पशु संदेश, 26 december 2019
डा० प्रमोद प्रभाकर
पशु के गर्भित होने के साथ ही गर्भाशय में बढ रहे भ्रूण को खुराक (आहार) की आवश्यकता महसूस होती है। यदि पशु स्वस्थ और सूदृढ़ है तो वृद्धि समुचित रूप से होगी। प्रायः यह देखने में आया है कि पशु में कृत्रिम गर्भाधान होते ही पशुपालक इस आशय से पशु की खुराक जैसे आहार, दाना आदि या तो कम कर देते हैं या बन्द कर देते हैं कि यदि मादा को दाना इत्यादि खिलाया गया तो बच्चा बड़ा हो जायेगा और ब्यांत के अन्त में अत्यन्त मुश्किल पेश आयेगी परन्तु यह विचार पूर्णतः निरर्थक है। सुडौल बच्चे को जन्म देता है, क्योंकि स्वस्थ पशु में मांसपेशियाँ बच्चे को निकालते हेतु समुचित संकुचन पैदा करती हैं। यदि पशु कमजोर होगा तो बच्चा अपनी माँ के रक्त से समुचित आहार ले लेता है, जिससे बच्चा तो बढ़ता रहता हैं परन्तु माँ को समुचित संतुलित आहार न मिलने के कारण वह कमजोर होती जाती है। जिसके फलस्वरूप पशु की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाने से पशु की हड्डियाँ दिखने लगती हैं। कभी-कभी तो 7-8 महीने की गर्भावस्था से ही कमजोरी के कारण पशु निढाल होकर लेट जाता है। कई बार तो पशु खड़ा होने में भी असमर्थ हो जाता है एवं गर्भाशय की माँसपेशियाँ की कमजोरी के कारण बच्चा य®निद्वार में फँस जाता है। समय पर चिक्तिसीय सहायता उपलब्ध न होने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है।
गर्भावस्था में समुचित आहार की कमी के कारण ब्याने के पश्चात् दुग्ध उत्पादन में कमी आती है तथा पशु को दोबारा गाभिन होने के लिये पशुपालक को एक से डेढ वर्ष इंतजार करना पड सकता है। जबकि स्वस्थ पशु जिसे गर्भकाल के मध्य पूर्ण संतुलित आहार दिया गया हो उसकी दुग्ध उत्पादकता भी अच्छी रहती है व ब्याने के 40-45 दिन बाद ही पुनः मद (हीट) में आ जाती है व गर्भधारण में भी कोई समस्या नहीं होती है।
अतः गर्भित पशु की देखभाल हेतु निम्नलिखित तथ्यों का विशेष ध्यान रखेः
गर्भित पशुओं की पहचान
बछिया के स्वास्थ्य तथा संतुलित आहार का जन्म से ही समुचित ध्यान रखने से वह कम उम्र में ही गर्मी में आ जाती है तथा कृत्रिम गर्भाधान करवाने पर दो से ढाई वर्ष में बच्चा देने योग्य हो जाती है।
गर्भित पशु के गर्भ का विकास 6-7 माह के दौरान तीर्वगति से होता है। इसलिये निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
गर्भित पशु को प्रतितिदन निम्नवत् आहार की व्यवस्था करनी चाहियेः
पशु के प्रथम बार गर्भित होने पर 6-7 माह के बाद उसे दूध देने वाले अन्य पशुओं के साथ बाँधना चाहिये और शरीर, पीठ एवं थनों की मालिश करना चाहिये।
ब्याने के 4-5 दिन पूर्व उसे अलग स्थान पर बाँधना चाहिये। ध्यान रहे कि स्थान स्वच्छ, हवादार व रोशनी युक्त हो। पशु के बैठने के लिये फर्श पर सूखा चारा/चारा पुवाल आदि डालना चाहिये।ब्याने के 1-2 दिन पूर्व से पशु पर लगातार नजर रखनी चाहिये।समय रहते गर्म पशु की पहचान, उचित आहार प्रबधन एव देखभाल करके पशुपालक अपनी पशुओं की ससमय गर्भाधान करा सकते है।
Dr. Pramod Prabhakar
Asstt .Prof.- cum - Jr .Scientist
Animal Husbandry
MBAC,Agwanpur, Saharsa - 852201
(BAU,Sabour, Bhagalpur) Bihar
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