अजोला उत्पादनः आय दोगुनी करने का आसान तरीका

Pashu Sandesh, 24 June 2021

डा. नितिन मोहन गुप्ता1, डा. एस एस तोमर2, डा. अमित झा3

1.पी.एच.डी. स्कालर,  2. प्राध्यापक एवं विभाग प्रमुख (प्रभारी अधिष्ठाता), 3. सहायक प्राध्यापक

पशु प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग

पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय, रीवा म.प्र.

अजोला एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। यह सामान्यतः उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है। यह बहुत अच्छा जैव उर्वरकता का स्त्रोत है। इस फर्न का रंग गहरा लाल या कत्थाई होता है। धान के खेतों में यह अक्सर दिखाई देती है। छोटे-छोटे पोखर या तालाबों में जहां पानी एकत्रित होता है वहां पानी की सतह पर यह दिखाई देती है।

अजोला पानी में पनपने वाला छोटे बारीक पौधो के जाति का होता है। एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नत्रजन का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को नत्रजन की पूर्ति करता है। अजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5-6 दिनों में ही इसकी पैदावार दोगुनी हो जाती है। अजोला में कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हुये अधिक पैदावार देते है। 

पानी से भरे खेत (2 से 4 इंच) में 10 टन ताजा एजोला को डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर लगभग 40 कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धि के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अनुकूल होता है। पानी के पोखर या लोहे के ट्रे में एजोला कल्चर बनाया जा सकता है। पानी की पोखर या लोहे के ट्रे में 5 से 7 से.मी. पानी भर देवें। उसमें 100 से 400 ग्राम कल्चर प्रतिवर्ग मीटर की दर से पानी में मिला देवें। सही स्थिति रहने पर एजोला कल्चर बहुत तेज गति से बढ़ता है और 3-4 दिन में ही दुगना हो जाता है। एजोला कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखर में एजोला की मोटी परत जमना शुरू हो जाती है जो नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य करती है।

पशुओं के लिए पौष्टिक आहार-

अजोला जैव उर्वरक के रूप मे बहुत अच्छा कार्य करता है। ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम में भी आता है। इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है। हमारे देश में तीव्र गति से बढती जनसंख्या के पोषण के लिए दूध की मांग दिन प्रति दिन बढती जा रही है।दुधारू पशुओं के पोषण तथा स्वास्थ्य रखरखाव में हरा चारा एक महत्वपूर्ण घटक है। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। पशुओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। पशुओं को चारा देने से पूर्व अजोला को अच्छी तरह धोना चाहिए, क्योंकि गोबर मिला होने के कारण प्रायः पशुओं को इसकी गंध पसंद नही होती है।

अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं। अजोला में मुख्य रूप से 25 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है, इसके अतिरिक्त इसमें अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, बी-12 तथा कैरोटीन) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

अजोला से पशुओं के शरीर में कई तत्वों जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा होता है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है। दुधारू पशुओं को यदि उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो उनके दुग्ध उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि संभव है।

उगाने की विधिः-     

मैदानी स्तर पर अजोला पिट का निर्माण एक पेड की छांव के नीचे 10‘×5‘×0.80‘ गड्डा खोदकर जिसके किनारे पर ईंट रखें। गड्डे में पन्नी बिछाकर 4.5 कि.ग्रा. गोबर की खाद में 10 लीटर पानी का घोल तैयार करें तथा इसे पालीथीन के ऊपर बिछाएं। इसमें और पानी मिलाए जिससे यह 7 से 8 इन्च का घोल हो जाए। इसमें 1 कि.ग्रा. फ्रेश अजोला कल्चर डालें।

अजोला पिट में 2 से 3 दिन में पूर्ण अजोला दिखने लगेगा। 7वें दिन से 1 से 1.5 कि.ग्रा. अजोला प्राप्त हो सकेगा। इस उपलब्ध अजोला को पशु को देने से स्वास्थ्य एवं उत्पादन में बढोतरी हो सकेगी। इसका उपयोग करके पशुपालक अपनी आय दोगुनी से भी ज्यादा कर सकते है।