बकरियों में जठरआंत परजीवी का प्रबंधन

Pashu Sandesh, 12 May 2024

डॉ स्निग्धा श्रीवास्तव, डॉ  पूजा दीक्षित, डॉ  आलोक कुमार दीक्षित, डॉ नीरज श्रीवास्तव  एवं डॉ शिल्पा गजभिये  

पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.)

भारत एक कृषि प्रधान देश है, किंतु जनसंख्या की अधिकता के कारण आज प्रति व्यक्ति किसान की खेती योग्य भूमि काफी कम हो चुकी है। ऐसी स्थिति में पशुपालन किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का अच्छा एवं उत्तम साधन हो सकता है। अतः अधिकांश किसान पशुपालन पर निर्भर हैं और इन किसानों की कमाई पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर निर्भर करती है। आज किसान या गरीब व्यक्ति गाय या भैंस खरीदने में असमर्थ है, अतः गरीब व्यक्ति, किसान, मजदूर बकरी को सस्ते दामों में खरीद कर, कम खर्च में पालन पोषण कर अपनी  जीविका सुचारू रूप से चला सकते हैं। हमारे देश में 15-20% ग्रामीण जनता बकरी पालन पर निर्भर है। बकरियों से मांस, दूध, खाल, रोंआ, चमड़ा, बाल, सींग और हड्डी चूरा मिलता है। बकरियों के मल-मूत्र से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, बकरियों से मिलने वाले रेशे से कपड़े, कालीन और दूसरे घरेलू सामान बनाए जाते हैं। बकरी का दूध जल्दी पच जाता है एवं बकरी के दूध में खनिज तत्व गाय के दूध से ज्यादा होते हैं।  इस प्रकार बकरी पालन का देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। बकरी पालन पर्वतीय इलाकों के लिए भी अच्छा होता है। बकरियों को पालने में कम खर्च आता है और वे गर्म, ठंड, और शीतोष्ण मौसम में भी रह सकती हैं। बकरियां दूसरे जानवरों के मुकाबले गर्म जलवायु के लिए ज्यादा उपयुक्त होती हैं और बीमार भी कम होती हैं, इसकी उपयोगिता के कारण ही बकरी को ‘‘गरीबों की गाय‘‘ भी कहते हैं।

बकरियों में परजीवी रोगों का पाया जाना एक सामान्य बात है। इनके द्वारा बकरियों के दूध उत्पादन में कमी, मांस की गुणवत्ता कम होने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है यद्यपि यह बीमारियां हमेशा हानिकारक नहीं होती हैं, फिर भी समय रहते रोकथाम के उपाय न किए जाने पर पशुओं की उत्पादन क्षमता में अपूरणीय क्षति पहुंचती है। परजीवी बकरियों के आहार नाल या  रक्त में निवास करते हैं जैसे- फीताकृमि, गोलकृमि, यकृतकृमि व कोक्सीडिया आदि। यह मुख्य रूप से अपना पोषण बकरी के शरीर से प्राप्त करते हैं और उनमें अनेक रोग उत्पन्न करके पशु को कमजोर बना देते हैं तथा कई बार उनकी मृत्यु का कारण बनते हैं। बकरियों को प्रभावित करने वाले प्रमुख गोलकृमि हैं- हिमोन्कस कंटोर्टस, टेलोडोरसेगिया सर्कमसिंक्टा, ट्राइकोस्ट्रॉन्गायलस, कूपेरिया कर्टिसी, इसोफैगोस्टोमम आदि। बकरियों के परजीवियों में हिमोन्कस कंटोर्टस सबसे ज्यादा मिलने वाला और हानिकारक कृमि है। ये कृमि बकरियों के पेट में रहते हैं और खून चूसते हैं। इसलिए संक्रमित पशुओं की उत्पादकता में भारी कमी आती है। एक अनुमान के अनुसार प्रति दिन प्रति कृमि औसत 0.05 मिलीलीटर की रक्त हानि कर सकता है।

रोगजनन

संचरण- आंतरिक परजीवी के अंडे संक्रमित पशु के मल के संपर्क में आने वाले भोजन-पानी के माध्यम से स्वस्थ पशु को संक्रमित करते हैं। रोगी बकरियों में शारीरिक कमजोरी व दस्त लगना या कब्ज होना तथा कभी-कभी दस्त के साथ खून आना, शरीर में खून की कमी होना, अखाद्य वस्तु को खाना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।

पेट एवं आँतों  में रहते हुए परजीवी सूक्ष्म अंडे देते हैं, जो पशुओं के मल में बाहर जाते हैं। जमीन पर परजीवी के अंडे से लारवा विकसित होते हैं। फिर लार्वा उस अवस्था में विकसित हो जाता है, जहां वे दूसरे जानवर को संक्रमित करने की क्षमता रखता है। इस परिपक्वता चरण के लिए आवश्यक समय परिवर्तनशील है लेकिन सामान्य तौर पर यह गर्म मौसम के दौरान कई दिनों में होता है। बहुत ठंडा मौसम के दौरान परिपक्वता के लिए हफ्तों से लेकर महीने तक का समय लग जाता है। लार्वा मल पदार्थ से थोड़ी दूर तक जाने में सक्षम होता है और आसपास की घास के पत्तों या अन्य पौधों पर मौजूद रहते हैं। लार्वा जानवरों द्वारा घास में चरने और पास की घास पर कदम रखने से फैल सकता है। जिसके बाद इसे कई अन्य जानवर खा लेते हैं। ध्यान दें कि मल द्वारा घास का संक्रमण प्राथमिक साधन है जिसके द्वारा इन परजीवियों को पशु के शरीर में प्रवेश मिल जाता है। अतः यह अच्छे प्रबंध के साथ परजीवियों को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

एक बार पशु द्वारा खा लेने पर लार्वा आहार नाल में वयस्क रूप में परिपक्व हो जाता है और अंडे देना फिर से शुरू कर देता  है। अनुकूल परिस्थितियों में यह चक्र 3 सप्ताह से भी कम समय में पूरा हो सकता है। इसीलिए परजीवी अंडों से चारागाह संक्रमण कम समय में बड़े पैमाने पर हो सकता है। पशु को अधिकांश हानि या तो परिपक्व लार्वा या परजीवियों के वयस्क रूपों के कारण होती है और कुछ मामलों में लारवा और वयस्क दोनों बीमारी में योगदान दे सकते हैं।

लक्षण-

परजीवी के आधार पर जठरआंत परजीवीवाद के लक्षण - वजन में कमी, दस्त, भूख न लगना, आंखों और मुंह की पीली श्लेष्मा झिल्ली के साथ एनीमिया, जबड़े के नीचे सूजन, सामान्य कमजोरी और अंततः मृत्यु तक हो सकती है।

परजीवी बीमारी तब पैदा होती है जब परजीवी बड़ी संख्या में मौजूद होते हैं या जब जानवर किसी अन्य बीमारी या खराब पोषण के कारण कमजोर हो जाता है। मेजबान को नुकसान तब होता है जब परजीवी श्लेष्मा झिल्ली की परत से जुड़े जाते हैं और रक्त निकालते हैं। परजीवी खून की कमी से एनीमिया पैदा करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप पशु की पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पशु का वजन घटने लगता है विकास कम होता है, दूध उत्पादन कम हो जाता है एवं कुछ परजीवी पशु की भूख में कमी का कारण भी बनते हैं।

नियंत्रण-

पशु के परजीवी संक्रमण एवं उसके वजन के अनुकूल उचित कृमिनाशक का प्रयोग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बहुत से पौधे व उनके उत्पाद वैकल्पिक कृमिनाशक की तरह प्रयोग में लिए जा सकते हैं जैसे- लहसुन, चाइनोपोडियम का तेल आदि। बकरियों का अच्छा प्रबंध प्रबंधन, उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित चारागाह प्रदान करना, चारागाह विश्राम और चारागाह बदलना, वैकल्पिक चराई, परजीवी के प्रबंधन के महत्वपूर्ण स्तंभ है।

  • फमचा  - जानवरों में परजीवी संक्रमण के स्तर, जानवरों की व्यक्तिगत संवेदनशीलता तथा कृमिनाशक उपचार की प्रभावशीलता पर नजर रखने करने के लिए मल में अंडे की गिनती की मदद ली जाती है। उपचार के लिए चयन रक्त हीनता की स्तर पर आधारित होता है। इस विधि के अनुसार, जिस पशु की आंख की श्लेष्म झिल्ली गुलाबी-लाल होती है उसे 1 दिया जाता है और उसे किसी भी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि 5 के स्कोर वाली भेड़ या बकरी में श्वेत श्लेष्मा होती है, जिसके लिए हेमोन्कोसिस के खिलाफ तत्काल खुराक की आवश्यकता होती है और शायद गहन चिकित्सा उपचार की भी आवश्यकता होती है। उपचार के लिए चयन जानवरों के श्लेष्म झिल्ली में प्रदर्शित होने वाले एनीमिया की डिग्री पर आधारित होता है, जिसका मूल्यांकन रंग आधारित चार्ट के माध्यम से किया जाता है।
  • रिफ्यूजिया - रिफ्यूजिया में परजीवी कृमि उपचार के प्रति संवेदनशील रहते हैं। इसका मतलब यह है कि रिफ्यूजिया में परजीवियों  का अनुपात जितना अधिक होगा, प्रतिरोध उतना ही धीरे-धीरे विकसित होगा । रिफ्यूजिया-आधारित रणनीतियाँ झुंड में प्रतिरोध विकास को धीमा कर देती हैं।
  • जैविक नियंत्रण - प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परजीवी के जीवन चक्र को समाप्त करते हैं जैसे- केंचुए परजीवी के अंडे को मिट्टी में और गहराई पर स्थानांतरण कर देते हैं। प्रत्यक्ष रूप से परजीवी के जीवन चक्र को समाप्त करते हैं जैसे - कवक डडिंगटोनिया फ्लैग्रान्स ।