जानवरों में लम्पी स्किन रोग

Pashu Sandesh, 14 June 2022

डॉ. विशम्भर दयाल शर्मा, डॉ. गया प्रसाद जाटव, डॉ. सुप्रिया शुक्ला, , डॉ. जयवीर सिंह, 

[पशु विकृति विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, महू (.प्र.)]

डॉ. सूर्य प्रताप सिंह परिहार, डॉ. विपिन कुमार गुप्ता

[पशु सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, महू (.प्र.)]

डॉ. विमल पटेल

परिचय 

पिछले एक दशक से भारत में लम्पी स्किन रोग से सम्बन्धित कई मामले देखने को मिले है।यह रोग मुख्यतः गाय एवं भैसों में देखने को मिलता है।यह बहुत ही संक्रामक बीमारी है।इस बीमारी में जानवरों के पूरे त्वचा में गाँठें बन जाती है।यह बीमारी सबसे पहले 1929 मेंजाम्बिया (अफ्रीका) में देखी गई थी।धीरे धीरे इसका प्रसार सम्पूर्ण विश्व में हो गया है।पिछले एक दशक से भारत में लगभग सभी जगह फैल चुकी है।सन 2019 में मध्यप्रदेश, ओडिसा, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में लम्पि स्किन रोग के लक्षण जानवरों में बहुत देखने को मिले हैं 

मध्यप्रदेश में सबसे पहले अनूपपुर में अगस्त के महीने मे इस रोग के लक्षण से ग्रसित जानवर पाया गया था और एक महीने से भी कम समय मे यह रोग मध्यप्रदेश के लगभग 10 से 12 ज़िलो मे फैल गया था। तथा बालाघाट जिले मे सबसे ज्यादा रोग ग्रसित जानवर पाये गये थे। यह बहुत तेजी से फेलने वाला संक्रामक रोग है ।  किसानों एवं पशुपालकों को इस रोग की जानकारी के अभाव के कारण बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है। 

रोगकारक

यह एक विषाणु जनित रोग है जो की “पोक्सविरीडी फैमिली के कोड्रॉपॉक्स सब फैमिली में कैप्रीपॉक्स (लम्पीस्किनरोगवायरस) वायरस” से होता है।यह एक दोहराद्विगुणित DNA विषाणु है जो कि जानवरों में पाये जाने वाला सबसे बडा विषाणु है।यह विषाणु “शीपपॉक्स और गोट‌पॉक्स” से मिलता जुलता विषाणु है।इसमे एक ही प्रकार का सीरोटाइप पाया जाता है। 

फैलने का कारण

यह सामान्यतः पशुओं की लार, दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है।यह रोग, रोग ग्रसित पशु से निकलने वाले शरीर के विभिन्न द्वव्यों से दूसरे पशुओं में भी फैलता है।विभिन्न मच्छर, मक्खियाँ एवं जूँ (टिक्स)  इत्यादि भी इस रोग के रोगवाहक होते है।

रोग का प्रसार / प्रक्षेत्र 

यह रोग मुख्यतः गाय एवं भैसो मे पाया जाता है।लम्बे समय तक यह रोग केवल अफ्रीकी देशों में ही सीमित था लेकिन अब यह धीरे-धीरे विश्व में फैल चुका है। लगभग 2012 के बाद से यह रोग मध्य पूर्व से दक्षिणी पूर्वी यूरोप से होता हुआ सब जगह फैल गया है। गाय एवं भैंस की सभी breed को यह रोग संक्रमित करता है। सभी आयु वर्ग के जानवर इस रोग से संक्रमित होते हैं। इसका संक्रामक अवधि 4 से 14 दिन का होता है।

रोगजनन 

यह विषाणु मुख्यतः शरीर में नाक, कान, आँख या पशु शरीर में पाये जाने वाले प्राकृतिक छिद्रों से शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है।सर्वप्रथम यह विषाणु शरीर में प्रवेश करते ही उस जगह पर मल्टीप्लाई करके अपनी संख्या बढ़ाता रहता है।धेरे- धीरे यह वहाँ की सॉकल lymph node में प्रवेश कर जाता है।वहाँ से विषाणु यकृत, स्प्लीन और फेफड़ों में चला आता है एवं संक्रमण बढ़ता चला जाता है।इसके बाद त्वचा पर इस रोग के लक्षण दिखना प्रारम्भ हो जाते हैं और अंत में यह शरीर की सम्पूर्ण त्वचा एवं शरीर में फैल जाता है।

रोग के लक्षण

  • शरीर का उच्च तापमान होना (105 - 106°F),  
  • भूखकीकमी, पूरेशरीरमेंगांठ, गांठोकाआकार 2 - 5 से.मी. होता है और यह गांठ मुख्य रूप से चेहरे, गर्दन, थूथन, नाक, जननांग, आँखों की पलकों, गर्दन, पेट और पूँछ में पायी जाती है। 
  • गाँठे गोल उभरी हुई दिखती है।
  • इस बीमारी का संक्रमण काल कुछ सप्ताह का होता है परंतु गाँठे महीनों तक रहती है जो कि समय के साथ-साथ छोटी हो जाती है और शरीर पर घाव बना देती है। 
  • इन गायों को अगर उपचार न कराया जाए तो इनमे संक्रमण तेज हो जाता है। जिससे इनमें मवाद बनने लगता है और मक्खियों के कारण कीडे भी पड सकते हैं। 
  • मुँह में गांठें होने की वजह से अत्यधिक मात्रा में लार का स्राव होने लगता है जिससे इनमें भूख की कमी आने लगती है तथा शरीर मे पानी की कमी आने लगती है। 
  • जानवर बिल्कुल कमजोर होने लगता है। 
  • जानवरों की आँखों से दर्द के कारण पानी निकलता रहता है। 
  • नाक से पानी आना तथा फेफड़ों में गांठों की वजह से विषाणु के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। जिसके कारण पशुओं को न्यूमोनिया भी हो सकता है । 
  • सतही लसिका नोड के बढ़ जाने से पशुओं के पैर में सूजन आ जाती हैं जिससे पशु लंगडाकर चलते हैं। पशुओं को उठने बैठने में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है। 
  • नर पशुओं की कार्यक्षमता में भी कमी आ जाती है। 
  • लम्पी स्किन रोग से गर्भवती मादा पशुओं में गर्भपात हो सकता है । 
  • दुग्ध उत्पादन में कमी भी पशुओं में देखी जा सकती है। 
  • नर पशुओं में भी बांझपन के लक्षण देखने को मिलते हैं हालाकि इस रोग में मृत्युदर में कभी होती है लेकिन फिर भी यह 10 प्रतिशत तक हो सकती है । 

उपचार एवं रोकथाम ;-

               यह एक विषाणु जनित बीमारी है। इसका पूर्ण रूप से ईलाज संभव नहीं है। लेकिन फिर भी इसका लक्षण आधारित उपचार किया जा सकता है । इस बीमारी को अन्य पशुओं मे फैलने से रोकने के लिए एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय जरूर करने चाहिए –

उचित प्रबंधन, स्वच्छता एवं रखरखाव :- 

  • इस बीमारी से बचाव के लिए जैव सुरक्षा (बायो सिक्योरिटी)  रखनी चाहिए ।
  • पशुओं के आवास की सम्पूर्ण रूप से साफ सफाई एवं निस्संक्रामक दवाइयों का उपयोग करना चाहिए।
  • बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • समय- समय पर पशुचिकित्सकों द्वारा पशुओं की जाँच करवाना चाहिए ।
  • भोजन - पानी एवं दवाइयों का समय के हिसाब से उचित प्रबंधन होना चाहिए । 
  • पशुओं के आवास में नमी, प्रकाश आदि चीजों का सम्पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए।

 

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