बकरियों में आहार प्रंबधन

Pashu Sandesh, 13 August 2021

1डॉ. चंद्रपाल सिंह सोलंकी, 2डॉ. तृप्ति सिंह, 3डॉ. ब्रजमोहन सिंह धाकड़ , 4डॉ. अजय राय, 5डॉ. मधु सिंह

1विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र जशपुर (छ. ग.), 2 पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ, रायगढ़ (छ. ग.)

3पशुचिकित्सा जनस्वाथ्य और महामारी विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, ना. दे . प. वि. वि., जबलपुर (म. प्र.)

4पशुसूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, ना. दे . प. वि. वि., जबलपुर (म. प्र.)

5पशुचिकित्सा औषधि विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, आनंद (गुजरात) 

परिचय

बकरी पालन भारत के लोकप्रिय व्यवसायों में से एक है। बकरियों को सामाजिक प्राणी के रुप में जाना जाता है। यह बेरोजगार किसानों के लिए एक अच्छा रोजगार है। बकरी पालन पूरे साल निरंतर चलते रहने वाला उच्च लाभ प्रदाय करने वाला व्यवसाय है, बकरियों से हमें मांस, दूध एंव खाद प्राप्त होता है। बकरियों को संपूर्ण स्वास्थ्य हेतु विभिन्न अवयवों की आवष्यकता होती है जो उसे भोजन से प्राप्त होते है। वृद्वि, दुग्ध व मांस उत्पादन, जनन तथा अन्य दैहिक क्रियाओ के लिए उचित पोषक तत्वो की आवष्यकता होती है। संतुलित भेाजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे प्रमुख अवयव आवष्यक मात्रा में होते है, यदि भोजन में किसी अवयव की कमी हो जाती है तो बकरियों के उत्पादन, प्रजनन क्षमता एंव रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इन अवयवो की आवष्यकता गर्भित काल एंव दुग्ध उत्पादन के समय ज्यादा बढ़ जाती है। अगर ऐसी अवस्था में बकरी पालक आवश्यकता के अनुसार संतुलित आहार नहीं देते है तो स्वास्थ पर प्रतिकुल प्रभाव दिखाई देने लगता है, कभी- कभी तो बकरियों में मृत्यु तक हो जाती है।

बकरी जुगाली करने वाली पशु है जो घास व कृषि अवशेष जो कि मनुष्यो द्वारा उपयोग नही होता है उसे दूध और मांस के रुप में तब्दील करते है। बकरियां खाने में विविधता पसंद करती हैं। बकरी सामने के पैर पर खड़े होकर आहार ग्रहण करती है, जिसे ब्राउसिंग कहते है। बकरियों को हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत होती है। बकरी को प्रतिदिन उसके भार का 3.5% शुष्क आहार खिलाना चाहिए। एक वयस्क बकरी को 1.3 कि. ग्रा. हरा चारा, 500 ग्रााम से 1 कि.ग्रा. भूसा तथा 150 ग्रा. से 400 ग्रा. तक दाना प्रतिदिन खिलाना चाहिए। सामान्यताः बकरियां एक दिन में साढ़े तीन से चार किलो तक हरा चारा खाती है। बकरियों को हरा चारा खिलाने से दाने की बचत की जा सकती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि बकरी द्वारा चरे जाने पर पौधों की वृद्वि रुक जाती है, यह धारणा गलत है, क्योंकि बकरी किसी पौधे को पूरी तरह से नहीं चरती बल्कि केवल कुछ पत्तियों को ही चुनकर खाती है। इससे पौधे की शाखाओं की सामान्य से अधिक वृद्वि होती हंै। बकरियों के चरने एंव खान-पान का व्यवहार अन्य पशुओं की तुलना में अति विषिष्ट होता है। मुख की विषिष्टता बनावट उसे कांटेदार पत्तियां चरने में मदद करती है। बकरियां खाने में बड़ी नखरेवाली होती है। जो चारा एक बकरी को पसंद है वह दूसरी को नापसंद हो सकता है। पैरो द्वारा रौंदा गया मिट्टी लगा चारा खाने के बजाए वे भूखी रहना पसंद करती है। अन्य पशुओं के विपरीत बकरियां कम नमी युक्त चारे पर आश्रित रहना पसंद करती है। बकरियों का खानपान धीरे-धीरे बदलना चाहिए। अधिक दूध व मांस उत्पादन हेतु, गाभिन बकरी तथा प्रजनन के काम आने वाले बकरों आदि को उनके वनज व उत्पादन के आधार पर संतुलित दाना-चारा तथा पोषक तत्व के साथ उचित मात्रा में खनिज लवण नियमित रुप से देना चाहिए।
बकरी आहार प्रबंधन की पद्धतियाँ -

क) टीथरिेग चराई- पषु को चराई क्षेत्र में निश्चित दूरी तक रस्से से बाँधकर रखना।
ख) गहन चराई- extensive
ग) चराई विहीन पूर्णतः घर पर बांधकर खिलाना- intensive
घ) अर्घ गहन- semi intensive

क) टीथरिेग चराई- यह छोटे पषुपालकों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रणाली है, जो 5-6 बकरियाँ पालते हैं और उन्हें चराई क्षेत्र में खूंटे या झाड़ी से 1-5 मीटर रस्से से बाँधकर रखते है। बकरी उस सीमित क्षेत्र में चराई करती हैं।
ख) गहन चराई- इस प्रणाली को ब्राउसिंग भी कहते है। यह प्रणाली देष में सामान्यताः उपयोग की जाती है, जिसमें दिन के समय बकरियाँ प्राकृतिक वनस्पति या झाडि़यो को चरती हैं या फसल के अवषेष को खाती है। चराई के लिए बकरियों को चरवाहे के माध्यम से गांव के पास उपयुक्त स्थान पर ले जाष जाता है परन्तु रात्रिकाल में बकरियों के झुंड को रात्रि कालीन आवास में रखा जाता हैै एंव आवास में आहार का कोई प्रबंधन नहीं होता है।
ग) चराई विहीन पूर्णतः घर पर बांधकर खिलाना- बकरियाँ स्थायी रुप से एक ही स्थान पर रखी जाती है और चारा-दाना वही पर दिया जाता है। यह एक अत्यंत गहन पद्वति है। प्रक्षेत्र में ही चारा उगाया जाता है अथवा सार्वजनिक क्षेत्रो से इकट्ठा किया जाता है। यह प्रणाली उनके लिये उपयोगी होती है जो व्यापक पैमाने पर बकरी पालन कर रहें हो या अनुसंधान हेतु कुछ कार्य कर रहे हों।
घ) अर्घ गहन- इस पद्वति में उपरोक्त दोनों प्रणालियो का फायदा रहता है। इसमें चराई एंव बांधकर बकरियों को पालना दोनो की समुचित व्यवस्था पषुपालक अपने आवष्यकता एंव संसाधनों के आधार पर करता है। इसमें 40-60 प्रतिषत पोषण चराई से एंव शेष बकरी आवास में पषुआहार के माध्यम से दिया जाता है।
बकरी पोषण में जल का उपयोग- प्रत्येक बकरी की पानी की आवष्यकता उसकी प्रजाति, वातावरण/मौसम, आहार की प्रकृति एंव शारीरिक आवष्यकताओं पर निर्भर करता है। बकरियों को खाये गये चारे के शुष्क पदार्थ की मात्रा का चार गुना पानी की आवश्यकता होती है, पंरतु दुधारु बकरियों को प्रत्येक लीटर दूध के लिये 1.3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

बकरी पोषण में लवण का उपयोग-

मृदा में खनिज लवणों की कमी क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती है जो उस क्षेत्र के पशुओं में कमी या रोग के रुप में परीलक्षित होती है। दाने और चारे दोनों में ही विभिन्न प्रकार के खनिज लवण पाये जाते हैं, परन्तु इनकी मात्रा पषु शरीर की आवष्यकता के अनुरुप नहीं होती, इसलिए इन्हें अलग से देना अति आवष्यक है। अतः यह आवष्यक है कि किसान अपनी कीमती बकरियों को वैज्ञानिको के परामर्श एंव क्षेत्र के अनुसार विकसित किये गये खनिज लवणों का मिश्रण चारे व दाने के साथ प्रदान करें जिससे खनिज अवयवो की पूर्ति हो सके। इनका उपयोग 10-20 ग्राम रोजाना बकरियों को दाने के साथ खिलाते रहना चाहिये, जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

बकरी पोषण से संबंधित सावधानियाँ -
एक ही चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक चरने नहीं देना चाहिए, ऐसा करने से उन्हें कृमि रोग हो सकता है।
बकरियाँ ठंड और बरसात सहन नहीं कर पाती, अतः अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिये भेजना चाहिए। बरसात में गीली जगह, दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए।
बीमार बकरी को चरने नहीं भेजना चाहिए।
गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह व बच्चा जनने के दो सप्ताह तक चरने नहीं भेजना चाहिए।
नियंत्रित प्रजनन के लिये बकरी व बकरे को साथ में चरने नहीं भेजना चाहिए या उन्नत नस्ल के बकरों को साथ में भेजना चाहिए।
बकरियों को चराने के लिये छोड़ना बहुत जरुरी है। उनको हर दिन 6 से 7 घंटा चरायें।
प्रतिदिन बकरी कोठे की सफाई अवष्य करें।
बकरियाँ एंव बड़े जानवर साथ- साथ न चरायें।
बकरियों को छोड़ने से पहले दाने की आधी मात्रा खिलायें और वापस आने के बाद आधी मात्रा दें।
जिन बकरों का वजन कम हो या जिनकी बाढ़ बराबर न हो। ऐसे बकरों को पशु चिकित्सक की सहायता से खस्सी करवायें।
बरसात के दिनों में बकरियों को सूखा चारा जैसे चना कुटार, तुवर का कुटार, 400 से 500 ग्राम प्रति बकरी के हिसाब से खाने के लिये दें।