दूध की गुणवत्ता में स्वच्छ और सुरक्षित दुग्ध उत्पादन का महत्व

पशु संदेश, 12 October 2019

डाॅ. पूजा सिंह,डाॅ. अंकित कुमार सिंह, डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. नरेन्द्र सिंह मीणा 

भारत ने 2016-17 में 165.4 मिलियन टन दूध उत्पादन करके दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया हैं। भारत में डेयरी उद्योग का महत्व बढ़ती शाकाहारी आबादी के साथ खाद्य उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, जिसके कारण स्वच्छ दूध उत्पादन की मांग बढ़ गयी है, क्योकि अशुद्ध वातावरण तथा गलत विधि से दोहा गया दूध का संग्रहण का समय कम हो जाता है। सफाई के अभाव में एक घन सेन्टीमीटर आयतन दूध में जीवाणुओं की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है। जबकि अत्यन्त स्वच्छ तथा आदर्श वातावरण में दुहे गये ताजे दूध के एक घन सेन्टीमीटर आयतन में 500 के आसपास जीवाणु उपस्थित रहते हैं, तथा इस प्रकार के दूध का संग्रहण लम्बे समय तक कम तापमान पर आसानी से किया जा सकता है, साथ ही दुग्धजनित रोगो से भी बचा जा सकता है, अतः दूध स्वच्छ वातावरण में ही उत्पादित करना चाहिए ।

भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा भारतीय किसान भाई मुख्यतः पशुओ पर आधारित है, इस वजह से किसान भाई खेती के साथ-साथ दुधारु पशु भी पालते है। 1988 से विश्व के दुग्ध उत्पादक राष्ट्रो में भारत का नाम पहले स्थान पर है साथ ही गोजातीय की सबसे ज्यादा आबादी भी भारत में ही पायी जाती है। 1991-1992 से 2016-2017 के दौरान भारत में दूध का उत्पादन 55.6 मिलियन टन से बढ़कर 165.4 मिलियन टन हो गया है। दुग्ध उत्पादन एक अच्छा और महत्वपूर्ण रोजगार है, यह गरीब ग्रामीण परिवारो के लिए आय का एक अच्छा श्रोत है। दूध रोगजनक जीवाणु के पनपने का एक अच्छा माध्यम है, जैसे की तपेदिक, ब्रुसेलोसिस, टाइफाइड बुखार आदि और यह रोग मुनष्यों में दूध के माध्यम से जाकर उन्हे बीमार कर सकता है। अतः स्वच्छ दूध का उत्पादन करने के लिए कुछ नियमों को जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

शुद्ध तथा स्वच्छ दूध किसे कहते है:-

वह दूध जो कि हानिकारक जीवाणु, धूल के कण, गोबर, बाल, मिट्टी, कचरा, सूखा चारा, किसी भी प्रकार के रासायन आदि से रहित हो। यह शुद्ध दूध तथा इससे निर्मित उत्पादन सेहत के लिए अच्छे होते है और जल्दी खराब भी नही होते तथा बाजार में इसे बेचने पर उचित दाम भी मिलता है। साफ तथा स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए कई कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे कि साफ वातावरण, साफ पशुशाला-दुग्धशाला, पशु स्वास्थ्य तथा उसकी साफ-सफाई, दुग्ध उत्पादन में उपयोग होने वाले बर्तन, दूध दोहने वाले का स्वास्थ्य तथा दुहने का सही तरीका इत्यादि।

1.पशुगृह तथा उसके आसपास का वातावरण

शुद्ध तथा स्वच्छ दुग्ध उत्पादन में वातावरण का बहुत ही विशेष महत्व है। दुग्धशाला की फर्श सीमेंट तथा कन्क्रीट की पक्की बनी होनी चाहिए तथा इसका ढलान नाली की तरफ हो ताकि जल, मल-मूत्र का निकास अच्छे से हो जाए। औतसन 40-50 वर्ग फुट प्रति पशु की दर से आवास व्यवस्था तथा दिवारो पर 2.5 से 3.0 मीटर ऊचाई तक सीमेंट का प्लास्टर होना चाहिए।

पशुशाला में पर्याप्त रोशनी, बिजली, वेंटिलशन की व्यवस्था होनी चाहिए। पशुशाल की सफाई के लिए साफ एवं पर्याप्त जल आवश्यक होता है। गाय को पिलाने तथा बर्तनो की सफाई में शुद्ध स्वच्छ जल की ही प्रयोग करें।

दुग्धशाला की रोजना दो बार सफाई और धुलाई करें। गोबर, मूत्र, चारा और अवशेषाों को हटाने के लिए उपयुक्त व्यवस्था तथा कर्मचारी रखे। मक्खी-मच्छर आदि से निजात पाने के लिए कीटनाशक का समय-समय पर छिड़काव अवश्य करना चाहिए।

2. पशु स्वास्थय तथा उसकी स्वच्छता:-

स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए पशु का निरोगी तथा साफ होना अति आवश्यक है। पशुओं को शुद्ध चारा तथा जल देना चाहिए। चारे में हानिकारक व तेज गन्ध युक्त खरपतवार नही होना चाहिए तथा भूसा या सूखा चारा दूध निकालने के पश्चात् ही खिलाए।

जानवारो की साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान देना चािहए। पशुओं की अच्छे से मुलायम ब्रश की सहायता से विशेषकर पिछले भाग को रगड़ कर साफ करना चाहिए।

पशुपालक को यह सुनिश्चित कर लेना चािहए की पशु को कोई संक्रामक रोग जैसे क्षय रोग, ब्रूसेलोसिस, ,खुरपका-मुंहपका आदि बीमारियां तो नही है और है तो ऐसे जानवर को बाकी पशुओं से अलग रख कर उनका तुरंत ही उपचार करवाना चाहिए और तब तक उस पशु के दूध का उपयोग नही करना चाहिए।

3. स्वास्थ्य तथा स्वच्छ ग्वाला:-

भारत में ग्वालों द्वारा दूध दुहने की प्रक्रिया ज्यादा प्रचलित है अपेक्षा मंशीनो के प्रयोग से इसलिए ग्वालों की सफाई तथा उनका स्वस्थ्य स्वच्छ दुग्ध उत्पादन पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। दुग्ध दुहने वाले ग्वालों को पूर्णता स्वास्थ्य होना चाहिए तथा इन नियमांे का पालन करना चाहिए।

ग्वाले हमेशा साफ-सूथरे कपड़े पहने, हाथो के नाखुन कटे हुए, सिर टोपी से ढका हुआ तथा कार्य प्रारम्भ से पहले रोगाणुनाशक (200 पी.पी.एम. क्लोरिन सोल्यूशन) से हाथ धोना चाहिए।

दूध दुहने के समय ग्वालो का बातचीत, थूकना, पान खाना, सिगरेट पीना आदि मना है।

4. स्वच्छ दोहन:-

दूध दुहने से पूर्व हाथो को साबुन से धो लेना चाहिए तथा दूध दुहने में पूर्ण हस्त विधि का ही प्रयोग करना चाहिए। थनो को खीचने के अपेक्षा हल्के से दबाते हुए दूध निकालना चाहिए। इस विधि से पशु को कष्ट नही होता तथा उत्पादन भी ज्यादा होता है। दूध निकालने से पूर्व थनो को अच्छे से क्लोरीन के घोल से साफ कर पोछ लेने के बाद प्रत्येक थन से 3-4 धारे षुरू की अलग किसी बर्तन में गिरा देना चाहिए।

5. साफ बर्तन तथा स्वच्छ दूध संग्रह:-

दूध दुहे जाने वाला बर्तन डोम आकार का होना चाहिए मतलब ऊपर से खुला भाग कम चैड़ा तथा नीचे से अधिक चैड़ा। ताकि दूध दुहने की प्रक्रिया के समय धूल, बाल, मिट्टी, कचरा अन्दर ना जा सकें।

बर्तनो को अच्छी तरह से साफ कर निर्जीवीकरण करना अनिवार्य है। हर उपयोग के पहले इसलिए बर्तनों को गर्म पानी तथा डिटरजैन्ट से साफ कर क्लोरिन अथवा उबलते पानी में कुछ देर रखना चाहिए। बर्तन हमेशा वही प्रयोग करे जो जंग रहित धातु का बना हो, जैसे-एल्यूमीनियम या स्टेनलैस स्टील आदि।

दूध निकालने के बाद दूध का शीघ्र ही वितरण कर देना चाहिए और यदि इसमें देरी हो तो दूध को 40 ब पर या उबाल कर ही रखे। पशु के थनो की हमेशा जाँच करते रहना चाहिए और किसी भी प्रकार का विकार हो तो तुरन्त ही पशुचिकित्सक की सलाह लेना उचित होगा।

 

डाॅ. पूजा सिंह

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, पंतनगर

एवं

डाॅ. अंकित कुमार सिंह, डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. नरेन्द्र सिंह मीणा 

स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान

पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर