बकरी पालन की प्रमुख उपयोगी नस्ले

Pashu Sandesh, 18 April 2021

डॉ. अलका सुमन, डॉ. एस. के. करमोरे , डॉ. एस. के. गुप्ता,  राखी वर्मा  

पशु शरीर रचना विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू (.प्र.)

बकरी एक पालतू पशु है, जिसे मुख्य रूप से दूध तथा मांस एवं इसके अलावा रेशा, चर्म, खाद, बाल के लिये पाला जाता है। बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे एवं महिलाएं आसानी से पाल सकती है । वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता की अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। ग्रामीण परिवार खासकर भूमिहीन और छोटे तथा सीमांत किसान बकरी पालन को आय के पूरक स्त्रोत के रूप में अपनाते है इसलिए आत्मनिर्भरता और  रोजगार के लिए बकरियो की प्रमुख नस्लों की जानकारी होना बहुत आवश्यक है ताकि पशुपालको को पता चल सके की कौन सी  नस्ल की बकरी को पलना लाभदायक है, अतः बकरियों की प्रमुख नस्ल इस प्रकार है :

ब्लैक बंगालः इस जाति की बकरियाँ पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, एवं उड़ीसा में पायी जाती है। अधिकांश बकरियों में काला रोंआ होता है। यह छोटे कद की होती है, वयस्क नर का वजन करीब 18-20 किलो ग्राम जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी है। औसतन यह 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है एवं एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती है। इस नस्ल की मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्कता प्राप्त कर लेती है तथा औसतन 15-16 माह की उम्र में प्रथम बार बच्चे पैदा करती है। प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होने के कारण इसकी आबादी में वृद्धि दर अन्य नस्लों की तुलना में अधिक है। इस जाति के नर बच्चा का मांस काफी स्वादिष्ट होता है तथा खाल भी उत्तम कोटि का होता है। इन्हीं कारणों से ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियाँ मांस उत्पादन हेतु बहुत उपयोगी है। परन्तु इस जाति की बकरियाँ अल्प मात्रा (15-20 किलो ग्राम/वियान) में दूध उत्पादित करती है 

जमुनापारीः जमुनापारी भारत में अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती है। यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है। इसके शरीर पर सफेद एवं लाल रंग के लम्बे बाल पाये जाते हैं। इसका शरीर बेलनाकार होता है। वयस्क नर का औसत वजन 70-90 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 50-60 किलो ग्राम होता है। इसके बच्चों का जन्म समय औसत वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्र में औसतन 1.5 से 2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध तथा मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ सलाना बच्चों को जन्म देती है तथा एक बार में करीब 90 प्रतिशत एक ही बच्चा उत्पन्न करती है। 

बीटलः बीटल नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिला के बटाला अनुमंडल में उपलब्ध है। इसका शरीर भूरे रंग पर सफेद-सफेद धब्बा या काले रंग पर सफेद-सफेद धब्बा लिये होता है। ऊँचाई एवं वजन की तुलना में जमुनापारी से छोटी होती है। वयस्क नर का वजन 55-65 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 45-55 किलो ग्राम होता है। इसके वच्चों का जन्म के समय वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 1.25-2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है। इस नस्ल की बकरियाँ सलाना बच्चे पैदा करती है । बीटल नस्ल के बकरों का प्रयोग अन्य छोटे तथा मध्यम आकार के बकरियों के नस्ल सुधार हेतु किया जाता है। बीटल प्रायः सभी जलवायु हेतु उपयुक्त पाया गया है।

बारबरीः बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है। यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है। यह छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद के साथ भूरा या काला धब्बा पाया जाता है। वयस्क नर का औसत वजन 35-40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25-30 किलो ग्राम होता है। यह घर में बांध कर गाय की तरह रखी जा सकती है। इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है। 2 वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक वियान में औसतन 1.5 बच्चों को जन्म देती है। इसका बच्चा करीब 8-10 माह की उम्र में वयस्क होता है। इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ औसतन 1.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।

सिरोहीः सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिला में पायी जाती है। यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त है। यह सलाना एक वियान में औसतन 1.5 बच्चे उत्पन्न करती है। 

जमुनापारी, सिरोही तथा बरबरी नस्ल की बकरियॉ मैदानी क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त हैं। अतः पशुपालकों द्वारा इन नस्लों का संवर्धन, वृद्धि एवं व्यवसाय हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है। व्यवसाय को प्रारम्भ करते समय उच्च प्रजनन क्षमता युक्त वयस्क स्वस्थ्य बकरियों को ही कृय करना चाहिए।