो को अमल में लाने पर ही जीवन का कल्याण निहित है।

मेरे गुरुदेव परम तारक पन्यास चंद्रशेखरविजय महाराज की प्रेरणा ओर आशीर्वाद से वर्ष 1994 -1996 से मैंने सामाजिक कार्य की शरुआत की और इसके बाद 2002 में समस्त महाजन संस्था की स्थापना की।  हमने केवल जैन समाज के नामसे इस ट्रस्ट की शरुआत नहीं की क्योंकि हमारे भगवान तो सब के है। इसीलिए सभी के लिए हमने समस्त महाजन अर्थात अच्छे लोगो का समूह, इस “समस्त महाजन” संस्था नामसे ट्रस्ट की शरुआत की।  आज विश्वमे सज्जनों की संख्या बढे तो दुर्जनोका प्रभाव कम हो जाएगा।  सज्जनों की निष्क्रियता से ही सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। यदि सज्जन शक्ति सक्रिय हो जाये तो विश्व का कल्याण हो जायेगा।  हमने भारत या मुंबई महाजन नाम नहीं दिया बल्कि सपूर्ण सृष्टि के कल्याण के पवित्र भावना के साथ समस्त महाजन संस्था नाम दिया। विश्व के सभी अच्छे लोग एक अच्छी विचारधारा के साथ जुड़े।  इस भावना के साथ भगवान महावीर का संदेश है “सवी जीव करू शाशन रती” अर्थात सभी जीवों को जीने का अधिकार है भगवान महावीर के उपदेशो के अनुरूप हमने सभी प्राणियों एवं पंच महाभूतों जिनमे पृथ्वी , आकाश, वायु , जल, अग्नि, तथा प्रकृति यानी पर्यावरण की रक्षा ,सर्वधन को अपना ध्येय मानकर कार्य कर रहे है ; ताकि परमेश्वर प्रदत इस सृष्टि को अधिक सुंदर बनाया जा सके मेरा सभी अच्छे लोगो से यही आग्रह है कि वह एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत से इस इश्वरी कार्य में सम्मिलित हो जाये और दुष्ट तामसिक पाशविक शक्तिओं को परास्त करे।  तभी यह संसार फिर से मंगल ग्राम बन पायेगा और यह दायित्व अच्छे सज्जन लोगो पर ही है।

जैसे महावीरजी ने जल तत्व की बात की तो हमने गाँव – गाँव में तालाब, कुए, नदी- नाले आदि की पुनः व्यवस्था कर गाँववासियों को पानी के मामले में आत्म निर्भर बनाया। हमने यह अभियान चलाया की गाँव के प्रत्येक व्यक्ति 16  वृक्ष लगाए।मान लो किसी गाँव ने 1000  लोग रहते है  और वे सभी सोलह सोलह वृक्ष लगाते है, तो कुल 16 ,000  वृक्ष गाँव में लग जायेगे ओर गाँव नंदनवन बन जायेगा।  इससे किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। हर गाँव हर व्यक्ति स्वावलंबी बने।  पैसे कमाने के लिए कही बाहर जाने की जरूरत नहीं है।  पहले हर गाँव में पशुपालन और कृषि व्यवस्था थी। इससे उनकी आमदनी होती थी।  दूध, दही, धी, मख्खन एवं अनाज आदि के व्यापर से ग्रामीण लोग समृद्ध थे।  हम फिर से पुरानी ग्रामीण व्यवस्था को जीवंत करने के लिए काम कर रहे है और भगवान महावीर के विचारो को अपने सामाजिक कार्यो के माध्यम से जन – जन तक पहुंचा रहे है।

देखिए , ऐसा है की भगवान ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि संकट के समय पीडितो की सेवा सहायता करनी चाहिए।  अभी भी हमें कोई पीड़ित व्यक्ति मिले तो हमसे जो भी यथायोग्य सेवा हो सकती है, वह करनी चाहिए।  प्राकृतिक आपदा की बात करे तो उस समय पशुपक्षी और मानव आदि सभी संकट में पड़ जाते है।  उनको बचाना तो सर्वश्रेष्ठ धर्म है।  हमने कश्मीर में बाढ़ आने पर वहा भी काम किया था।  हमने तब यह सोचा की वह कोई भी हो वह मानव है और प्राकृतिक आपदा के समय हमे  उनकी सहायता करनी चाहिए, यही हमारा धर्म हमें सिखाता है।  इसी भावना के साथ हमने केरल से लेकर नेपाल आदि सभी जगहों पर राहत कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ओर पीडितो को यथा संभव सहायता प्रदान की।  भगवान महावीर ने भी हमें यही सन्देश दिया है कि संकट के समय पीडित लोगो की मदद व सेवा करो.  हम उनकी ही प्रेरणा से यह सारे कार्य कर रहे है।

हर लोग जो अध्ययन-मनन कर विवेकशील बनते है वह सभी महाजन ही है। सभी को अपनी परंपरा से जुड़ कर अपने – अपने क्षेत्र में अच्छे कार्य करने चहिये।  केवल बातो से ही नहीं काम  चलेगा।  हमें अब प्रेक्टिकल बनना पड़ेगा।  ग्राउंड लेवल पर हम छोटे छोटे कार्य करना चाहिए  जैसे 16 – 16  वृक्ष लगाकर अच्छे कार्य से जोड़  सकते है।  हम छोटा सा गढ्ढा खोद कर पानी रिसर्व कर सकते है।  हम गौचर, गौवंश की सेवा कर सकते है।  किसी  दीनहीन  जरूरियातमंद की सहायता कर सकते है।  ये सब अच्छे कार्य है।  सभी को करने चाहिए यह सब कार्य करके हम अपने जीवन में भी सुधार ला सकते है।  हम अपने आहार में भी सुधार ला सकते है।  हम क्यों होटल का खाना खाते है ? नहीं खाना चाहिए।  हम क्यों गन्दा खाना खाते है ? नहीं खाना चाहिए।  हमें सर्व प्रथम अपना कल्याण स्वयं करना चाहिए। हमें  पहले अपनी व्यवस्था सुधार कर अपने आसपास के लोगो की सेवा करना चाहिए।   अगर आप बहुत ताकतवर बन जाये तो पूरे देश सहित विश्व कल्याण की भावना लेकर व्यापक काम करना चाहिए। इसी से सभी का कल्याण होगा और भगवान महावीर के विचारो को हम साकार कर पाएंगे। 

लेखक : गिरीश शाह

(लेखक भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड,भारत सरकार के सदस्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त संस्था-"समस्त महाजन" के मैनेजिंग ट्रस्टी है)

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