मछली के आहार में कीड़ों का योगदान

पशु संदेश, 02 September 2019

डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. अंकित कुमार सिंह

मछली प्रोटीन, वसा, खनिज लवण व विटामिन का महत्वपूर्ण स्त्रोत है तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण मछली की मांग में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले कुछ दशकों में मछली की मांग में आश्चर्यजनक वृद्धि देखने को मिलेगी जो 20 टन से भी ज्यादा होगी। अतः उक्त वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि केवल समुद्री मछली के शिकार से यह मांग पूरी नहीं की जा सकती तथा अत्यधिक मछली के शिकार से समुद्री भण्डार में असमानता हो सकती है, जो आजकल एक ग्लोबल वार्मिंग का वैश्विक मुद्दा बन गया है। इस समस्या से निजात पाने तथा मछली की बढ़ती हुई मांग पूरी करने का एक उपाय मछलीपालन है जिसे एक्वाकल्चर कहते हैं। इस विधि के द्वारा मछलियों को कृत्रिम तालाबों में पाला तथा बड़ा किया जाता है ताकि समुद्री मछलियों का अत्यधिक शिकार ना हो।

वर्तमान में एक्वाकल्चर सबसे ज्यादा उभरती हुई खाद्य औद्योगिक ईकाई है। एफ.ए.ओ. के मुताबिक 600 से ज्यादा प्रजातियों को एक्वाकल्चर के माध्यम से पाला जा रहा है जो 100 मिलियन टन से ज्यादा उत्पादन देती है जिसकी कीमत करीब 170 बिलियन डाॅलर है जो कि कुल मछली उत्पादन का 40 प्रतिशत है तथा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक यह 62 प्रतिशत तक पहंुच जाएगा। उपरोक्त दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए इस बात पर बहुत शोध हो रहे हैं कि कैसे मछलीपालन को आर्थिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से आसान बनाया जाए। अन्य बिन्दुओं के अलावा एक्वाकल्चर की स्थिरता इसमें उपयोग किये जाने वाले आहार की प्रकृति एवं गुणवत्ता पर अत्यधिक निर्भर करती है क्योंकि इस तरह के आहार का मछली के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा यह पानी और पारिस्थितकी तंत्र के प्रदूषण का एक संभावित स्त्रोत भी होता है।

पर्यावरण की दृष्टि से मछली के आहार में मछली का तेल तथा अन्य समुद्री प्रोटीन के स्त्रोत एक महत्वपूर्ण समस्या है क्योंकि वर्तमान में कोई भी समुद्री स्त्रोत ऐसा नहीं है जो बढ़ती मछली की मांग को पूरा करने के अनुरुप मछली के आहार के रुप में उपयोग किया जा सके। आर्थिक दृष्टिकोण में वैश्विक आहार मूल्य में वृद्धि तथा मुख्य रुप से मछली की बढ़ती मांग के कारण, आहार की लागत उद्योगों के लिए प्राथमिक हो गई है। इसलिए पर्यावरण के बोझ को सीमित करने तथा लागत कम करने के लिए शोधकत्र्ताओं को कोई वैकल्पिक उपाय ढूंढने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके लिए बड़े स्तर पर केन्द्रीय अनुसंधान ने उन प्रणालियों को डिजाईन करने का लक्ष्य रखा जो पर्यावरणीय उद्देश्यों की प्राप्ति जैसे संसाधनों की खपत में कमी, मछलीपालन का पर्यावरण पर प्रभाव, फिशमील का मछली के आहार के रुप में प्रतिस्थापन आदि सुविधा प्रदान करते हैं। इस तर्ज पर सूक्ष्म स्तर पर ध्यान केन्द्रित करने वाले कुछ अध्ययनों ने व्यक्तिगत कम्पनियों को आर्थिक रुप से टिकाऊ तथा समय के साथ प्रतिस्पर्धी व्यवसाय में स्थिर रिटर्न प्राप्त करना परन्तु 40 से 70 प्रतिशत खर्च केवल आहार पर हो जाता है जिसमें उपरोक्त उद्देश्य को सीमित कर दिया है।

फिश मील का मुख्य प्रस्तावित विकल्प सोयाबीन भोजन है जिसे मछली के चारे के रुप में पेश किया गया है परन्तु अत्यधिक मात्रा में सोयाबीन उत्पन्न करने के लिए ज्यादा भूमि के इस्तेमाल तथा पोषण विरोधी कारण मिथियोनिन जिससे मछली के पाचन तंत्र में सूजन आने के कारण पाचन क्रिया कम हो जाती है। जिसके कारण इस आहार का उपयोग ज्यादा नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर वैज्ञानिक दर्शाते हैं कि मछली के भोजन के रुप में कीड़ों का उपयोग फिश मील, मछली तेल तथा पारम्परिक प्रोटीन के स्त्रोत के प्रतिस्थापन का अच्छा विकल्प है।
एक व्यवहारिक पशु फीड के रूप में कीड़े अपनी उच्च ऊर्जा और प्रोटीन स्रोत के कारण मान्यता प्राप्त कर रहे हैं। ताजा या असंसाधित सूखे कीड़ों की तुलना में कीट भोजन का लाभ यह है कि इसे आसानी से अन्य फीड घटकों के साथ जैसे कि अनाज और सोया या फिर एक वांछित संरचना मे मिश्रित किया जा सकता है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि कीट भोजन आंशिक रूप से या पूरी तरह से सोयाबीन भोजन की जगह ले सकता है जो आमतौर पर जलीय कृषि में उपयोग किया जाता है। आमतौर पर, कीटों के भोजन में अन्य खाद्य प्रकारों की तुलना में अधिक अमीनो एसिड सामग्री होती है। कीट भोजन आवश्यक अमीनो एसिड का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है जैसे कि मेथिओनिन, 0.47 से 4.03 ग्रामप्रति 100 ग्राम के बीच। ये मात्रा अन्य जानवरों और पौधों के भोजन के लिए रिपोर्ट किए गए मात्रा की तुलना में अधिक हैं। इसके अलावा, कीड़े लिपिड और फैटी एसिड के अच्छे स्रोत भी हैं। इसके अलावा, कीट भोजन मे अतिरिक्त पोषण मूल्य के काईटीन जैसे यौगिक शामिल हैं, जिसे मुख्य रूप से नाइट्रोजन और अमीनो एसिड का स्रोत माना जाता है। कीट पेप्टाइड्स रोग जनक सूक्ष्मजीवो से सुरझा प्रदान कर पशुस्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।

मछली के भोजन के रूप में कीड़े का उपयोग करने के लाभ

कीड़े बहुतायत और स्थायी हैं।

कीड़ों के उत्पादन के लिये पूंजी या भूमि मे नगण्य निवेश की आवश्यकता होती है।

सटीकता और ट्रैकिंग प्रक्रियाओं की शुरुआत करके कीड़ों के उत्पादन को स्वचालित किया जा सकता है।

कीटों को अधिक आसानी से बढाया जा सकता है जो इसे एक स्थायी खाद्य स्रोत बनाता है। प्रत्येक कीट एक बड़ी मात्रा में अंडे देता है।

कीड़ों को संशोधित करके अथवा उसी रुप में मछली को खिलाकर यह निष्कर्ष निकाला गया कि कीड़ों में उच्च प्रोटीन (45 से 70 प्रतिशत) अच्छे आवश्यक अमोनी अम्ल और लगभग 8 से 35 प्रतिशत तक वसा पाई जाती है।

यूरोपियन आयोग में आर्थिक एवं पर्यावरण की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए एक विधेयक 893/2017 पारित किया है जो सात तरह के कीड़ों को मछली के भोजन के रुप में उपयोग करने की अनुमति देता है। जिनमें मुख्य रुप से पीला मीलवाॅर्म (टेनेब्रियों पोलिटर), काली सैनिक मक्खी (हर्मेटिया इल्यूकेंस) तथा घरों में पाई जाने वाली मक्खी (मस्का डोमेस्टिका) शामिल है। कुछ वैज्ञानिकों ने पीला मीलवाॅर्म को फिश मील के स्थान पर मछली के आहार के रुप में इस्तेमाल किया तथा निष्कर्ष निकाला कि यह कीट मछली के भोजन में फिश मील को आंशिक रुप से विस्थापित कर सकता है। बाजार के दृष्टिकोण से कीट व्यवसाय एक तेजी से बढ़ता क्षेत्र है और कई ऐसी कम्पनियाँ यूरोप में स्थापित भी हो चुकी है। अपनी कुछ अंतनिर्हित विशेषताओं के कारण कीट भोजन मछली उत्पादन में क्रांतिकारी साबित होगा तथा सन् 2023 तक कीट प्रोटीन फिश मील का प्रतिस्पर्धी बन जाएगा।

अतः उपरोक्त विचारों के प्रकाश में यह निष्कर्ष निकलता है कि मछली के भोजन में कीटों का इस्तेमाल किस प्रकार आर्थिक परिणाम बदल सकते हैं।

डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. अंकित कुमार सिंह
स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, जयपुर
एवं
डाॅ. ब्रह्मानन्द
अपोलो काॅलेज आॅफ वेटेरनरी मेडिसीन, जयपुर