पशु विज्ञान इनक्यूबेटर के  शूकर पालन उद्यमिता प्रशिक्षण का युवाओं के आय  एवं रोजगार पर प्रभाव

Pashu Sandesh, 12 Jan 2022

डॉ आकृति आना एवं डॉ बी पी सिंह

प्रसार शिक्षा विभाग

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान

इज़्ज़तनगर, बरेली-243 122

भारत में पशुधन उद्योग न केवल राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।डेयरी, पोल्ट्री, मत्स्यपालन, ऊन, सूअर का मांस और अन्य उत्पादों के उत्पादन, मूल्यवर्धन और निर्यात के क्षेत्र में भारत अग्रणी रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा पशुधन क्षेत्र, मांग-संचालित और बाजार-आधारित जरूरतों को पूरा करता है ,जिसकी  ग्रामीण अथवा शहरी क्षेत्रों  के विकास में अपार संभावनाएं हैं।

भारत एक युवा आबादी वाला देश है, जिसमें से 19 प्रतिशत (231.9 मिलियन) युवा हैं,  जिनकी आयु 15-24 वर्ष के बीच है, परंतु यहाँ की  बेरोजगारी दर भी  7 प्रतिशत है जो की भारत के सम्पूर्ण विकास मे बाधा है।  (सीएमआईई रिपोर्ट, 2020)। हालांकि, समृद्ध मानव संसाधन की द्रष्टि से  यह युवा शक्ति देश के विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है , जिसे अगर सामाजिक एवं आर्थिक ढांचे को पुनर्व्यवस्थित करने के हेतु  काम में  लाया  जाए तो देश की अर्थव्यवस्था में एक आदर्श बदलाव हो सकता है। बेरोजगारी और आर्थिक मंदी के बीच भारत को अपने युवाओं को आत्मनिर्भर और कार्यकुशल बनाने की   ताकि वे अनिश्चित समय में अपनी आजीविका का प्रबंधन के लिए सक्षम हो सके । भारत सरकार के प्रमुख महत्वाकांक्षी कार्यक्रम "आत्म-निर्भार भारत", के सपने को प्रत्यक्ष करने हेतु अनेक प्रयास किये जा रहे हैं, जिसमें पशुधन उन्मुख स्टार्ट-अप भी सम्मिलित है जिसमें  सफलता की अपार संभावनाएं हैं । वर्तमान परिद्रश्य में बाजार में दूध, मांस और मूल्य वर्धित मांस उत्पादों जैसे पशुधन उत्पादों की जबरदस्त मांग है। वैश्वीकरण के इस दौर में वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश के साथ किया गये शूकर पालन से लोगों मे आत्मनिर्भर बनने की और लाभदायक व्यवसाय करने की क्षमता विकसित हो सकती है। भारत में  शूकर  की आबादी लगभग 9.06 मिलियन है, जो की भारत के कुल पशुधन का लगभग 1.7 प्रतिशत भाग है और भारत दुनिया में शूकर की आबादी में दूसरे स्थान पर है (पशुपालन और डेयरी विभाग, डी.ए.एच.डी, 2019) इस कारण से शूकर पालन कम निवेश क्षमता वाले युवाओं और गरीब  किसानों के लिए स्वतंत्रता और स्वरोजगार की दिशा में एक अप्रयुक्त प्रयास है।

इस दृष्टिकोण से कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने “राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए लाभकारी दृष्टिकोण” (आरकेवीवाई-रफ़्तार) के तहत, ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ के विभिन्न केंद्रों मे  ‘कृषि व्यवसाय ऊष्मायन केंद्र’ या “अग्री बिजनेस इन्क्यबेटर सेंटर” (एबीआईसी) शुरू किया है, जो की कृषि विज्ञान एवं संबंधित 'उद्यमिता विकास’ के विविध क्षेत्रों में स्टार्ट-अप के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बना रहा है। इनमे से एक ‘आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान’ का अग्री बिजनस इन्क्यबेटर है,  जिसे “पशु-विज्ञान इनक्यूबेटर” के रूप में भी जाना जाता है | यहां शूकर पालन पर "उद्यमिता विकास कार्यक्रम" (ईडीपी)  प्रक्रियाधीन है जिसमे किसानों और युवाओं को व्यावसायिक स्तर पर परामर्श के साथ शूकर पालन पर तकनीकी रिसर्च ट्रैनिंग एवं ज्ञान भी  प्रदान किया जाता है, जिस से युवा शूकर पालकों को इस क्षेत्र मे आगे बढ़ने  के लिए प्रेरणा मिलती है। 

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के 'एग्री-बिजनेस इनक्यूबेटर सेंटर' द्वारा ‘शूकर पालन उद्यमिता विकास कार्यक्रम’ का प्रशिक्षुओं के जीवन पर क्या प्रभाव रहा ? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। इसी विषय पर प्रकाश डालने के लिए “प्रसार शिक्षा विभाग”{ आई वी आर आई } मे एक अध्ययन किया गया जिससे इस कार्यकर्म की उपलब्धियों और कमियों का ज्ञान हो सके एवं ग्रामीण समाज पर इसके प्रभाव को अंकित किया जा सके। 

इस उद्यमिता विकास ट्रैनिंग कार्यक्रम मे भाग लेने वाले अधिकांश प्रशिक्षु मध्यम आयु वर्ग (30-40 वर्ष) के, एवं विवाहित थे । अधिकांशतः सामान्य वर्ग से एवं एक तिहाई अनुसूचित जाति के थे । ये प्रशिक्षु उत्तराखंड, असम, हरियाणा, बिहार जैसे विभिन्न उत्तर भारतीय राज्यों से थे परंतु अधिकांश उत्तर प्रदेश से थे। आधे से अधिक ने आई वी आर आई मे प्रशिक्षण के बाद वर्ष 2019 में अपना शूकर  पालन उद्यम शुरू किया था और उनमें शूकर पालन का एक से दो वर्ष का मध्यम अनुभव पाया गया । अधिकांश प्रशिक्षुयों मे उच्च स्तर की औपचारिक शिक्षा (स्नातक और अधिक) देखी  गई जो की उनके शूकर पालन की जानकारी पाने की अग्रशीलता को दर्शाती है। इस से हमें यह भी पता चलता है की मुख्य रूप से प्रशिक्षु पढ़े लिखे, सूचना के प्रति जागरूक  अथवा शूकर पालन से पहले कृषि एवं पशुपालन उनके व्यवसाय का मुख्य  स्रोत रहा था ।  

प्रशिक्षुओं में से बड़े अनुपात में उच्च स्तर का मास मीडिया एक्सपोजर और महत्वपूर्ण सामाजिक भागीदारी पायी गयी। ज्यादातर प्रशिक्षुओं के बीच नवीनता, उपलब्धि-प्रेरणा, जोखिम-अभिविन्यास, सर्वदेशीयता, निर्णायक-क्षमता, समन्वय-क्षमता, योजन-क्षमता   और आत्मविश्वास आदि जैसे उद्यमिता-गुणों का उच्च स्तर देखा गया, 60 प्रतिशत से अधिक में उच्च स्तर की उद्यमशीलता की पुष्टि हुई । लगभग 60 प्रातशत प्रशिक्षु “हाई अडाप्टर “ केटेगरी मे आए  हैं जिसका अर्थ है की वे  वैज्ञानिक शूकर पालन प्रथाओं/ पद्धतियों को अपना कर अपने फार्म मे इस्तेमाल कर रहे हैं। यह इस लिए भी संभव है क्योंकि  आधे से ज्यादा प्रशिक्षुओ को वैज्ञानिक शूकर पालन की जानकारी थी एवं अधिकांश में   वैज्ञानिक शूकर पालन प्रबंधन के प्रति उच्च और अनुकूल वयवहार भी देखा गया। उनमे वैज्ञानिक शूकर प्रबंधन प्रथाओं के अभिग्रहण का उच्च स्तर, शूकर  पालन के बारे में उच्च स्तर के ज्ञान और  अनुकूल दृष्टिकोण उनके आईवीआरआई से प्राप्त हुई प्रशिक्षण के सकारात्मक प्रभाव के कारणों से था। कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों के बीच वैज्ञानिक शूकर पालन प्रथाओं के बारे में उच्च ज्ञान और दिलचस्पी  मुख्य रूप से कार्यक्रम की सफलता को इंगित है।

 शूकर पालन के उद्यमों को शुरू करने से प्रशिक्षुओं और उनके परिवार के लिए महत्वपूर्ण रोजगार सृजन भी (औसतन  प्रतिवर्ष 245 मानव-दिवस) देखा गया। शूकर पालन उद्यम शुरू करने के  बाद में वार्षिक आय में पर्याप्त परिवर्तन देखा गया। सुअर उद्यमियों की वार्षिक आय में उल्लेखनीय वृद्धि भी  हुई है। शूकर पालकों को  5,24,382 रुपये का वार्षिक औसत लाभ मिला अथवा उनके फार्म का लाभ लागत अनुपात 1.33 पाया गया।

कोविड-19 महामारी लॉकडाउन प्रतिबंधों का शूकर पालन से आय और लाभ पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश प्रशिक्षुओं ने 2019 में अपना उद्यम शुरू कर दिया था जो की लॉकडाउन चरण के साथ मेल खाता था, जिससे बिक्री में बाधा उत्पन्न हुई और इससे लाभ कम हुआ। लगभग तीन-चौथाई उधमी अपने शूकर पालन उद्यमों से लाभ कमा रहे  थे और अधिकांश मध्यम (25 से 30 लाख ) एवं उच्च स्तर (30 लाख से अधिक ) का लाभ अर्जित कर रहे थे। शूकर पालन से अच्छी आय का श्रेय  ‘सुअर पालन उद्यमिता विकास कार्यक्रम’ द्वारा विकसित सामाजिक भागीदारी, उद्यमशीलता व्यवहार एवं उच्च औपचारिक शिक्षा को दिया जा सकता है    । इस ट्रैनिंग मे मिले ज्ञान और व्यक्तिगत प्रशिक्षण के कारण शूकर पालको का उद्यमी व्यवहार सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ जिससे प्रेरित होकर 75 प्रातशत से अधिक प्रशिक्षुओं  ने अपना खुद का शूकर पालन व्यवसाय शुरू किया और अब लाभ काम रहें हैं। । उनमे से 25 प्रतिशत बेरोजगार युवा रहे जिन्हे अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद रोजगार का कोई साधन नहीं मिला  था परंतु अब वह आत्म निर्भर ही नहीं हैं परंतु दूसरों  के लिए भी रोजगार प्रदान कर रहे  हैं।  

आई वी आर आई के पशु विज्ञान इन्क्यबेटर की  ‘संस्थागत गुणवत्ता विशेषज्ञता' और 'विशेषज्ञों की अनुकूल प्रकृति'  शूकर पालन उद्यमिता विकास कार्यक्रम की सबसे पसंदीदा तथा लोकप्रिय विशेषता है । 

अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुच सकते हैं की ‘ शूकर पालन उद्यमिता विकास कार्यक्रम’ एक समग्र सकारात्मक और प्रभावशील कार्यक्रम रहा है जिसने कई गरीब किसानों तथा बेरोजगार युवाओ को शूकर  पालन मे अपना भविष्य बनाने की दिशा दी  है। यह कार्यक्रम नए उभरते उद्यमियों का सहारा बना एवं उन्हे काम लागत मे कमाई करने का तथा रोजगार बनाने का जरिया भी दिया। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान  संस्थान के पशु विज्ञान इन्क्यबेटर को इस प्रकार के पशु संबंधी उद्यमशीलता कार्यक्रमों को अधिक जोश' ऊर्जा एवम सुधार के साथ लागू करते रहना चाहिए  ताकि इसके लाभ जमीनी स्तर पर पहुच सके और ज्यादा से ज्यादा लोग लाभान्वित हो सकें।