Pashu Sandesh, 25 Feb 2021
सोसाइटी ऑफ़ एनिमल फिजियोलॉजिस्ट ऑफ़ इंडिया (सापि) का 29 वें वार्षिक सम्मेलन की मेजबानी बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा किया गया, इस सम्मेलन में देश भर से कई प्रख्यात एनिमल फिजिओलॉजिस्ट ने ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज की। इस दो दिवसीय सम्मेलन का शुभारम्भ विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह, निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंद्र कुमार, डीन बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय डॉ. जे. के. प्रसाद, द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। सम्मेलन के शुरुआत में निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंद्र कुमार ने सभी का स्वागत किया।
सापि के अध्यक्ष डॉ. एस. के. रस्तोगी ने इस अवसर पर सापि के कार्यों और फिजियोलॉजिस्ट के भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा की 1984 में स्थापित सापि पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान के क्षेत्र में सबसे पुरानी व्यावसायिक सोसायटी में से एक है, स्थापना के बाद से सक्रिय सदस्यों और जीवन सदस्यों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा की फिजियोलॉजिस्ट ने पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान के विकास और पशुधन उत्पादन के क्षेत्रों में अकादमिक और अनुसंधान के माध्यम से काफी योगदान दिया है, जिसमें स्ट्रेस फिजियोलॉजी, जलवायु विज्ञान, प्रजनन और अंतःस्रावी शरीर विज्ञान, स्टेम सेल प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी, आणविक शरीर विज्ञान और विशेष क्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने कहा की राष्ट्रव्यापी एकरूपता के आलोक में फिजियोलॉजी के क्षेत्र में अकादमिक पाठ्यक्रम का पुनरीक्षण भी इस समय की मांग है।
विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के सहायक महा-निदेशक (पशु पोषण और शरीर क्रिया विज्ञान) डॉ. अमरीश त्यागी ने वर्तमान समय में फिजियोलॉजी के महत्त्व पर प्रकाश डाला वहीं डॉ. मिहिर सरकार (निदेशक, एनआरसी याक) ने कहा की पशुधन भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हमने कोरोना काल के दौरान ये देखने को मिला है की डेयरी क्षेत्र ने किसानों की आजीविका को बनाए रखने में बहुत मदद की है। पशुओं से ऊर्जा उत्पादन पर उन्होंने कहा कि जानवरों को उनकी शारीरिक अनुकूलता के अनुसार उत्पादन करने में सक्षम बनाना सुनिश्चित करना चाहिए, जो अभी भी एक बड़ी चुनौती है साथ ही हमें परिवर्तन अनुसंधान पर ध्यान देने की जरुरत है।
इस अवसर पर सापि के पैट्रन डॉ. एम्. एल. मदान ने कहा फिजियोलॉजी पशु उत्पादकता में वृद्धि पाने के लिए बहुत अहम् योगदान निभाता है । देश के आर्थिक विकास में पशुधन क्षेत्र का प्राथमिक योगदान है। यह देश की कृषि प्रणाली की रीढ़ है। उन्होंने पशु उत्पादन प्रणाली में विविधता के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा की भूमि कम होती जा रही है और इसलिए हमें भूमिहीन किसानों के बारे में सोचने की जरुरत है की वे कम जगहों में कैसे पशुपालन कर उन्नत और बेहतर उत्पादकता प्राप्त कर सकते है, फिजियोलॉजिस्ट को इस ओर काम करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि इनपुट लागत बढ़ रही है और उत्पादन लागत कम हो रही है और इसलिए हमें उत्पादन के मामले में थोड़ा और इनोवेटिव बनना होगा।
कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा की इस दो दिवसीय सम्मेलन में उन तकनीकों के बारे में विमर्श करें जो किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता को प्रगति दे। उन्होंने कहा की भारत में पश्चिमी देशों की तरह बड़े खेत नहीं हैं, यहाँ खेतों की संख्या कम हो रही है लेकिन जानवरों की संख्या में वृद्धि हो रही है और प्रति पशु उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है जिससे पशुओं में तनाव देखा जा सकता है, इसका प्रबंधन करना एक फिजियोलॉजिस्ट की बड़ी ज़िम्मेदारी है। पशु शरीर क्रिया विज्ञान इस पशुओं के तनाव को बनाए रखने, पशुओं के स्वास्थ्य को बनाए रखने, उत्पादन को बनाए रखने और हमारे पशुधन क्षेत्र से उत्कृष्ट उत्पादन को साकार करने के लिए जिम्मेदार है।
उन्होंने देश में जानवरों के ट्रांसपोर्टेशन से उत्पन्न तनाव पर बोलते हुए कहा की हम वास्तव में जानवरों के परिवहन के लिए कोई विनियमित प्रणाली विकसित नहीं कर पाए हैं। हम पाते हैं कि जानवरों को बहुत तनावपूर्ण परिस्थितियों में लाया, ले जाया जा रहा है। परिवहन का सबसे अच्छा तरीका क्या है, इसे कैसे विनियमित किया जाना चाहिए और जानवरों की उत्पादकता कैसे प्रभावित न हो इसपर ध्यान देने की जरुरत है।
इस अवसर पर सापि के सचिव डॉ. एस. डी. इंगोले ने सोसाइटी का रिपोर्ट पेश किया वहीं डॉ. ख़ुर्शीद ने भारत में पशुधन के वर्तमान स्थिति और इतिहास पर अपना प्रेजेंटेशन दिया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के तमाम अधिकारी, शिक्षकगण और विद्यार्थी मौजूद थे।