गर्मी के मौसम में पशुओं में हीट स्ट्रेस के लक्षण तथा उसका बचाव

Pashu Sandesh, 19th June 2020

डा० प्रमोद प्रभाकर एवं डाॅ० मनोज कुमार भारती

गर्म मौसम प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनो प्रकार से पशुओं की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है, अधिकतमत क्षमता हेतु पर्यावर्णीय परिथस्थितियों के साथ-साथ पशुओं की खुराक में भी परिवर्तन लाना अत आवश्यक है। दूध देने वाली संकर नस्ल की गायों के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान आरामदेह होता है परन्तु इससे अधिक गर्मी होने पर इनकी दुग्ध-उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती हे। गर्म मौसम में शारीरिक तापमान बढ़ जाता है जिससे दुग्ध-उत्पादन क्षमता उर्वरता तथा शारीरिक वृद्धि दर में कमी आ जाती है। उच्च तापमान एवं नमी-युक्त वातावरण में ऊष्मा हानि कम हो जाती है जो दुग्ध-उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

पशु हीट स्ट्रेस मे हैं इसे कैसे पहचानेगे:

गाय समान्यतः एक मिनट में 15 से 30 बार सांस लेती है। गाय में अगर सांस लेने की रफ्तार एक मिनट में 50 से अधिक हो तो हम कहेंगे  िक वह हीट स्ट्रेस का षिकार हो गई है। जैसे ही पशु हीट स्ट्रेस में आएगा तो वह हांफने लगेगा। उसकी जीभ बाहर आ जाएगी। 

गर्म मौसम में पशुओं का तापमान नियंत्रित रखने के लिए आमातौर पर निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती है। 

  • पशुओ के शेड का तापमान कम रखने के लिए इनकी संरचना में सुधार किया जाता है।
  • पशुओ पर फव्वारे द्वारा पानी डाल कर पंखे चलाए ताकि उनको शरीर को ठंडा रखा जा जा सकें।
  • भोज्य ऊर्जा उपयोगिता की क्षमता बढ़ाकर खाने के समय उत्पत्र होने वाली ऊष्मा में कमी लाई जा सकती है।

गर्म मौसम में विभित्र कारकों से  पशुओ की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती हे। वायु नमी के कारण त्वचा तथा श्वसन नली से वाष्पोत्सर्जन द्वारा होने वाली ऊष्मा-हानि  पर प्रभाव 

पड़ता है। अतः अधिक तापमान पर नमी, दुधारू,पशुओं की उत्पादन क्षमता को काफी  हद तक कम कर देती है। गर्मी एवं नमी में अधिक समय तक खड़े रहते है, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा अपने शरीर से अधिकाधिक उष्मा वायु में छोड़ सकें।हवाओं के कारण पशुओं के शरीर से होने वाली -उष्मा हानि संवहन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा होती है।कम तापमान पर हवाओं के चलने से दुग्ध उत्पादकता प्राभावित नहीं होती परन्तु अधिक तापमान पर हवा चलने से पशुओं को लाभ होता है।गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा उत्पत्र की गई उष्मा ताप-तनाव का मुख्य कारण होती है। गर्म मौसम में पशुओं के रखरखाव उत्पादन हेतु ऊर्जा की मांग तो अधिक होती है जबकि सकल ऊर्जा की कार्यक्षमता कम हो जाती है। तापमान अधिक होने पर भी चारे की खपत कम हो जाती है। अतः गर्म मौसम में पशुओं की ऊर्जा आवश्यकताएं पूर्ण करने हेतु इनको उर्जायुक्त आहार खिलाने की आवश्यकताएं पड़ती है। गर्मियों में गायों से अधिक दूध प्राप्त करने से लिए उन्हें अधिक वसा-युक्त आहार खिलाए जा सकते है। ऐसे आहार खिलाने से इनके शारीरिक तापमान में कोइ वृद्धि नहीं होती तथा श्वसन दर भी भी समान्य बनी रहती है।अधिक मात्रा में प्रोटीन-युक्त आहार लेने से उष्मा का उत्पादन भी बढ़ जाता है। ऐसे आहार खिलाने से इनको  पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन-युक्त आहार लेने से ऊष्मा का उत्पादन भी बढ़ जाता है जिसका प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गर्म मौसम में दुधारू गायों की अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन  न मिलने से इनकी पशु पदार्थ ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है। गायों को बाई पास प्रोटीन देने से इनकी उपलब्धता अधिक होती है जिसमें में वसा उत्पादन में वृद्धि होती है। 

धूप से सीधे बचाव के लिए साधारण शेड के आसपास पेड-पोधों लगाकर इसे ओर ठंडा एवं प्रभावशाली बनाया जा सकता है  शेड के कारण डेयरी पशुओं का शारीरिक तापमान एवं श्वसन दर समान्य बनी रहती है। इसी तरह कम तापमान पर तेजी से चलने वाली हवा के कारण पशुओ से ऊष्मा अधिक तीव्रता से निकलती हे। इससे न केवल सामान्य ताप-तनाव के कारण इनकी उत्पादकता में कमी आ जाती है। यदि पशुओं के सर एवं गर्दन की ठंडा रखा जाएं तो ये अधिक चारा ग्रहण करते है जिससे दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। 

गर्मी के इस मौसम में पशुओं का खान पान कैसा हो ताकि वह हीट स्ट्रेस से बचे रहे।

गर्मी के इस मौसम मे पशु खाना कम कर देते है। जिसके कारण जितना चारा वह खाते है उससे ऊर्जा प्रोटीन और विटामिन मिनरल्स की दैनिक आवष्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है। इसलिए गर्मी के मौसम में पशुओं खान पान का विषेश ध्यान रखना होता है। गर्मी के मौसम में पानी सबसे महत्वपूर्ण है इसलिए इस मौसम में पशुओं को भरपूर मात्रा में साफ और शीतल जल पिलांए। धूप में रखा हुआ पानी कदापि ना दे।गर्मी के मौसम में भूसे की मात्रा कम कर दें और रातिब मिश्रण की मात्रा बढा दें।इस समय कोशिश करें कि पशु को जो भी हरा चारा दिया जाए वह मुलायम हो। इस मौसम में चूकि पशु कम कम चारा खायेगा इसलिए पार्यप्त ऊर्जा और प्रोटीन की आपूर्ति सुनिश्चत करने के लिए रातिब मिश्रण में ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा बढा दे। इसके लिए कोई भी अनाज जैसे गेहूं चावलए ज्वार, बाजरा,ऊर्जा की आपूर्ति बढाने के लिए पशुओं को प्रतिदिन 100 ग्राम तक सरसों की तेल भी दिया जा सकता है। इस समय पशु की इलेकट्रोलाईट्स की आवश्यकता बढ जातीहै इसलिए पशुओं को प्रोब्लेण्ड पाऊढर 50 से 100 ग्राम प्रतिदिन दिया जा सकता है। इसे देने से इलेक्ट्रोलाईट्स बैलेंस बना रहेगा।इसके अलावा पशुओ को चारा दाना सुबह और शाम को ठंडक के समय ही दे।पशुशाला  में गर्मी से बचाव के पर्याप्त इंतजाम करें जैसे फर्राटा पंखे लगा दे। हो सके तो फोगर लगा दे। 

पशुओं  को ज्यादा देर धूप में ना रखें ।कोई पशु हीट स्ट्रेस से ग्रसित दिखे तो तुरंत चिकित्सीय सहायता ले।अतः पशुपालक अपने पशुओं का गर्मीयों के मौसम में उचित देखभाल कर अधिक लाभ ले सकते है। 

 

डा० प्रमोद प्रभाकर एवं डाॅ० मनोज कुमार भारती 

सहा० प्रा० सह क० वैज्ञानिक, पशुपालन 

मं० भा० कृ० महावि०, अगवानपुर, सहरसा 

एवं 

टी० भी० ओ० सहरसा

   

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