पशु संदेश, 07 March 2019
डा.प्रमोद प्रभाकर,डा. प्रमोद कुमार,डा.मनोज कुमार भारती
भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्राति के समय से बढती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासयनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सीमान्त व छोटे किसान के पास कम जोत अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रही हैं। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिए गत वर्षो से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्वान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते है।
खेती और पशुपालन का रिश्ता आज टूट रहा है, लेकिन अगर इसको बरकार रखा जाय तो न केवल हमें भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर खाद मिलेगी बल्कि बड़ी अबादी को रोजगार भी मिलेगा पशु शक्ति के बारे में कई विशेष व वैज्ञानिक भी यह मानने लगे है कि सबसे सस्ता व व्यावहारिक स्त्रोत है। भारत में आज भी खेती और पशुपालन ही सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्र है ग्रामीण अर्थव्यस्था केवल खेती किसानी से ही नहीं, पशुपालन और छोटे -छोटे लघु कुटीर उद्योग व लघु व्यवसायों से संचालित होती रही है। एक तरह से लोगों के फिक्स्ड डिपाजिट हुआ करते थे। जिन्हे बहुत ही जरूरत पडने पर वह बेच भी देते है गायों व भैसों से ज्यादा दूध निचैडने के लिए इंजेक्शन का इस्तेमाल हो रहा है, बूढ़ी होने पर बूचडखाने को बेचा जा रहा है। इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है। आज आधुनिकरण के कारण बहुत कम जमीन उपजाऊ रह गई है।
कई दशकों से अत्याधुनिक तकनीकी उपयोग करने के बाद आज हम महसूस करने लगे है की यदि हम इसी तरह अपने परंपरागत पद्वति को छोडते है तथा आधुनिक वैज्ञानिक पद्वति को अपनाते रहेगे तो हमे तरह तरह के समस्याओं से जूझने के लिए तैयार रहना होगा । लेकिन आज के समय मे हमारे समाज के पढे लिखे लोग सोशल मीडिया तथा इन्फाॅर्मेशन टक्नालजी के माध्यम से जैविक पशुधन उत्पाद की महत्ता क® भली भाँति समझने लगे है, ईसी का परिणाम है की आज जैविक पशुधन उत्पाद की मांग दिनो दिन बढ़ती जा रही है। लोग तीन गुना मूल्य भी चुकाने के लिए तैयार है जैविक पशुधन सह कृषि का उत्पादन करके ज्यादा से ज्यादा आमदनी कर रहे है। जिसमें पशुओं के कल्याण, पर्यावरण का कम हानि हो। जैविक पशुधन में पशु उपचार के बचाव पर जोर देते है। ताकि, पशु तनाव से मुक्त रहे। पशु अपना नैसर्गिक व्यवहार प्रकट करें और उच्च गुणवत्ता युक्त चारा खा सके। जैविक पशुधन प्रबंधन में पशुओं का भोजन इस प्रकार का होता है जो पशु के पोषण की जरूरतों को पूरा कर सके। जिससे, पशुओं के रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि हो सके।
पशु स्वास्थ्य प्रबंधन के तरीके:
जब भी कोई पशु फार्म जैविक फार्म में परिवर्तित होता है तो सर्वप्रथम पशु चिकित्सक के माध्यम से पशुपालकों को पशुओं में होने वाले रोगों का खाका तैयार करना चाहिये। उनकी रोकथाम के तरीकों का भी पता लगाना चाहिये। इसके लिए जैविक फार्म पर निम्र प्रकार की रणनीति अपनाई जा सकती है-
जैविक सुरक्षाः
जैविक पशुधन में सुरक्षा के लिए जैविक पशु प्रबंधन के मापदंड निम्रानुसार है-
पशु आवासः
पशु पोषणः
लगभग सभी पोषक तत्व रोग प्रतिरोधकता को बढाने में मदद करते है। अतः पोषण में कमी अथवा अधिकता पशुओं को संक्रमण के प्रति संवेदनशील बनाती है।जब घर पर उगाये गए चारे अथवा मिट्टी में कुछ पोषक तत्वों की कमी हो तो लवण पशु को देना चाहिए। किसानों को चाहिए की स्वस्थ पशु रखे जिससे अधिक उत्पादन एवं आमदनी प्राप्त किया जा सकता है। एक या अधिक पशुओं के समूह को, पशुधन के नाम से जाना जाता है। पशु के स्वस्थ एवं निरोग होने पर ही वह अपनी क्षमता के अनुरूप् उत्पादन दे सकता है।पशुओं की वीमारियों से पशुओं का स्वास्थ्य प्रभावित होता है एवं उत्पादकता घट जाती है तथा मनुष्यों में भी संक्रमण हो सकता है।
हमारे पशुधन, जैसे- गाय, भैस, भेड़, बकरी भाग है। पशुपालन व्यवसाय में पशु स्वास्थ्य संरक्षण का अत्यधिक महत्व है। पशु पालन के द्वारा पशुओं का स्वास्थ प्रभावित होता है, उत्पादकता घट जाती है तथा उन्हें कम किया जा सकता है अथवा उन्हें एंटी- बायोटिक्स तथा टीकों की सहायता से कम किया जा सकता है।
हमारे देश में पशुपालन कार्य अधिकतर गांवो में किसानों अनपढ़ मजदूरों व महिलाओं द्वारा किया जाता है। प्रायः इन्हें पशुओं की देखभाल के सम्बन्ध में पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारी नहीं होती है। पशुओं की उत्पादन क्षमता में वृद्वि होकर, अधिक लाभकारी होती है। पशुओं के शरीर में लगभग 65 प्रतिशत पानी तथा दूध में 87 प्रतिशत पानी होता हैं। पशु के शरीर में पानी का इस्तेमाल शरीर का तापमान में होता हैं। तालाबों का गन्दा पानी पिलाना पशुओं में अनेक बीमारियों तथा बाहय एवं आतरिक परजीवी कीड़ो का जन्म देता है इससे पशुपालक को वचाना चाहिए। पशु अपनी इच्छा से जितना पानी पीये, उतना पानी पिलाये ।जैविक उत्पादन को बनाये रखने में पशुपालन का अहम योगदान होता है।
1.डा० प्रमोद प्रभाकर, 2डा० प्रमोद कुमार 3डा० मनोज कुमार भारती
सहा० प्रा० सह क० वैज्ञानिक, पशुपालन
म्ंा० भा० कृ० महावि०, अगवानपुर ,सहरसा
(वि०कृ०विश्वविद्यालय सवौर, भागलपुर 813210)
2.ए० पी० आर० आई० पूसा, बिहार
3 टी० भी० ओ० सहरसा
Email: ppmbac@gmail.com