जैविक दूध उत्पादन एवं सावधानियाँ

पशु संदेश, 31 मई 2018

डा० प्रमोद प्रभाकर

भारत पशुधन संख्या एवं दुग्ध उत्पादन के हिसाब से दुनिया में प्रथम है। दुनिया की कुल पशुओं की संख्या का 16 प्रतिशत हिस्सा भारत में है। चिंता का विषय यह है कि दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से भारत काफी देशों से पिछड़ा हुआ है, इसलिए देश में गुणवत्तायुक्त पशुओं की संख्या बढाने की आवश्यकता है, जिसमे देश में दुग्ध उत्पादन के साथ - साथ गोबर व मुत्र से तैयार विभिन्न उत्पादों में भी बढोत्तरी होगी और किसानों के लिए पशु एक अच्छी आय का स्त्रोत बन जायेंगे। जैविक दूध उत्पादन प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को प्रतिदिन जैविक आहार जैसे - भूसा, हराचारा, खली, दाना, चोकर, बिनौला, साफ पानी आदि की व्यवस्था समय से पूर्व ही सुनिश्चत कर लेनी चाहिए। जैविक खेती एवं जैविक दुग्ध उत्पादन दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। जैविक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए किसानों को निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना होगा।

  • दुधारू पशुओं को बांधने एवं दुध दोहन का स्थान साफ होना चाहिए।
  • पशुओं के बांधने एवं दुग्ध दोहन वाले स्थान के आसपास कभी भी कृत्रिम रसायनों का प्रयोग न करें।
  • जैविक प्रक्षेत्र से ही प्राप्त आहार (भूसा, हरा चारा, दाना, खली, चोकर ) पशुओं को खिलाएं।
  • दुधारू पशुओं को हरसंभव प्रति दिन जैविक, हरा चारा, दाना, खल्ली चोकर जैविक मिनरल मिक्चर आदि समय से खिलाएं।
  • पशुओं के बीमार होने की अवस्था में पशु चिकित्सक की सलाह के उपरांत आर्युवैदिक दवाओं का प्रयोग करें।
  • दुधारू गाय को प्रतिदिन खरेरा कर सफाई करें व गर्मियों में समय पर नहलाएं।
  • दुधारू पशु से दूध उतारने के लिए किसी भी प्रकार के इन्जेक्शन अथवा दवा का प्रयोग न करें।
  •  दूध  दोहन के समय बाल्टी, हाथ, गाय - भैंस के थनों को स्वच्छ पानी से धोएं।
  • यदि पशु का दूध अचानक कम हो जाए तो सतावरी 100 ग्राम, चन्द्रशुल ( आल्या) 100 ग्राम तथा बिलारीकन्द 100 ग्राम इन तीनों को बराबर मात्रा में देकर सुबह - शाम 150 - 150 ग्राम खिलाएं। इससे दूध में निश्चत बढोत्तरी होगी।
  • दुध दोहन के समय बीड़ी, तम्बाकू आदि का सेवन न करें।
  •  पशुओं से मानवता का व्यवहार करें।

देश में जौविक दूध उत्पादन हेतु हरे चारे प्रर्याप्त मात्रा में उत्पादन करना होगा।
देश में हरे चारे की लगभग 45 - 55 प्रतिशत की कमी है। केवल मानसून के मौसम में हरा चारा पशुओं के लिए पर्याप्त हो पाता है शेष मौसम में पशुओं को फसल अवशेषों एवं भूसे आदि पर ही पालना पड़ता है। इसके लिए हरा चारा वर्ष भर पशुओं को उचित मात्रा में मिलना सुनिश्चित करना, फसल चक्रों में उपस्थित फसलों द्वारा अधिकतम उत्पादन करना, चारा फसलों द्वारा प्रयुक्त भूमि का सिचित होनाः चारा फसलों द्वारा आवश्यक लागत निवेश जैसे खाद, आदि की उचित उपलब्धता होना विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है।

हरे चारे के उत्पादन के लिए तरोपर विधि सर्वोत्तम है। इस विधि में एक फसल के पूर्ण रूप से खत्म होने से पहले दूसरी बोई जाती है। इसका मुख्य लाभ यह है कि विभिन्न फसलो द्वारा लिये जाने वाले अलग - अलग समय की वजह  से हरा चारा वर्ष भर सामान्य रूप से मिलना सुनिश्चत हो जाता है।
देश में विभिन्न पशु प्रजातियों की बहुत सारी नस्लें पाई जाती है। इन पशु प्रजातियों में उत्तम किस्म की नस्लें उपलब्ध होने के बावजूद भी इनकी उत्पाकता काफी कम है। पशुओं की निम्न उत्पाकता के कारणें चारे- दाने की गुणवत्ता और पर्याप्त मात्रा का अभाव ही मुख्य है। आमतौर पर पशुपालक अपने पशुओं को उचित पोषक तत्वों वाला उत्तम गुणवत्ता का चारा - दाना उपलब्ध नहीं कराते है, जिसके कारण कुपोषण हो जाता है और पशु का उत्पादन न्यूनतम स्तर पर पहंुच जाता है।फलस्वरूप गाय - भैंसों, बकरियों में दुग्ध तथा भेड - बकरियों में मास उत्पादन तो घटता ही है, साथ ही पशु रोगग्रस्त भी रहते है।
प्रयोगों के दौरान पाया गया है कि वैज्ञानिक तरीकों से पर्याप्त उत्तम गुणवत्ता के पोषक तत्व युक्त चारे से पशुओं का उत्पादन काफी सुधर जाता है। पशुओं को उत्तम गुणवत्ता का हरा चारा खिलाने से पशु का दुग्ध उत्पादन बढता है, पशु लम्बे समय तक दुग्ध उत्पादन करता है, पशु समय से गर्भित होता है, पशु के दो ब्यांतो के बीच का अंतराल घटता है, पशु की प्रजनन शक्ति बढती है, पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता आश्च्र्यनक रूप से बढती है, नवजात बच्चों का भार बढता है नवजात बच्चों में मृत्यु दर घटती है आदि। वृहद स्तर पर पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों मे पशुओं को फसल अवशेषें एवं कृषि उद्योग घन्धों से बचे हुए पदार्थो को खिलाकर ही पाला जा रहा है।
यह भी पाया गया है कि दुग्ध उत्पादन में आने वाले व्यय का लगभग 70 प्रतिशत चारा - दाना का व्यय ही हैं। पशु पोषण की आवश्यकता शरीर की विभिन्न अवस्थाओं में घटती- बढती दुग्ध उत्पादन गाभिन होने आदि अवस्थाओं में घटती- बढती है। पशुओं से आर्थिक रूप से लाभकारी उत्पादन लेने के लिए पशु पोषण में मुख्य रूप से निम्नलिखित छः तत्व होने आवश्यक है।
1.    प्रोटीन
पशुओं के शारीरिक अंगो के समन्य निर्माण, टूटे- फूटे अंगो की मरम्मत के लिए तथा खुराक को पचाने के लिए प्रोटीन आवश्यक है। पशु आहार में मुख्य प्रोटीन स्त्रोत सोयाबीन- बिनौले-सरसों- मूंगफूली आदि की खल चाना मटर अरहर मंूग - उरद की चूनी तथा फलीदार दाने आदि है। पशु आहार के लिए सोयाबीन उत्तम स्त्रोत है। प्रोटीन की मात्रा 48 प्रतिशत तक होती हे। तथा यह प्रोटीन काफी पचनीय भी होती है।

2.     कार्बोहाइड्रेट
यह तत्व पशु शरीर में गर्मी तथा शक्ति उत्पन्न करते है। कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से चर्बी बढती है, इसके मुख्य स्त्रोत गेहूं चावल मक्का जौ आदि है।
3.     वसा
वसा को चर्बी या चिकनाई के नाम से जाना जाता हे। यह पदार्थ शरीर में शक्ति तथा गर्मी उत्पन्न करता है। पशु आहार में वसा के मुख्य स्त्रोत सोयाबीन, बिनौला सरसों मंगुफली, इत्यादि के तेल, खल, खाद्य पदार्थ है।
4.    विटामिन
विटामिन पशु आहार का अति आवश्यक अंग है। विटामिन पशु के शरीर विकास के लिए तो आवश्यक है ही, साथ ही यह पशु को विभिन्न रोगों से ग्रस्त  होने से भी बचाते हैं। विटामिन ए नेत्र ज्योति के लिए विटामिन डी हड्डियों के विकास के लिए तथा विटामिन ई प्रजन्न शक्ति बनाये रखने के लिए आवश्यक है। विटामिन का मुख्य स्त्रोत हरा चारा ही है।
5.    पानी
पानी पशु - शरीर का आवश्यक अवयव है। पशु - शरीर का दो तिहाई भाग पानी से ही निर्मित होता है। पानी शरीर के तापमान को बनाये रखने के लिए, खून शुद्धिकरण के लिए पाचन-तंत्र के लिए तथा अन्य कार्यिकी प्रक्रियाओं के लिए अति आवश्यक हे। विभिन्न प्रकार के हरे चारों में 70 से 90 प्रतिशत पानी विद्यमान होता है, जबकि सूखे चारों में पानी की मात्रा 10 - 15 प्रतिशत तक ही पाई जाती है।
6.    खनिज लवण
खनिज पदार्थो में मुख्य कैल्शियम सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा, कोबाल्ट, आयोडीन, आदि साधारण नमक भी शरीर के लिए आवश्यक तत्व है। इन तत्वों की हड्डियों सींगों बालों खुर आदि के लिए तो आवश्यक है हीे साथ ही उत्पादन के लिए भी इनका अपना महत्व है। तांबा एवं कोबाल्ट पशु  प्रजनन क्रिया के लिए आवश्यक है।
अतः जैविक दुग्ध उत्पादकों को चाहिए कि पशुओं को हरा चारा प्रर्याप्त मात्रा में  उपलव्ध कराए और साथ ही वर्णित सावधनियाँ अपना कर अधिक से अधिक लाभ ले।

डा० प्रमोद प्रभाकर
सहा० प्रा० सह क० वैज्ञानिक, पशुपालन
म्ंा० भा० कृ० महावि०, अगवानपुर ,सहरसा
(वि०कृ०विश्वविद्यालय सवौर), भागलपुर 813210

Email: ppmbac@gmail.com
 


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