पशु संदेश, 26 August 2019
डॉ मधु शिवहरे , डॉ। जीतेंद्र यादव , डॉ रेशमा जैन , डॉ कविता रावत , डॉ दीपिका
पशुपालक को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि पशु समय से गर्भधारण करे। ब्याने के बाद 2-3 महीने के अंदर दोबारा गाभिन हो जाए व बच्चा देने का अंतर 12-13 महीने से ज्यादा न हो। यह तभी संभव है, जब गाय भैंस को भरपूर संतुलित आहार मिले और उन की प्रबंधन व्यवस्था अच्छी हो। गाय भैंस के ब्याने से 2 महीने पहले उस का दूध सुखा देना चाहिए। दूध सुखाने के लिए 15-20 दिन पहले से थनों से धीरेधीरे कम दूध निकालते हैं। इस प्रकार दूध सूख जाता है। अब इन 2 महीनों में पशु को पौष्टिक हरा चारा व दाना मिश्रण देना चाहिए। इस अवस्था में जितनी अच्छी देखरेख होगी, उतना ही ब्याने के बाद अच्छा दूध उत्पादन लंबे समय तक प्राप्त होगा। एक दुधारू पशु की दूध न देने की अवधि जितनी कम होगी, पशुपालक के लिए उतना ही फायदेमंद होगा। इस के लिए जरूरी है कि ब्याने के 8-12 हफ्ते के अंदर गायभैंस को दोबारा गाभिन करा दिया जाए। यदि पशु इस अवधि में गरम न हो, तो उसे गरम होने की दवा देनी चाहिए।
पशुओं में गर्भाधान : पशुओं में गर्भाधान आमतौर पर 2 विधियों द्वारा किया जाता है। पहली विधि, जिस में सांड़भैंसे द्वारा गर्भाधान कराया जाता है, जिसे प्राकृतिक गर्भाधान कहा जाता है। दूसरी विधि में सांड़भैंसे के वीर्य को कृत्रिम साधनों से मादा में प्रवेश कराते हैं। इसे कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं।
प्राकृतिक गर्भाधान : प्रजनन हेतु भैंसा या सांड़ राजकीय संस्थाओं से प्रमाणित नस्ल का होना चाहिए। अगर गांवों में किसी भैंसे या सांड़ से गर्भाधान कराना हो, तो कम से कम भैंसे या सांड़, जिस की मातादादीनानी अच्छी दुधारू गाय या भैंस व पितादादानाना उत्तम गुण के सिद्ध हो चुके हों, का रिकौर्ड पता होना चाहिए। अगर दादा दादी, नाना का रिकौर्ड न पता हो, तो मातापिता का रिकौर्ड अवश्य मालूम होना चाहिए।
सांड़ की उम्र कम से कम 3 साल व भैंसे की उम्र 4 साल या 10 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। एक सांड़ या भैंसे से दिन में एक बार एक मादा से अधिक गाभिन नहीं कराना चाहिए और उसे बीमार मादा के संपर्क से भी बचाना चाहिए।
कृत्रिम गर्भाधान : नर पशु का वीर्य कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के जननेन्द्रियों (गर्भाशय ग्रीवा) में यन्त्र की सहायता से कृत्रिम रूप से पहुंचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है इस विधि में मादा को नर से सीधे नहीं मिलाया जाता है, बल्कि कृत्रिम विधि से गाय को गाभिन करा दिया जाता है, क्योंकि गर्भाधान के लिए 1 या 2 शुक्राणु ही काफी होते हैं। लिहाजा, कृत्रिम विधि से निकाले गए वीर्य को पतला कर जरूरत के मुताबिक सैकड़ों मादाओं को गाभिन किया जा सकता है।
कृत्रिम गर्भाधान से लाभ
गर्भ परीक्षण : वीर्य सेचन के बाद जल्दी ही गर्भ परीक्षण आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। गाय व भैंस की परीक्षा कुछ लक्षणों को देख कर ही की जाती हैं, जिस की सफलता कार्यकर्ता के प्रशिक्षण व अनुभवों पर आधारित होती है। लक्षणों पर आधारित गर्भ परीक्षा की परंपरागत विधियों में मादा को देख कर गर्भ का अनुमान लगाना, पेट थपथपाना, प्रजनन अभिलेख, वीर्य सेचन के बाद मद में न आना आदि शामिल हैं।
डॉ मधु शिवहरे , डॉ जीतेंद्र यादव , डॉ रेशमा जैन , डॉ कविता रावत , डॉ दीपिका
सहायक प्राध्यापक , वेटनरी कॉलेज , महु