बकरियों में स्वास्थ्य प्रंबधन

Pashu Sandesh, 06 August 2021

1डॉ. चंद्रपाल सिंह सोलंकी, 2डॉ. तृप्ति सिंह, 3डॉ. ब्रजमोहन सिंह धाकड़ , 4डॉ. अजय राय, 5डॉ. मधु सिंह

1विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र जशपुर (छ. ग.), 2 पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ, रायगढ़ (छ. ग.)

3पशुचिकित्सा जनस्वाथ्य और महामारी विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, ना. दे . प. वि. वि., जबलपुर (म. प्र.)

4पशुसूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, ना. दे . प. वि. वि., जबलपुर (म. प्र.)

5पशुचिकित्सा औषधि विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, आनंद (गुजरात)

परिचय

बकरियों में स्वास्थ्य प्रंबधन अन्य पषुधन के सामान बकरी पालन में पषु स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण कारक है। आर्थिक क्षति झुण्ड के 50 प्रतिषत मृत्यु बकरी पालन की सफलता के लिए यह आवष्यक है कि बकरियाँ स्वस्थ तथा निरोगी रहें। यदि वे अस्वस्थ या बीमार हो जाए, तो उनके रोग को पहचान कर तत्काल उपचार करें। इससे बकरियों को मृत्यु से बचाकर आर्थिक हानि से बचाया जा सकता है। बकरियों में पी.पी.आर., ई.टी., खुरपका मुहँपका, गलघोंटू तथा बकरी चेचक रोगों के टीके अवष्य लगवाने चाहिए। कोई भी टीका 3-4 माह की आयु के उपरांत ही लगाया जाता है। इसलिए बरसात आते ही इन्हें रोगों से बचाने के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए। ये सभी रोग बहुत तेजी से फैलते है। इन रोगों के लक्षण देखते ही यथाषीघ्र उपचार के उपाय करने चाहिए। इन रोगों का देसी इलाज भी प्रभावी होता है। पषु चिकित्सक को दिखाकर उपचार कराया जा सकता है। अंतः परजीवी नाषक दवा वर्ष में दो बार पिलानी चाहिए (एक वर्षा से पुर्व दोबारा वर्षा के उपरांत)। बाह्य परजीवीनाषक दवा से सावधानीपूर्वक बकरियों को स्नान कराने से परजीवी मर जाते है।

स्वास्थ्य एंव रोग का मूल्यांकन:

किसी भी बीमारी, समस्या या संक्रमण को सही ढंग से पहचानने के लिये प्रत्येक झुन्ड के पषुपालक को प्रतिदिन पूरे झुन्ड का मुआयना करना चाहिए।

अस्वस्थता के संकेतक:

अस्वस्थ बकरी अपने आपको झुन्ड से अलग कर लेती है। बकरी का आवरण घटिया या खराब हां जाता है। सांस लेने में तकलीफ के साथ ही खांसी और कँपकँपी दिखाई देती है। पषु को भूख नहीं लगती, जुगाली नही करता, पेट फूल जाता है कुछ भी चबा पाने में असमर्थ हो जाता है। मुँह से लगातार लार बहती रहती है और झाग निकलता है। आँखो की श्लेष्मा का लाल हो जाती है।

अस्वस्थता के परिणाम:

लंबे समय तक बीमारी से ग्रसित रहने पर बकरियों के उत्पादन और शारीरिक भार में कमी आती है जिसके साथ दुर्बलता आती जाती है। पषु की प्रजनन क्षमता में कमी आ जाती है। बाड़े में मृत्यु दर अधिक होने पर आर्थिक रुप से बहुत नुकसान हो जाता है।

बकरी में होने वाली बीमारियों के कारक -

बकरी में बीमारियाँ विषाणु, प्रोटोजोआ, जीवाणु, कवक, कृमि, बाह्य परजीवी, शारीरिक चोट, असंतुलित पोषण, पोषक तत्वों की कमी आदि से होती है।

बीमारियों से बचाव: 

प्रतिदिन सुबह बकरियों की जाँच करें जो बकरी बीमार हो उसे बाकी बकरियों से अलग करें। अन्यथा दूसरी बकरियों में रोग फैलने की संभावना रहती है।
बीमार बकरियों को चरने के लिये ना छोड़े।
हर तीन महीने में बकरियों को कृमिनाशक दवाई पिलायें।
हर चार महीने में बकरियों को खुजली से बचाने के लिए कृमिनाषक दवाई से नहलायें।
बरसात के दिनों में बकरियों के कोठे की जमीन पर चूने का छिड़काव करें।
हर तीन महीने में कोठे की दिवार पर चूने से पुताई करें।
बकरियों का नियमित रुप से टीकाकरण करवायें और कृमिनाशक दवाई पिलायें।

बकरी स्वास्थ्य के संबंध में याद रखने योग्य सुझाव -

सामान्य पषुओं की देखभाल में निहित है-अच्छा पोषण, शेल्टर, प्रजनन, खुरों की देखभाल, समय पर कृमिनाषक दवापान आदि ।
अस्वस्थता से कम उम्र की बकरियों की वृद्वि घट जाती है और वयस्को का उत्पादन कम हो जाता है, जिससे की उत्पादन दर एंव चिकित्सा दर बढ़ जाती है।
नवजात बच्चे दूध से वंचित होने, खराब सफाई व्यवस्था और पोषण के कारण बीमारियों और संक्रमण के प्रति संवेदनशील होते है।
बीमार पशुओं को पहचानकर अलग रखने के साथ ही उनकी विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।बीमारी या रोग ग्रस्त पषु को स्वस्थ पशु के साथ तभी सम्मिलित करना चाहिये, जब तक वह पूर्ण रुप से स्वस्थ न हो जाये व सामान्य खान- पान करने लगे।अच्छे स्वास्थ्य के लिये नित्य देखभाल के साथ ही अच्छा प्रंबधन आवश्यक है जिसके तहत् बीमारियों का उचित उपचार, डिवर्मिग और टीकाकरण आते है।