पशु संदेश, 15 February 2019
Dr R B Choudhary
ऐतिहासिक उल्लेखों के अनुसार जल्लीकट्टू का शाब्दिक अर्थ है - सांड के सिंग पर स्वर्ण मुद्रा बाँध कर खुले में दौड़ाना तथा शक्तिशाली बैल को पकड़ कर पुरूस्कार रूप यह स्वर्ण प्राप्त कर लेना । आमतौर पर खेती-बाड़ी के कार्यों में कुछ महीने फुर्सत के होते है। ऐसे अवसर पर किसान फसल की कटाई के साथ-साथ हर्षोल्लास का इजहार एक उत्सव के रुप में मनाता है। जहां अपने प्रिय बैल को सजा-सवार कर उसके साथ क्रीड़ा करता है। कहा जाता है कि तमिल कृषको की एक बड़ी तमन्ना रहती है कि उसका बैल सबसे सुन्दर – सबसे शक्तिशाली हो और इसका गौरव वह प्राप्त करें। यही भावना बैल प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है जिससे जल्लीकट्टू खेल का जन्म हुआ।
सूत्रों के अनुसार जलीकट्टू की खेल मैं बड़े - बड़े पुरस्कार दिए जाते हैं।कई आयोजनों में साइकिल और बाइक से लेकर कार तक का पुरस्कार दिया जाता है। आमतौर पर नगदी पुरस्कार और रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाले कार्य समान जैसे मिक्सी,, ग्राइंडर, पंखा, अलमारी इत्यादि एक साधारण बात है। एक स्वयंसेवी संस्था के अनुसार अब खेल आयोजन में बोली लगने लगी है और बड़े -बड़े इवेंट मैनेजमेंट के लोग इस खेल आयोजन में शामिल होने की योजना बना रहे हैं। संस्था के अनुसार 20 से 25 लाख रुपए प्रतियोगियों पर खर्च करने के लिए तैयार हैं। पशु प्रेमियों के एक ग्रुप का मानना है कि इस सांस्कृतिक उत्सव में व्यावसायिकता नहीं आनी चाहिए।
कहा जा रहा है कि अगर इस ऐतिहासिक जलीकट्टू के इस खेल में सांस्कृतिक विरासत एवं गोवंशीय नस्ल संरक्षण के नाम पर पर्यटन विकास एवं व्यवसायिकता की महत्वकांक्षा हाबी हो गई तो जल्लीकट्टू खेल के इस पौराणिक परंपरा चिंताजनक स्थिति में पहुंच सकती है।सरकार के साथ सभी को इस विषय पर सोचने की आवश्यकता है। कुछ लोगों की राय है कि जल्लिकट्टु खेल में जान-माल की सुरक्षा का एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है। आज इस विषय पर आत्ममानथन जरुरी है ताकि जल्लिकट्टु के साथ जुड़े पशु नस्ल संरक्षण कार्यक्रमों से ले कर पशु अधिकारों के मर्यादा के साथ -साथ तमिलनाडु किसान के घर के चिराग (नौजवान की जान ) की भी चिता की जानी चाहिए। असंतुलित धारणा से किसी सभ्यता, संस्कृति और प्रचल की रक्षा एवं संवर्धन दीर्घकालिक नहीं हो सकता है।
पिछले साल से तमिलनाडु की सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक खेल "जल्लीकट्टू"(बैल-पकड़) का आयोजन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाए प्रतिबंध के बाद राज्य सरकार द्वारा लाए गए ऑर्डिनेंस के बाद पूरे तमिलनाडु में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के निगरानी में अब बे रोक-टोक चल रहा है। इस सिलसिले में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के निरीक्षण समिति की बैठक राज्य के उप मुख्यमंत्री ओ.पनीरसेल्वम से मुलाकात हुई। निरीक्षण समिति के प्रमुख डॉ. एस. के. मित्तल ने केंद्र सरकार की ओर से जल्लीकट्टू खेल को नियमानुसार आयोजित कराने के लिए राज्य सरकार की सराहना की, खासकर, राज्य के सभी जनपदीय एवं क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों के चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि जलीकट्टू में शामिल बैलों एवं बैल पकड़ने वाले प्रतिभागियों दोनों का नुकसान करीब -करीब नहीं के बराबर हुआ है,जो एक रिकॉर्ड है।
तमिलनाडु के तेनी जनपद में डॉ. एस. के. मित्तलत के नेतृत्व में वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के अधीन कार्यरत भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड द्वारा बनाई गई जल्लीकट्टू निरीक्षण समिति ने तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम से हुई बैठक में कहा कि गत वर्ष 18 जिलों में 413 आयोजनों को अनुमति दी गयी थी जिसमे से 327 आयोजन हुए। इन आयोजनों में 144 जल्लीकट्टू, 151 इरथूविडम विज़्हा, 28 मंजूविर्ट्टू एवं 4 वडममंजू विरट्टू आयोजित किये गये थे।जिनमे 118771 बैलों एवं 108837 खिलाडियों ने भाग लिया और उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लगभग 3 करोड़ दर्शकों ने देखा | साल भर में कोई 7 खिलाडी एवं दर्शक तथा 2 बैलों की मृत्यु हुई और कुल 190 बैल घायल हुए।डॉक्टर मित्तल ने बताया कि अन्य वर्षों की तुलना में यह संख्या नहीं के बराबर है। उपमुख्यमंत्री के साथ इस बैठक में बीजेपी सांसद पारतीपन और तेनी जिलाधिकारी मारीम पल्लवी बलदेव, आईएएस भी मौजूद थीं ।
जल्लीकट्टू खेल के नियम-अधिनियम के अनुपालन एवं प्रबंधन पर राज्य प्रशासन की सराहना करते हुए डॉक्टर मित्तल ने कहा कि जलीकट्टू कार्यक्रम आयोजन में यह पहला अवसर होगा कि इतनी बड़ी तादाद में जल्लीकट्टू खेल में शामिल होने बैल तथा खिलाड़ी शामिल हुए जो बिल्कुल सुरक्षित रहे और पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए। सूत्रों के अनुसार इस वर्ष पोंगल आयोजन के अवसर पर खेल में शामिल होने वाले बैलों की संख्या इतनी बढ़ गई की जल्लीकट्टू खेल का नाम "गिनीज बुक" आ गया। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार तमिलनाडु के पुद्कोट्टई मैं आयोजित जल्लीकट्टू कार्यक्रम में कुल 1353 बैलो को शामिल होने से जल्लीकट्टू खेल का एक इतिहास बन गया जिससे जल्लीकट्टू का नाम गिनीज बुक में दर्ज हो गया।
यह बता दें कि तमिलनाडु में पिछले हजारों साल से पोंगल(मकर संक्रांति)के अवसर पर खेले जाने वाले जलीकट्टू खेल को भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड एवं "पेटा"नामक विदेशी पशु कल्याण संस्था की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने 7 मई 2014 को खेल के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था। मोदी सरकार तमिलनाडु की जनता को बार-बार आश्वासन देने के बाद भी जल्लीकट्टू के आयोजनन न करा पाने से 8 जनवरी 2017 को तमिलनाडु के युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा और चेन्नई के मरीना समुद्र तट पर 20 लाख से अधिक युवाओं की भीड़ धरने पर बैठ गई। 23 जनवरी 2017 को केंद्र एवं राज्य सरकार को जल्लीकट्टू आयोजित करने के लिए ऑर्डिनेंस पास करना पड़ा। तब से यह खेल भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड एवं राज्य सरकार के निगरानी में जलीकट्टू का आयोजन आरंभ हो गया ।
विशेषज्ञों के अनुसार जलीकट्टू खेल का इतिहास तकरीबन 2500 वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि भगवान् शिव ने विश्व के पृथम सांड – नंदी को नाथा था और नंदी के साथ क्रीडा भी की थी। इस कथन से प्रेरित होकर दक्षिण भारत के तमिलनाडु में यह परम्परा चली आ रही है। तमिलनाडु के किसान अपने फसल की कटाई का जश्न मनाते हैं। अपने खुशहाली को एक उत्सव के रूप में "मकरसंक्रांति" या "पोंगल" के अवसर पर व्यक्त करते हैं। तमिलनाडु में इस उत्सव का समय जनवरी मध्य से ले कर मानसून की पृथम वर्षा अर्थात मई के अंत तक मानाया जाता है।
PS: डॉक्टर आर बी चौधरी ऐवम तरुण मित्र का साभार