वैज्ञानिक विधि से पशुओ का प्रवंधन कर डेयरी किसान अपनी आय दोगुनी कैसे करें?

Pashu Sandesh, 15 March 2021

डॉ. दीपक गांगिल , डॉ. राखी गांगिल , डॉ. विवेक अग्रवाल एवं डॉ. जितेंद्र सिंह यादव

प्राचीन समय से हमारे किसान खेती तथा पशुपालन करते आ रहे हैं ,परन्तु खेती योग्य जमीन घटने तथा सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता काम होने से आज के समय में किसानो को खेती से अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस दशा में किसान भाई वैज्ञानिक विधि से पशुपालन कर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। अक्सर यह देखा गया है की हमारे पशुपालक पशु रखते तो हैं परन्तु जानकारी के अभाव में पशुओं का प्रबंधन वैज्ञानिक विधि से नहीं करते, जिससे पशुओं से होने वाले लाभ से वंचित रह जाते हैं। आज इस लेख में हम बताएँगे की हमारे किसान भाई डेयरी पशुओ का वैज्ञानिक विधि से प्रवंधन कर अपनी आय को कैसे दोगुना कर सकते हैं।

अच्छी नस्ल के पशु का चुनाव: किसान भाई ध्यान रखे कि डेयरी पशु हमेशा अच्छी नस्ल का ही पालें। क्युकि पशु की नस्ल अगर अच्छी किस्म की होगी तो पशु में दूध देने की क्षमता भी अधिक होगी , तथा खराव नस्ल के पशुओं द्वारा अच्छे आहार एवं प्रबंधन के बाबजूद दुग्ध उत्पादन अच्छा नहीं मिल पाता।

देसी गाय की नस्लेंः गिर, थारपारकर, रेड सिंधी , साहीवाल आदि

विदेशी नस्लें: जर्सी , होलेस्टीन आदि

भैस की नस्लें: मुर्रा , जाफराबादी , मेहसाना भदावरी आदि

किसान भाई ध्यान रखें कि जब पशु खरीदने जाएँ तो ऐसी जगह से पशु खरीदें जहाँ पशुओं को बीमारियों से वचाव का टीका नियमित रूप से लगाया जाता हो। पशु हमेशा दूसरी व्यांत में हो तथा उसके साथ वछिया हो । पशु की वंशावली को देखना भी जरूरी है कि पशु की माँ का दूध अच्छा हो सभी बीमारियों का टीकाकरण हो चुका हो ये रिकॉर्ड देखने के बाद ही पशु खरीदें।
पशुओं का आवासः डेयरी पशुओं का आवास खुला एवं हवादार हो , पानी का निकास सही तरीके से होना चाहिए। अगर पानी का निकास सही नहीं है तो आवास गीला होने की वजह से कई तरह की बीमारियों के कीटाणु पनपने का खतरा रहता है। पशुओ के आवास की लम्बाई की दिशा पूर्व पश्चिम हो जिससे कि सूर्य की रौशनी बराबर आती रहे एवं हवा का प्रवाह भी ठीक तरह से हो। डेयरी पशुओं के शेड का निर्माण इस तरह से हो कि एक पशु को लगभग 6 x 4 वर्ग फुट जगह मिल सके। फर्श पक्का होना चाहिए जिससे कि ठीक तरह से सफाई हो जाये तथा गीला न हो ध्यान रहे कि फर्श चिकना न हो अन्यथा पशुओं के फिसलने का डर रहता है। छोटे बछड़े व बछड़ी के लिए अलग जगह होनी चाहिए। अगर पशुओं का आवास आरामदायक नहीं होगा तो पशु ठीक से दूध नहीं देंगे तथा इस स्थिति में किसानो को आर्थिक नुकसान होगा।

पशु आहारः पशु आहार एक बहुत महत्वपूर्ण घटक है क्युकि किसी भी डेयरी फार्म में पशुआहार होने वाले व्यय का 60-70% भाग होता है। आम तौर पर यह देखा गया है कि हमारे पशुपालक भाई सभी पशुओं को एक जैसा आहार देते हैं चाहे उनका दुग्ध उत्पादन कुछ भी हो। जिससे अधिक उत्पादन क्षमता वाले पशुओं को पूरा पोषण नहीं मिल पाता तथा जो कम दूध देने वाले पशु हैं उनको आवश्यकता से अधिक आहार मिल जाता है। दोनों ही दशा में पशुपालक को नुकसान होता है। अतः पशुओं को आहार उनके दुग्ध उत्पादन के हिसाब से देना चाहिए ।

पशु आहार की वैज्ञानिक पद्यति इस प्रकार है

१. जो पशु 5-7 लीटर दूध प्रतिदिन देते हैं तथा अगर हरा चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो सिर्फ हरा चारा 40-45 किलो देने से पशु की आहार की पूर्ती हो जाती है दाने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार दाने पर होने वाला व्यय बचा सकते हैं।

२. जो पशु ज्यादा दूध देते हैं उनको दाना जरूर दें। दाने की मात्रा दूध उत्पादन के हिसाब से निर्धारित की जाती है। इसका नियम यह है कि प्रति 2.5 लीटर दूध के लिए 1 किलो दाना गाय के लिए तथा प्रति 2 लीटर दूध पर 1 किलो दाना भैंस के लिए दिया जाता है।

३. हरा चारा हमेशा कुट्टी काटकर दे जिससे उसकी पाचनशीलता अधिक होती है।

४. हरे चारे को कभी अकेला न खिलाये उसके साथ भूसा भी मिलाएं।

५. पशुओं के आहार में रोजाना 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण भी देना चाहिए जिससे कि उनके आहार में खनिज तत्वों की कमी पूरी हो सके।अगर हमारे पशुपालक भाई इस नियम से आहार देते हैं तो जरूर अपनी आमदनी बड़ा सकते हैं। क्युकि जो पशु कम दूध दे रहें है उनके आहार में कटौती करके होने वाले व्यय को बचा सकते हैं तथा जो अधिक दूध देने वाले पशु हैं उनको अच्छा आहार देकर उनसे अच्छा दूध उत्पादन ले सकते हैं। जिससे कि निश्चित तौर पर आय में वृद्धि होगी।

अगर डेयरी फार्म पर हर साल एक बछड़ा या बछड़ी एक गाय या भैंस से मिल रहा है तो हम कह सकते हैं कि यह फार्म आर्थिक रूप से लाभ में है। पशु से निरंतर दूध लेने के लिए उसका सही समय पर गर्भित होना जरुरी है। विदेशी नस्ल की गायों यौन परिपक्वता 12-16 महीने में आ जाती है तथा देशी नस्ल में यह 2- 2.5 साल में आ जाती है भैसों में यौन परिपक्वता 2.5-3 साल में आ जाती है। अगर पशु सही उम्र पर पहुँचने के बाद भी गर्मी पर नहीं आता है अथवा गाभिन नहीं होता है तो पशुचिकित्सक से सलाह लें। क्युकि ऐसे पशु डेयरी फार्म पर नुकसान का कारण होते हैं। इसी प्रकार दूध देने वाले पशुओं में व्याहने के 45-60 दिन में गर्भधारण हो जाना चाहिए। अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता तो पशुचिकित्सक से सलाह लेकर उचित इलाज कराये। एक अनुसन्धान के अनुसार एक पशु में गर्भधारण में देरी होने से प्रतिमाह लगभग 7-8 हजार रुपये का नुकसान होता है। पशुओं में गर्मी में आने के लक्षणों का सही ज्ञान भी बहुत जरुरी है। गर्मी के लक्षण जैसे बार-बार चीखना, दूध कम हो जाना, भूख कम हो जाना, बेचैन मालूम पड़ना, दूसरी गाय के ऊपर चढ़ना, बार-बार पेशाब करना, भगोष्ठ में सूजन, योनि से लसलसा, पारदर्शी, चमकदार स्त्राव आना आदि । गर्मी के लक्षणों के लिए पशुओं को दिन में दो बार निरीक्षण जरूर करें।

ध्यान दें की पशुओं में गर्मी में आने के 12-18 घंटे के अंदर कृतिम गर्भाधान अथवा सांड से गाभिन करना चाहिए । अगर पशु सुबह गर्मी पर आया है तो शाम को तथा अगर शाम को गर्मी पर आया है तो दूसरे दिन सुबह गाभिन कराये। अगर कोई गाय या भैंस एक दिन से ज्यादा गर्म रहती है तो उसे करीब बारह घंटे के अंतर पर दो बार गर्भाधान कराना लाभदायक होता है। पशु से निरंतर दूध लेने के लिए उसका सही समय पर गर्भित होना बहुत जरुरी है।

पशु स्वास्थ्य: अगर हमें पशुपालन से आय दोगुनी करनी है तो पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल भी बहुत जरुरी है। क्युकि बीमार होने पर एक तो पशु दूध देना बंद या काम कर देते हैं, तथा पशुओ के इलाज में भी बहुत सारा खर्चा हो जाता है। इस तरह दोनों तरफ से पशुपालक का नुकसान होता है । इसके लिए जरुरी है की पशुपालक पशुओ की बीमारी की रोकथाम पर ज्यादा ध्यान दें तथा बिमारियों का टीकाकरण कराएं । डेयरी पशुओं में मुख्यतः होने वाली बीमारियां जैसे खुरपका मुहपका रोग (एफ एम् डी ), गलघोंटू (एच एस) एक टंगिया रोग (बी क्यू ) आदि का टीकाकरण शासन द्वारा लगाया जाता है। खुरपका मुहपका रोग (एफ एम् डी ) व गलघोंटू रोग (एच एस ) का टीकाकरण साल में दो बार अवश्य कराएं जिससे इन बिमारियों से होने वाली हानि से बचा जा सके।

एक और बीमारी जो अक्सर डेयरी पशुओं में होती है, जिसे थनेला रोग के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी में थनों में सूजन आ जाती है एवं दुग्ध उत्पादन बहुत कम हो जाता है। इलाज के अभाव में कभी कभी थन पूरी तरह खराब भी हो जाते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए थनों की साफ सफाई रखें ।दूध दोहने से पहले हाथों को अच्छी तरह साफ कर लें । दूध पूरी मुट्ठी बांधकर निकालें , कभी भी अंगूठा न लगाएं । क्युकि अंगूठा लगाने से थनों में अंदरूनी चोट लगती है तथा थनेला होने की सम्भावना बड़ जाती है । दूध दोहने के बाद थनों को बीटाडीन और ग्लिसरीन के घोल में डुवा दें । एक बात और ध्यान दे कि दूध दोहने के 15-20 मिनिट बाद तक पशु को बैठने न दें, क्युकि थनों की नलिका 15-20 मिनिट तक खुली रहती है और अगर इस दौरान पशु बैठ जाता है तो फर्श से जीवाणु नलिका में प्रवेश कर जाते हैं तथा थनेला रोग उत्पन्न करते हैं । इसीलिए दूध दोहने के पश्चात पशु को चारा ध्दाना डाल दें जिससे पशु बैठेगा नहीं । अगर ये सभी सावधानिया रखेंगे तो थनेला रोग आपके पशुओं में नहीं होगा तथा आर्थिक नुकसान से बचा जा सकेगा ।

दुग्ध उत्पाद: एक और महत्वपूर्ण उपाय जिससे कि पशुपालक अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं । वह है दूध के उत्पाद बनाकर बेचना । अगर पशुपालक अतिरिक्त दूध के उत्पाद बनाकर बेचे तो इससे अधिक लाभ कमा सकता है । यहाँ हम एक उदहारण ले, जैसे एक लीटर दूध का मूल्य 40 रूपये होता है । अगर इसी दूध में थोड़ा दही का कल्चर मिला दें, तो दही 80-100 रूपये किलो बेच सकते हैं । तथा यदि पनीर बना लें तो 300 रूपये किलो बेच सकते हैं । इस तरह के उत्पादों को अधिक समय तक बिना खराब हुए रख सकते हैं, तथा अधिक आमदनी भी ले सकते हैं ।
लेखा जोखा: किसी भी व्यवसाय में रिकॉर्ड का बहुत महत्त्व है । पशुपालको से अनुरोध है कि अपने पशुओं का लेखा जोखा अवश्य रखें कि डेयरी फार्म पर रखे जाने वाले रिकॉर्ड में दूध का रिकॉर्ड , दाने का रिकॉर्ड , टीकाकरण का रिकॉर्ड प्रजनन रिकॉर्ड (गाभिन की तारीख , व्याहने की तारीख आदि ), इलाज का रिकॉर्ड , आय व व्यय का रिकॉर्ड आदि रखे जा सकते हैं । लेखा जोखा रखने से लाभ तथा हानि का अंदाज भी लगाया जा सकता है, एवं डेयरी फार्म को व्यवस्थित रूप से चलाया जा सकता है ।

डॉ. दीपक गांगिल , डॉ. राखी गांगिल , डॉ. विवेक अग्रवाल एवं डॉ. जितेंद्र सिंह यादव

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय महू (म. प्र. )