रोगानुरोधी प्रतिरोध: खतरे एवं बचाव

पशु संदेश, 05 Sep 2019

डॉ. मैना कुमारी, डॉ. कमलेश धवल 

एंटीमाइक्रोबियल्स को सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोजों में से एक माना जाता है और यह मनुष्यों और पशुओ दोनों में जीवाणु, माइकोप्लाज्मा, कवक द्वारा हुए संक्रमण में उपचार के लिए आवश्यक है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों से रोगाणुरोधी प्रतिरोध का निरंतर तेजी से विकास हुआ है जो कि विश्व पटल पर एक प्रमुख जन एवं पशु स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में उभरा है। मुख्य संक्रामक रोगों के रोगजनकों में रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता  वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन गयी है।

पशुधन उत्पादन क्षेत्र में एंटीमाइक्रोबियल्स का उपयोग रोग का इलाज या रोकथाम के लिए तो होता ही है साथ ही साथ शारीरिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए भी इसका भारी मात्रा के उपयोग किया जाता है। इससे सहभोजी और रोग जनक दोनों प्रकार के सूक्ष्मजीवों पर एंटीमाइक्रोबियल्स का प्रभाव पड़ता है, इसलिए ये पशु रोगाणुरोधी प्रतिरोध जीन के एक पूल के रूप में कार्य कर सकते हैं जो कि खाद्य श्रृंखला, पशु संपर्क और पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में प्रेषित हो सकता है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध आज विश्व स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और विकास के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। एंटीबायोटिक प्रतिरोध स्वाभाविक रूप से होता है, लेकिन मनुष्यों और पशुओ में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग इस प्रतिरोध प्रक्रिया को तेज करने के साथ-साथ संक्रमण के उपचार व नियंत्रण में भी कमजोर साबित होता है। एंटीबायोटिक प्रतिरोध से उपचार में लम्बा समय लगने के साथ ही इलाज का खर्च एवं मृत्यु दर भी बढती है। मौजूदा समय में प्रतिरोधी रोगों के कारण वैश्विक स्तर पर हर साल कम से कम 7,00,000 लोग मारे जाते हैं, जिनमें लगभग 2,30,000 ऐसे लोग शामिल हैं जो बहुऔषधि-प्रतिरोधी तपेदिक (Multidrug-Resistant Tuberculosis) से मरते हैं। सही समय पर रोकथाम हेतु प्रयास नहीं किये जाने की स्थिति में यह बीमारी 2030 तक करीब 2.4 करोड़ लोगों को गरीबी के कगार पर पहुँचा देगी तथा आने वाली पीढ़ियों को अनियंत्रित रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विनाशकारी प्रभावों का सामना करना पड़ेगा।

भारत ने रोगाणुरोधी (एएमआर) की समस्या के बारे में उचित संज्ञान लिया है तथा इस मुद्दे से निपटने के लिए भारत सरकार ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2012-2017) के तहत "राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध रोकथाम कार्यक्रम" शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत देश में प्रयोगशाला आधारित एएमआर निगरानी प्रणाली के लिए तीस प्रयोगशाला का समूह स्थापित किया गया है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्व के रोगजनकों के लिए रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर गुणवत्तापरक आंकड़े भी एकत्रित किये जाते है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को रोकने और नियंत्रित करने के लिए ये कर सकते हैं:

• प्रमाणित पशु चिकित्सक की सलाह से ही पशुओ को एंटीबायोटिक दें।

• चिकित्सकों को फ्लेमिंग के शब्दों पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। 

• वृद्धि संवर्धन के लिए या स्वस्थ पशुओ में बीमारियों को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग न करें।

• एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता को कम करने के लिए पशुओं का समय पर टीकाकरण करवाए और उपलब्ध होने पर एंटीबायोटिक दवाओं के विकल्प का उपयोग करे।

• पशु और पौधों के स्रोतों से खाद्य पदार्थों के बनाने के सभी चरणों में सही प्रक्रियाओ को बढ़ावा देना और लागू करना चाहिए।

• खेतों में जैव विविधता में सुधार करना और बेहतर स्वच्छता और पशु कल्याण के माध्यम से संक्रमण को रोकना चाहिए।

• यदि आपका पशुचिकित्सक कहता है कि आपको उनकी आवश्यकता नहीं है तो कभी भी एंटीबायोटिक दवाओं की मांग न करें।

• पशुओ में तनाव को कम करके, प्रोबायोटिक्स का उपयोग करके या न्यूट्रीशनल सप्लिमेंट्स द्वारा एंटीमाइक्रोबियल्स दवाओ का उपयोग कम किया जा सकता है।

• एंटीमाइक्रोबियल्स का उचित उपयोग इसके प्रतिरोध के खतरे को प्रभावी रूप से कम करेगा।

• निरीक्षण, ​​शिक्षा और वैकल्पिक उपाय पशुओ में एंटीमाइक्रोबियल्स के उपयोग को निश्चित रूप से कम कर देंगे।

• सरकारी, गैर-सरकारी, लोक हितैषी लोगों को इस क्षेत्र में निवेश करने हेतु आगे आना चाहिये ताकि उच्च गुणवत्ता वाले एंटीमाइक्रोबियल्स का निर्माण हो सके। उच्च कोटि के नए एंटीमाइक्रोबियल्स की पहुँच को सरल और सहज बनाने का प्रयास करना आवश्यक है।

डॉ. मैना कुमारी (सहायक प्राध्यापिका, अपोलो कॉलेज ऑफ़ वेटरनरी मेडिसिन, जयपुर) मोबाइल: 9772227246

और  डॉ. कमलेश धवल (पशु चिकित्सा अधिकारी, बीकानेर)