सुअरो के रोग एवं उनका उपचार

पशु संदेश, 01सितम्बर 2018

डॉ  सोनम भारद्वाजडॉ बृजेश नंदा

सुअर उत्पादकों को सफल होने के लिए, अपने पशुओं को स्वस्थ रखना महत्वपूर्ण है।  ऐसा करने के लिए, झुंड में होने वाली बीमारियों के बारे में जानना आवश्यक है। सूअरों के साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी सामान्य बीमारियों के लक्षणों को पहचानने में सक्षम हो सकते हैं और उचित रूप से प्रबंधक या पशुचिकित्सा को सतर्क कर सकते हैं। उपयुक्त दवा के साथ सूअरों का इलाज अगला कदम है। रोकथाम, इलाज से स्पष्ट रूप से बेहतर है, और एक झुंड स्वास्थ्य योजना होने से बीमारी की घटनाओं को कम करने में मदद मिलेगी।

सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं:-

क) सूकर ज्वर

इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है|

ख) सूकर चेचक

इसमें बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है| टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है |

ग) खुर मुंह पका

इसमें  खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है| खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है| टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है|

घ) एनये पील्ही ज्वर

इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है| नाड़ी तेज जो जाती है| हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं| पशु अचानक मर जाता है| पेशाब में भी रक्त आता है| इस रोग में सुअर के गले में सूजन हो जाती है| इस बीमारी का भी टीका होता है|

ङ) एरी सीपलेस

तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं| रोगी सुअर को निमानिया का खतरा हमेशा रहता है| रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है|

च) यक्ष्मा

रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है| इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है| इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं| उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए|

छ) पेचिस

रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है| उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है| हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है| रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है|

परजीवी जय एवं पोषाहार संबंधी रोग

सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है| जिसका इलाज गैमक्सीन के छिड़काव से किया जा सकता है| सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर भी इसका छिड़काव करना चाहिए|

सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है| अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए| ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए|

सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए| अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें|

पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है| इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें |                              

डॉ  सोनम भारद्वाज 1डॉ बृजेश नंदा 2

              1 एवं  2.  सहायक आचार्य, अपोलो कॉलेज ऑफ  वेटरनरी मेडिसिन , जयपुर

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